“कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री का ‘संघ-आदिवासी एकता’ का दावा राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय”
छत्तीसगढ़ के प्रमुख आदिवासी नेता अरविंद नेताम का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के मंच से भाषण देना राजनीतिक गलियारों में चर्चा का मुद्दा बन गया है।** कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री नेताम ने 5 जून को नागपुर स्थित RSS मुख्यालय में एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया, जहां उन्होंने संघ की तारीफ में कसीदे पढ़े।
83 वर्षीय अरविंद नेताम, जो इंदिरा गांधी और नरसिम्हा राव सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे हैं और वर्तमान में सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष हैं, का RSS मंच पर जाना बस्तर और देश भर के आदिवासी समुदाय में असंतोष का कारण बना है।
RSS मंच पर क्या कहा नेताम ने?
RSS मुख्यालय में अपने भाषण के दौरान नेताम ने संघ की तारीफ करते हुए कहा कि धर्मांतरण रोकने में संघ उनकी मदद कर सकता है। उन्होंने 1991 में उदारीकरण की नीति के बाद आदिवासी समाज के लिए खतरे की घंटी के रूप में इसका उल्लेख किया।
श्री नेताम ने कहा कि आदिवासियों की राय लिए बिना उनकी जमीनें उद्योगपतियों को दी जा रही हैं और इन सब मुद्दों पर संघ से सहयोग की अपेक्षा है। हालांकि, इस भाषण में उन्होंने आरक्षण के मुद्दे पर स्पष्ट रुख नहीं अपनाया, जो आदिवासी समुदाय के लिए एक संवैधानिक अधिकार है।

कांग्रेस और विपक्ष की प्रतिक्रिया
83-वर्षीय नेताम ने कांग्रेस की छत्तीसगढ़ इकाई की आलोचना की, जिसने आदिवासी नेता द्वारा RSS के निमंत्रण को स्वीकार करने पर हैरानी जताई है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आदिवासी नेता अरविंद नेताम के बयान पर RSS पर निशाना साधा है।
कांग्रेस पार्टी का मानना है कि नेताम का यह कदम आदिवासी समुदाय के हितों के विपरीत है, क्योंकि RSS की विचारधारा पारंपरिक रूप से आदिवासी अधिकारों के अनुकूल नहीं रही है।

आदिवासी समुदाय में बढ़ता असंतोष
इस घटना के बाद आदिवासी समुदाय के कई वर्गों में असंतोष देखने को मिला है। समाज के कई नेताओं का कहना है कि नेताम को RSS के मंच पर जाकर भी आदिवासी अधिकारों की बात करनी चाहिए थी, न कि संघ की विचारधारा का समर्थन करना चाहिए था।
जागेश्वर साहू जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि “आरक्षण हमारे अधिकारों की गारंटी है, यह कोई कृपा नहीं। यह हमारे ऐतिहासिक शोषण का न्याय है।” उनका कहना है कि इसे कमजोर करने वाली भाषा चाहे किसी मंच से आए, आदिवासी समाज उसका विरोध करेगा।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता वर्ग के एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचे नेताम का यह कदम राजनीतिक समीक्षकों के अनुसार आदिवासी राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह 2018 में प्रणब मुखर्जी के RSS कार्यक्रम में भाग लेने की याद दिलाता है, जिसने तब भी काफी विवाद पैदा किया था।

RSS के कार्यक्रम से लौटने के बाद नेताम की मुख्यमंत्री से मुलाकात भी राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बनी है।
वन अधिकार और आदिवासी हित
आदिवासी समुदाय के मुख्य मुद्दे – जल, जंगल, जमीन और वन अधिकार अधिनियम – पर नेताम के RSS मंच से स्पष्ट रुख न अपनाने से समुदाय में निराशा है। समुदाय के लोगों का मानना है कि इस तरह के महत्वपूर्ण मंच का उपयोग आदिवासी अधिकारों को मजबूत करने के लिए किया जाना चाहिए था।
अरविंद नेताम का RSS मंच पर जाना न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक रूप से भी एक जटिल मुद्दा है। आदिवासी समुदाय के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण समय है जब उनके नेताओं से अपेक्षा है कि वे संवैधानिक अधिकारों और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों पर अडिग रहें।
इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि आदिवासी राजनीति में नेतृत्व की दिशा को लेकर गंभीर चर्चा की जरूरत है। आदिवासी समाज के लोगों की अपेक्षा है कि उनके नेता किसी भी मंच पर हों, लेकिन आदिवासी हितों की रक्षा उनकी प्राथमिकता होनी चाहिए।
यह घटना पूरे आदिवासी समाज के लिए एक चेतावनी भी है कि वे अपने नेताओं से जवाबदेही की मांग करें और यह सुनिश्चित करें कि उनके संवैधानिक अधिकारों से कोई समझौता न हो।
– गीतराज नेताम