भारत के अस्तित्व में आदिवासी समाज का स्थान सबसे प्राचीन, सबसे विशिष्ट और सबसे महत्वपूर्ण है। "आदिवासी" मात्र एक नाम नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक-सांस्कृतिक पहचान है, जो जल-जंगल-जमीन, श्रम, सामूहिकता और समानता की जीवनदृष्टि में निहित है। लेकिन दुखद यह है कि इस अस्मिता को बार-बार "जनजाति" और "वनवासी/बनवासी" कहकर छोटा किया गया है। यह केवल भाषाई गलती नहीं, बल्कि एक सुनियोजित वैचारिक षड्यंत्र है, जो आदिवासी समाज को उनकी असली पहचान से काटकर एक संकीर्ण धार्मिक चादर में लपेटने का प्रयास करता है।
आदिवासी बनाम जनजाति और वनवासी
"आदिवासी" का अर्थ है – इस धरती के आदि निवासी, मूल निवासी।...