मंगलवार, जुलाई 1, 2025

वन विभाग की धमकी से आदिवासी परिवार त्रस्त: मानवाधिकार आयोग में शिकायत की तैयारी

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रायगढ़ (आदिनिवासी)। “प्रेस में बयान दिए हो, अब देखो तुम्हें ट्रैक्टर कैसे मिलता है!” यह धमकी वन विभाग के एक अधिकारी ने गोपालपुर के आदिवासी परिवार को देर रात अपने कार्यालय में बुलाकर दी। पीड़ित परिवार, जो अपनी जमीन पर मेहनत कर जीवन यापन करता है, अब वन विभाग की इस ज्यादती के खिलाफ मानवाधिकार आयोग का दरवाजा खटखटाने को तैयार है। यह घटना न केवल कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाती है, बल्कि आदिवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए एक बड़े आंदोलन की जरूरत को भी उजागर करती है।

क्या है पूरा मामला?
गोपालपुर निवासी नारायण सोरेन और उनके दो बेटों का परिवार अपनी पुश्तैनी जमीन पर खेती करता है। नारायण के पास एक ट्रैक्टर है, जो उनकी आजीविका का मुख्य साधन है। करीब 20 दिन पहले, जब वे अपनी पट्टाधारी जमीन पर भूमि समतलीकरण का कार्य कर रहे थे, वन विभाग की टीम ने अचानक वहां पहुंचकर बिना कोई ठोस कारण बताए उनका ट्रैक्टर जब्त कर लिया। नारायण का कहना है कि उनकी जमीन का पट्टा उनके नाम पर है और वे पूरी तरह कानूनी रूप से काम कर रहे थे।

ट्रैक्टर जब्त होने के बाद परिवार ने कई बार वन विभाग से संपर्क किया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। हताश होकर नारायण ने जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा और प्रेस के सामने अपनी व्यथा रखी। लेकिन इसके बाद वन विभाग का रवैया और सख्त हो गया। दो दिन पहले, रात 10 बजे वन विभाग के एक अधिकारी ने नारायण और उनके बेटों को कार्यालय बुलाया। वहां उन्हें घंटों बिठाए रखा गया, उनके मोबाइल बंद करने को कहा गया और धमकी दी गई कि “कोई कलेक्टर तुम्हें ट्रैक्टर नहीं दिला सकता। प्रेस में बोलने की हिम्मत की, अब देखो क्या होता है।”

धमकी के साथ अपमान
नारायण सोरेन ने प्रेस को बताया कि वन विभाग के अधिकारी ने न केवल धमकियां दीं, बल्कि अश्लील शब्दों में गाली-गलौज भी की। “हमें हमारी औकात में रहने को कहा गया। हम गरीब आदिवासी हैं, लेकिन हमारा आत्मसम्मान भी है। क्या हमारी जमीन पर मेहनत करना गुनाह है?” नारायण की आवाज में दर्द और गुस्सा साफ झलक रहा था। उनके बेटों ने बताया कि उस रात कार्यालय में उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया, जिससे पूरा परिवार सदमे में है।

मानवाधिकार आयोग का रास्ता
इस ज्यादती से तंग आकर नारायण ने अब वन विभाग के खिलाफ कड़ा कदम उठाने का फैसला किया है। उन्होंने कहा, “हम पहले जिला कलेक्टर और संबंधित विभाग में शिकायत करेंगे। अगर वहां से न्याय नहीं मिला, तो हम मानवाधिकार आयोग जाएंगे। हमारा हक हमें चाहिए।” परिवार का कहना है कि ट्रैक्टर उनकी रोजी-रोटी का आधार है, और इसके बिना उनकी खेती ठप हो गई है।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और कानूनी विशेषज्ञों ने इस घटना को गंभीर बताया है। आदिवासी अधिकारों के लिए काम करने वाले प्रो. डॉ अनिल कुमार कहते हैं, “वन विभाग का यह रवैया न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि आदिवासी समुदाय के प्रति भेदभाव को भी दर्शाता है। अगर जमीन का पट्टा नारायण के नाम पर है, तो ट्रैक्टर जब्त करने का कोई औचित्य नहीं है।” उन्होंने जोर देकर कहा कि इस मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई जरूरी है।

आदिवासी समुदाय में आक्रोश
यह घटना गोपालपुर और आसपास के आदिवासी समुदाय में चर्चा का विषय बन गई है। स्थानीय लोग नारायण के समर्थन में आ रहे हैं और वन विभाग के इस रवैये की निंदा कर रहे हैं। एक स्थानीय निवासी, मालती मरावी, ने कहा, “हमारी जमीन और मेहनत ही हमारी ताकत है। अगर वन विभाग हमें काम करने से रोकेगा, तो हम क्या खाएंगे? यह अन्याय बर्दाश्त नहीं होगा।”

क्या है वन विभाग का पक्ष?
इस मामले में वन विभाग के अधिकारियों ने अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। हालांकि, सूत्रों के मुताबिक, विभाग का दावा है कि नारायण की जमीन वन क्षेत्र में आती है, जिसके चलते ट्रैक्टर जब्त किया गया। लेकिन नारायण इस दावे को खारिज करते हैं और कहते हैं कि उनकी जमीन का पट्टा सरकार द्वारा स्वीकृत है।

अब आगे क्या?
नारायण और उनका परिवार अब कानूनी लड़ाई के लिए तैयार है। वे मानवाधिकार आयोग के साथ-साथ स्थानीय प्रशासन से भी न्याय की उम्मीद कर रहे हैं। इस घटना ने एक बार फिर आदिवासी समुदाय के अधिकारों और वन विभाग की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए हैं। क्या नारायण को उनका ट्रैक्टर और सम्मान वापस मिलेगा? यह सवाल अब रायगढ़ की जनता के बीच गूंज रहा है।

एक आदिवासी परिवार की पुकार
नारायण सोरेन का परिवार आज सिर्फ अपने ट्रैक्टर के लिए नहीं, बल्कि अपने आत्मसम्मान और हक के लिए लड़ रहा है। उनकी कहानी उन तमाम आदिवासी परिवारों की कहानी है, जो अपनी जमीन और मेहनत के बल पर जीते हैं। यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या गरीब और मेहनती लोगों को उनके हक के लिए इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़नी चाहिए? इस मामले में निष्पक्ष जांच और त्वरित कार्रवाई ही नारायण और उनके परिवार को न्याय दिला सकती है।

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