कोरबा (आदिनिवासी)। कोरबा के कुसमुंडा जीएम कार्यालय पर शनिवार को एक भीड़ उमड़ पड़ी। ये वे लोग थे जिनकी जमीन को 40-50 साल पहले कोयला उत्खनन के लिए अधिग्रहण किया गया था। इन भू-विस्थापितों को तब से लेकर अब तक स्थाई रोजगार और पुनर्वास का हक नहीं मिला है। इन्हें बार-बार आश्वासन दिए जाने के बावजूद उनके प्रकरणों को निराकृत किया जा रहा है।
इसी कारण, इन लोगों ने छत्तीसगढ़ किसान सभा और भू-विस्थापित रोजगार एकता संघ के बैनर तले आक्रोश दिखाया। उन्होंने कार्यालय के अंदर घुसकर कब्जा कर लिया और धरना देने लगे। इस आंदोलन में महिलाओं की संख्या भी काफी थी। उन्होंने दोपहर का भोजन भी कार्यालय के अंदर ही किया। उनका कहना है कि वे अपने अधिकार के लिए लड़ते रहेंगे और कार्यालय को नहीं छोड़ेंगे।
इन लोगों की मांग है कि उन्हें जमीन के बदले बिना किसी शर्त के स्थाई नौकरी दी जाए। उन्होंने एसईसीएल को आरोप लगाया है कि वह उनके प्रति गंभीर नहीं है और उनके प्रकरणों को टालता रहता है। उन्होंने कहा कि जमीन किसानों का जीवन है और सरकार ने उनका जीवन छीन लिया है। इसलिए वे पैसा और ठेका नहीं चाहते, बल्कि स्थाई रोजगार चाहते हैं।
इस आंदोलन से कोयला प्रबंधन और जिला प्रशासन को बड़ा झटका लगा है। उन्होंने आंदोलनकारियों को समझाने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं माने। उन्होंने कहा कि वे बिलासपुर से उच्चाधिकारियों को बुलाने और लिखित में समझौता करने की मांग पर अड़े हैं। उन्होंने कहा कि वे अपने खातेदारों को रोजगार मिलने तक कार्यालय के अंदर ही बैठे रहेंगे।
इससे पहले, इन लोगों ने दो घंटे तक खदान बंद करके अपना विरोध दिखाया था। इस आंदोलन का नेतृत्व करने वाले लोगों में मोहन यादव, बृजमोहन, जय कौशिक, दीनानाथ, फिरत लाल, उत्तम दास, जितेंद्र, होरीलाल, अनिल बिंझवार, हेमलाल, हरिहर पटेल, कृष्णा, फणींद्र, अनिरुद्ध, चंद्रशेखर, गणेश, सनत आदि थे।
यह एक गंभीर मुद्दा है जिसका समाधान जल्द से जल्द निकालना चाहिए। भू-विस्थापितों को उनके हक का न्याय दिलाना चाहिए। उनके साथ सहानुभूति और उनके साथ सहानुभूति और सम्मान का व्यवहार करना चाहिए। उनकी आवाज को सुनना और समझना चाहिए। उनके लिए उचित रोजगार और पुनर्वास की व्यवस्था करना चाहिए। उनके साथ निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से बातचीत करना चाहिए। उनके साथ कोई भी शोषण या हिंसा नहीं करना चाहिए।