सोमवार, अप्रैल 21, 2025

बस्तर में आदिवासी संहार: नक्सलवाद के नाम पर जमीन हड़पने की साजिश? सोनी सोरी ने उजागर किए चौंकाने वाले सच!

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बस्तर में खून की होली: आदिवासियों के खात्मे की साजिश या माओवाद का अंत?

बस्तर, छत्तीसगढ़। जंगल, पहाड़ और प्रकृति की गोद में बसा बस्तर आज खून से लाल हो रहा है। यहां हर दिन गोलियां चल रही हैं, मासूम बच्चे मर रहे हैं, महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं और आदिवासियों की जमीन छीनी जा रही है। सरकार कहती है कि यह माओवादियों के खिलाफ जंग है, लेकिन आदिवासी कार्यकर्ता सोनी सोरी का दावा है कि यह सब एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा है। उनका कहना है कि नक्सलियों के नाम पर आदिवासियों को खत्म किया जा रहा है ताकि उनकी जमीन बड़े कॉरपोरेट घरानों को सौंप दी जाए। फ्रंटलाइन में प्रकाशित सोनी सोरी के साक्षात्कार को नारीवादी लेखिका मीना कंडासामी ने लिया, जिसे यहां साभार प्रस्तुत किया जा रहा है। आइए, इस दिल दहला देने वाली सच्चाई को जानें।

बस्तर में ये क्या हो रहा है?

सोनी सोरी की आवाज में दर्द और गुस्सा साफ झलकता है। वे कहती हैं, “हर दिन 5 से 10 आदिवासी गिरफ्तार किए जा रहे हैं। फर्जी मुठभेड़ों में उनकी हत्या हो रही है। इसका मकसद सिर्फ एक है- आदिवासियों को जंगलों से भगाना और खनिजों से भरी जमीन को कॉरपोरेट्स के हवाले करना।” बीजापुर जिले के गंगालूर जैसे इलाके, जहां खनन के लिए पहाड़ चिह्नित हैं, सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। यहां की कार्यकर्ता सुनीता पोत्तम को पिछले साल जेल में डाल दिया गया। मूलवासी बचाओ मंच (MBM) पर नवंबर 2024 में प्रतिबंध लगा दिया गया और इसके नेता रघु मिडियामी को भी गिरफ्तार कर लिया गया। सोनी पूछती हैं, “जो भी आदिवासियों के हक के लिए लड़ता है, उसे नक्सली क्यों कहा जाता है?”

सरकार की रणनीति: माओवाद का खात्मा या आदिवासियों का?

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ऐलान किया है कि ऑपरेशन कागर के तहत 31 मार्च, 2026 तक माओवाद को जड़ से खत्म कर दिया जाएगा। इससे पहले सलवा जुडूम और समाधान-प्रहार जैसे अभियान भी चलाए गए। लेकिन सोनी का कहना है कि ये अभियान माओवादियों के खिलाफ कम, आदिवासियों के खिलाफ ज्यादा हैं। वे बताती हैं, “सलवा जुडूम में सबसे ज्यादा नुकसान आदिवासियों का हुआ। बस्तर बटालियन, दंतेश्वरी फाइटर्स और कोबरा जैसे बलों को तैनात किया गया। गांवों में कैंप बनाए गए। हर तरफ सैन्य ताकत झोंकी गई, लेकिन मारे गए ज्यादातर गरीब किसान।”

सोनी का आरोप है कि मुठभेड़ में मारे गए लोगों को माओवादी बताकर इनाम की राशि बांटी जाती है। “2 लाख, 3 लाख, 60 लाख तक के इनाम की बातें होती हैं। लेकिन मरने वाले ज्यादातर आदिवासी किसान हैं। पोस्टमॉर्टम नहीं होता, गांव वालों को सूचना नहीं दी जाती। बस लाश को ले जाकर इनाम बांट दिया जाता है।” वे सवाल उठाती हैं, “यह पैसा कहां से आता है? इसका हिसाब कौन रखता है?”

जंगल में बमबारी, बच्चों की चीखें

बस्तर में हालात इतने खराब हैं कि लोग रात को सो नहीं पाते। सोनी बताती हैं, “2500 जवानों की नई बटालियन, ड्रोन, ग्रेनेड लांचर और हवाई निगरानी लाई जा रही है। गांवों पर बम गिराए जा रहे हैं। किसान खेतों में नहीं जा पाते, पानी नहीं भर पाते।” वे एक घटना याद करती हैं, “रात 1 बजे बम की आवाज से नींद खुली। मेरे साथ एक गर्भवती महिला थी। उसने कहा, ‘मेरे बच्चे को भी यह शोर परेशान करता है।'”

बच्चों की हालत और दयनीय है। इंद्रावती नदी के पास चार बच्चों को गोलियां लगीं। एक एक साल का बच्चा अपनी मां का दूध पी रहा था, जब उसके पिता को जंगल में मार दिया गया। सोनी कहती हैं, “घायल बच्चों को मरने के लिए छोड़ दिया जाता है, क्योंकि उनकी लाश पर इनाम नहीं मिलता।”

महिलाओं पर अत्याचार: बलात्कार बना हथियार

बस्तर की महिलाएं सबसे ज्यादा पीड़ा झेल रही हैं। सोनी का दावा है, “अर्धसैनिक बल घरों में घुसते हैं, महिलाओं के कपड़े फाड़ते हैं, उनके साथ बलात्कार करते हैं।” नरायणपुर में 5 अक्टूबर, 2024 को हुई मुठभेड़ के बाद भी ऐसी घटनाएं सामने आईं। एक महिला, सुधा, को उसके घर से घसीटकर जंगल में ले जाया गया और बार-बार बलात्कार के बाद मार दिया गया। फिर उसे नक्सली बता दिया गया। सोनी कहती हैं, “मैंने शव देखा, उस पर गोली का एक निशान नहीं था। फिर भी उसे मुठभेड़ में मारा गया बताया गया।”

महिलाएं कहती हैं, “हमें गोली मार दो, लेकिन बलात्कार मत करो।” यह उनकी चीख है, जो बस्तर के जंगलों में गूंज रही है।

विकास के नाम पर विनाश

सरकार कहती है कि बस्तर में विकास हो रहा है। चौड़ी सड़कें बन रही हैं, कैंप लगाए जा रहे हैं। लेकिन सोनी पूछती हैं, “ये सड़कें किसके लिए हैं? स्कूल, अस्पताल और पानी के लिए नहीं, बल्कि खनिज निकालने के लिए।” वे कहती हैं, “NMDC 75 साल से खनन कर रही है। लेकिन हमारे बच्चे जहरीला पानी पी रहे हैं, पहाड़ खोखले हो गए हैं। यह विकास नहीं, विनाश है।”

सवाल अभी बाकी हैं!

सोनी सोरी की बातें दिल को झकझोर देती हैं। क्या यह माओवाद के खिलाफ जंग है या आदिवासियों को खत्म करने की साजिश? इनाम का पैसा कहां से आता है? बच्चों और महिलाओं पर हमले क्यों? सरकार संवाद क्यों नहीं करती? बस्तर के जंगल और पहाड़ खामोश हैं, लेकिन वहां की चीखें हर संवेदनशील इंसान तक पहुंचनी चाहिए। यह सिर्फ बस्तर की नहीं, पूरे देश की कहानी है।
(साभार: फ्रंटलाइन में प्रकाशित साक्षात्कार से)

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