गांधीजी का अपने जीवन में सबसे पहले परिचय आधुनिक पश्चिमी विचारों से हुआ। जो परंपरागत हिन्दू दर्शन नहीं था। राजकोट और लंदन में आधुनिक शिक्षा पाने के बाद ही उन्होने इंग्लैण्ड में भागवद्गीता का अंग्रेजी अनुवाद को पढ़ा। वहां वे शाकाहारी समाज में शामिल हो गये थे।
गाःधीजी ने आधुनिक पश्चिमी सभ्यता की निर्मित के रूप में पूंजीवाद तथा युद्ध और नरसंहार के बल बूते पर स्वयं को स्थापित करने वाले साम्राज्यवाद को अस्वीकार कर दिया।
वे पुरूष और स्त्रियों की समानता में विश्वास करते थे बल्कि उनका यह भी मानना था कि स्त्रियां वे सब काम कर सकते है। जो पुरूष करते है लेकिन पुरूष वे सब काम नहीं कर सकते जो स्त्रियां कर सकती हैं। गांधी जी स्वयं को सनातन हिन्दू पुकारते थे और इस आधार पर मंदिरों में प्रवेश के लिए दलितों के आंदोलन का समर्थन करते थे।
गांधी जी ने हिन्दू वाद में सहिष्णुता खोज निकाली जो उसमें कभी नहीं थी और इस प्रकार उन्होने इसे अधिक सहिष्णु धर्म बनाने का प्रयास किया।
गांधीजी के राम ईश्वर थे और उनके रामराज्य मे ऐसा कुछ नहीं था जिसका संप्रदायवाद से दूर का भी संबंध हो। “ईश्वर का आसन” । उनके राम का वही अर्थ था जो कबीर का था।
गांधीजी के धार्मिकता भी मानवतावादी मूल्यों के विस्तार पर आधारित थी और उन मूल्यों को संभवतः सबसे प्राचीन धर्म पर लागू किए जाने से उसके विश्वासों में व्यापक बदलाव आया।
गांधीजी इस बात को समझ पाए कि राष्ट्रीय आंदोलन आधुनिक भारत का निर्माण कर सकता हैं। प्राचीन भारत में वापस नहीं लौटा जा सकता हैं। इसलिए भारत को न केवल शिक्षा बल्कि नई विचारधारा की आवश्यकता है।
गांधीजी राष्ट्रीय आंदोलन को आर्थिक संघर्षों के साथ जोड़ना चाहते थे। उन्होने दर्शा दिया था कि इंग्लैंड भारत का किस तरह से शोषण कर रहा हैं।
गांधीजी के साथ राष्ट्रीय आंदोलन का एक नया चरण शुरू हुआ और आर्थिक शिकायतों को दूर करने के लिए जन मोबिलाईजेशन राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा बन गया।
चम्पारण में किसानों के सत्याग्रह और अहमदाबाद में मजदूरों के हड़ताल में शामिल होकर उनके मांगों के समर्थन में गांधी जी की उपस्थिति में समझौता होना। देश के विभाजन के बाद जब सांप्रदायिक नरसंहार शुरू हुए तो गांधी अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे। उनके कहने का सारांश इस प्रकार था: “पाकिस्तान में नरसंहार को लेकर मुझे उतनी ही चिंता है जितनी कि भारत में नरसंहार को लेकर। लेकिन मुझे पहले भारत में नरसंहारों को बंद करना चाहिए। इसलिए मैं यहां यहां उपवास कर रहा हूं। जब मैं यहां कामयाब हो जाऊंगा तब पाकिस्तान में इसके लिए प्रयास करूंगा। वह भी मेरा देश है।”
-सुखरंजन नंदी