धरती आबा की अमर गाथा
9 जून को जब हम बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि मनाते हैं, तो हमारे सामने एक ऐसे युवा योद्धा की छवि उभरती है जिसने मात्र 25 वर्ष की आयु में ही अपने समुदाय और देश के लिए अमर बलिदान दे दिया। ‘धरती आबा’ (धरती पिता) के नाम से प्रसिद्ध बिरसा मुंडा का जीवन आज भी करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
जीवन परिचय और पारिवारिक पृष्ठभूमि
9 नवंबर 1875 को झारखंड के खूंटी जिले के उलिहातु गांव में जन्मे बिरसा मुंडा का बचपन अत्यंत कठिनाइयों में बीता। उनके पिता सुगना मुंडा और माता करमी हातू एक साधारण आदिवासी परिवार से थे। प्रारंभिक शिक्षा के दौरान ही बिरसा ने अपने समुदाय की दुर्दशा को करीब से देखा था। गरीबी, अशिक्षा और सामाजिक भेदभाव के बीच पले-बढ़े इस बालक के मन में न्याय की तीव्र भावना जन्म ले रही थी।
सामाजिक-आर्थिक संकट का दौर
19वीं सदी के अंत में छोटानागपुर क्षेत्र की स्थिति अत्यंत शोचनीय थी। अंग्रेजी सरकार की नीतियों और जमींदारी प्रथा के कारण आदिवासी समुदाय अपनी ही भूमि पर परायेपन का अनुभव कर रहा था। पारंपरिक ‘खूंटकटी’ भूमि व्यवस्था को नष्ट कर दिया गया था। सूदखोरों और जमींदारों का शोषण चरम पर था। मुंडा समुदाय के लोग अपने ही घरों में गुलामों की तरह जीवन जीने को मजबूर थे। इन परिस्थितियों ने बिरसा के मन में विद्रोह की ज्वाला प्रज्वलित की।
धार्मिक और सामाजिक सुधारक
बिरसा केवल एक राजनीतिक नेता नहीं थे, बल्कि एक महान धार्मिक और सामाजिक सुधारक भी थे। उन्होंने पारंपरिक आदिवासी धर्म में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया। उन्होंने ‘बिरसाइत’ धर्म की स्थापना की जो एकेश्वरवाद पर आधारित था। उनका मानना था कि एक ही सच्चा भगवान है जो सभी का कल्याण चाहता है। उन्होंने शराब, अंधविश्वास और सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध जोरदार अभियान चलाया। लोग उन्हें एक दिव्य शक्ति संपन्न व्यक्ति मानने लगे थे।
उलगुलान – महान विद्रोह का नेतृत्व
1899-1900 का मुंडा विद्रोह, जिसे ‘उलगुलान’ कहा जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। बिरसा के नेतृत्व में हजारों आदिवासियों ने अंग्रेजी सरकार, जमींदारों और महाजनों के विरुद्ध हथियार उठाए। यह विद्रोह केवल राजनीतिक नहीं था, बल्कि सामाजिक और आर्थिक न्याय की लड़ाई था। बिरसा की सेना ने कई पुलिस स्टेशनों और सरकारी दफ्तरों पर हमले किए। उनका लक्ष्य था – ‘अबुआ दिशुम, अबुआ राज’ (हमारा देश, हमारा राज)।
अंग्रेजी सरकार ने इस विद्रोह को कुचलने के लिए बड़े पैमाने पर सैन्य बल का उपयोग किया। हजारों आदिवासी शहीद हुए, लेकिन उनका साहस और बलिदान व्यर्थ नहीं गया। अंततः 3 फरवरी 1900 को बिरसा को गिरफ्तार कर लिया गया। 9 जून 1900 को रांची जेल में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई।
छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम: एक ऐतिहासिक उपलब्धि
बिरसा मुंडा के बलिदान का सबसे बड़ा परिणाम 1908 में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम का पारित होना था। इस कानून ने आदिवासी भूमि के हस्तांतरण पर रोक लगाई और उनके पारंपरिक अधिकारों को कानूनी मान्यता दी। यह अधिनियम आज भी झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के आदिवासी क्षेत्रों में लागू है और लाखों आदिवासियों के भूमि अधिकारों की रक्षा कर रहा है।
राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
बिरसा मुंडा को भारत के पहले स्वतंत्रता सेनानियों में गिना जाता है। उनका विद्रोह 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती था। उन्होंने स्पष्ट किया कि स्वतंत्रता का मतलब केवल राजनीतिक आजादी नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक न्याय भी है। उनके आदर्शों ने बाद के स्वतंत्रता सेनानियों को प्रभावित किया। महात्मा गांधी से लेकर डॉक्टर राम मनोहर लोहिया तक, कई नेताओं ने बिरसा के संघर्ष को सराहा है।
समकालीन प्रासंगिकता
आज जब आदिवासी समुदाय विकास की मुख्यधारा से जुड़ने के लिए संघर्ष कर रहा है, बिरसा मुंडा के विचार और भी प्रासंगिक हो गए हैं। पर्यावरण संरक्षण, प्राकृतिक संसाधनों पर स्थानीय समुदाय के अधिकार, और सामाजिक न्याय के मुद्दे आज भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। आधुनिक भारत में आदिवासी संस्कृति और पहचान को बचाने की चुनौती में बिरसा के आदर्श मार्गदर्शन का काम कर सकते हैं।
अमर प्रेरणा
बिरसा मुंडा का जीवन हमें सिखाता है कि न्याय के लिए लड़ना हर युग की आवश्यकता है। उन्होंने दिखाया कि साहस, दृढ़ता और न्याय की भावना के सामने कोई भी शक्ति टिक नहीं सकती। आज जब हम उनकी पुण्यतिथि मनाते हैं, तो यह संकल्प लेते हैं कि उनके सपनों का भारत बनाने में अपना योगदान देंगे।
‘धरती आबा’ बिरसा मुंडा का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा है। उनका बलिदान हमें प्रेरणा देता है कि न्याय और सत्य के लिए संघर्ष करना हर इंसान का कर्तव्य है। उनकी स्मृति में हम सभी को मिलकर एक न्यायपूर्ण और समान समाज के निर्माण के लिए कार्य करना चाहिए।