सोमवार, अप्रैल 7, 2025

बालको के खिलाफ कठोर रिपोर्ट: वन भूमि पर अवैध कब्जे और पेड़ कटाई के आरोप सिद्ध!

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नई दिल्ली (आदिनिवासी)। छत्तीसगढ़ में वन भूमि का दुरुपयोग और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना के मामले में भारत एल्युमिनियम कंपनी (बालको) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की केंद्रीय सशक्त समिति (सीईसी) ने कड़ी रिपोर्ट जारी की है। समिति ने न केवल बालको को दोषी ठहराया है, बल्कि राज्य सरकार की वन प्रबंधन प्रणाली पर भी गंभीर सवाल उठाए हैं।

सीईसी, जिसने दिसंबर में बालको का दौरा किया था, ने 127 पन्नों की विस्तृत रिपोर्ट और लगभग 5,000 पन्नों के दस्तावेजों के साथ अपनी जांच पूरी की है। रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष हैं:

– बालको ने सुप्रीम कोर्ट के स्थगन आदेश के बावजूद 2008 से 2013 के बीच 150 एकड़ से अधिक वन भूमि पर पेड़ों की कटाई की
– कंपनी ने 148 एकड़ वन भूमि पर बिना वैध वन अनुमति के कार्य किया
– छत्तीसगढ़ राज्य में राजस्व वन भूमि का प्रबंधन वन संरक्षण अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार नहीं हो रहा है

पुरानी शिकायतें हुईं साबित

यह मामला 2005 से चला आ रहा है, जब बालको पर वन भूमि पर अवैध कब्जा करने और विभिन्न निर्माण कार्य करने के आरोप लगने शुरू हुए थे।

– फरवरी 2008 में भूपेश बघेल और सार्थक संस्था की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बालको के कब्जे वाले क्षेत्र में पेड़ कटाई पर रोक लगा दी थी
– इसके बावजूद, कंपनी पर पावर प्लांट निर्माण के लिए बड़ी संख्या में पेड़ काटने के आरोप लगे
– इसी दौरान, निर्माणाधीन पावर प्लांट की चिमनी गिरने से लगभग 56 मजदूरों की मौत हुई (जिसे प्रबंधन और प्रशासन ने सिर्फ 41मौतें ही बताया था।)
– 2018 में, फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की टीम ने सैटेलाइट छवियों के माध्यम से पुष्टि की कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी 97 एकड़ वन भूमि और लगभग 50 एकड़ अन्य भूमि पर पेड़ काटे गए थे।

समिति की सिफारिशें

केंद्रीय सशक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में कई महत्वपूर्ण सिफारिशें की हैं:-

1. बालको को 148 एकड़ वन भूमि के लिए विधिवत वन अनुमति लेनी होगी।
2. कंपनी को वैकल्पिक वृक्षारोपण और अन्य क्षतिपूर्ति के लिए राशि जमा करनी होगी।
3. छत्तीसगढ़ राज्य में राजस्व वन भूमि के प्रबंधन पर कार्रवाई की जानी चाहिए।

राज्य के लिए नई चुनौती

समिति का यह निष्कर्ष कि छत्तीसगढ़ में राजस्व वन भूमि का प्रबंधन वन संरक्षण अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुरूप नहीं है, राज्य सरकार के लिए बड़ी चिंता का विषय बन सकता है।

छत्तीसगढ़ में छोटे-बड़े जंगलों पर अवैध कब्जे, अनधिकृत नामांतरण और वाणिज्यिक उपयोग की शिकायतें लगातार मिलती रही हैं। यदि सुप्रीम कोर्ट अपनी समिति की इस सिफारिश को स्वीकार करके कोई नई जांच शुरू करता है, तो राज्य के राजस्व और वन विभाग के अधिकारियों पर गंभीर कार्रवाई हो सकती है।

इस मामले का विकास आगे देखने योग्य होगा, क्योंकि यह न केवल एक बड़ी कंपनी की जवाबदेही का सवाल है, बल्कि पूरे राज्य में वन संरक्षण और प्रबंधन प्रणाली की समीक्षा का भी अवसर प्रदान करता है।

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