शनिवार, मार्च 22, 2025

छेरछेरा कोठी के धान ला हेरतेच हेरा: छेरछेरा पुन्नी, छत्तीसगढ़ के गांवों में दान और समरसता की झलक!

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भाईचारे का संदेश, हर घर से बच्चों की टोली को मिलता है स्नेह और सहयोग।

छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध लोक पर्व छेरछेरा पुन्नी की धूम पूरे राज्य में देखी जा रही है। यह पर्व न केवल नई फसल की खुशी बल्कि सामाजिक समरसता और दानशीलता का प्रतीक भी है। बच्चों और युवाओं की टोलियां गांव-गांव, घर-घर जाकर छेरछेरा मांग रही हैं। जहां भी ये टोलियां पहुंचती हैं, लोग दिल खोलकर धान, साग-भाजी और रुपए दान कर रहे हैं।

क्या है छेरछेरा का महत्व?

छत्तीसगढ़ में पौष पूर्णिमा के दिन मनाए जाने वाले इस पर्व की जड़ें पौराणिक मान्यताओं में हैं। कथा है कि इस दिन भगवान शंकर ने माता अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगी थी। इसे फसल कटाई के त्योहार और महादान के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग अपनी नई फसल का अंशदान करते हैं और समाज में सहयोग एवं उदारता की भावना का प्रसार करते हैं।

कैसे मनाते हैं यह पर्व?

बच्चे, युवा और महिलाएं मिलकर टोलियां बनाते हैं और घर-घर जाकर यह गाते हुए दान मांगते हैं:
“छेरछेरा, कोठी के धान ला हेर-हेरा।”
गांवों में धान और नगद राशि दान स्वरूप दी जाती है। शहरों और कालोनियों में पैसे, टॉफियां और अन्य खाने-पीने की चीजें दी जाती हैं।

बच्चे, युवा और महिलाएं मिलकर टोलियां बनाते हैं और घर-घर जाकर यह गाते हुए दान मांगते हैं:
“छेरछेरा, कोठी के धान ला हेर-हेरा।”
गांवों में धान और नगद राशि दान स्वरूप दी जाती है। शहरों और कालोनियों में पैसे, टॉफियां और अन्य खाने-पीने की चीजें दी जाती हैं।

पारंपरिक व्यंजन और नृत्य-संगीत

इस दिन हर घर में छत्तीसगढ़ी व्यंजन जैसे आइरसा, सोहारी, उड़द बड़ा और मांस-मछली बनाए जाते हैं। पहले गांवों में पुरुषों की टोली डंडा नाच, लड़कियां सुआ नृत्य, और यादव समाज के लोग रावत नाच कर धान मांगते थे। ये पारंपरिक नृत्य और संगीत छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को उजागर करते थे, जो अब समय के साथ कम होता जा रहा है।

बदलते समय के साथ छेरछेरा

तकनीकी युग में छेरछेरा मनाने का तरीका भी बदल गया है। अब लोग फोनपे, गूगल पे और अन्य ऑनलाइन पेमेंट के जरिए दान दे रहे हैं। यहां तक कि छत्तीसगढ़ से बाहर रहने वाले लोग भी ऑनलाइन माध्यम से अपने इस लोक पर्व से जुड़े रहते हैं। हालांकि, साइबर सुरक्षा के प्रति सतर्क रहना भी जरूरी है।

बदलते दौर में छत्तीसगढ़ के लोकगीत, नृत्य और पारंपरिक वेशभूषा धीरे-धीरे विलुप्त हो रही हैं। आवश्यकता है कि नई पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ा जाए।

छेरछेरा: सामाजिक समरसता का प्रतीक

छेरछेरा केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के गांवों और समुदायों के बीच आपसी सहयोग और भाईचारे की मिसाल है। यह पर्व हमें सिखाता है कि सामाजिक संतुलन और समृद्धि के लिए दान और सहयोग की भावना कितनी महत्वपूर्ण है।

छत्तीसगढ़ का यह लोक पर्व अपनी परंपराओं, दानशीलता और सामुदायिक भावना को संजोए रखने का अनूठा उदाहरण है। बदलते समय के साथ इसे आधुनिक तकनीक से जोड़ते हुए भी हमें इसकी सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखना चाहिए।
(आलेख: राघवेंद्र वैष्णव)

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