सोमवार, अक्टूबर 7, 2024

सिर्फ़ आदिवासी चेहरा भर नहीं ऐतिहासिक बदलाव के मोड़ पर है छत्तीसगढ

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असली छत्तीसगढ़िया चरित्र के चमकने का अवसर

चुनाव होते हैं! सत्ताधीश आते-जाते हैं लेकिन इस बार छत्तीसगढ एक ऐतिहासिक बदलाव के मोड़ पर है। कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा इस क्रांतिकारी परिवर्तन को रोकने-थामने की कोशिश की जा रही है। भूपेश बघेल ने जहरीली जातिवादी राजनीति का जो दौर शुरु किया था उसे भाजपा के राज्य नेतृत्व ने काटा नहीं बल्कि उसी का दूसरा वर्जन चलाने की कोशिश की। छत्तीसगढ का जो खास देहाती चरित्र है वह महानदी कछार के चारों ओर के आदिवासी क्षेत्रों से आता है। जब से छत्तीसगढ राज्य बना है यहां लूट-खसोट और अय्याशी के माहौल में बढोतरी हुई है। बाहर के कॉडर के आईएएस अफ़सर यहां प्रतिनियुक्ति पर आकर लूट मचाने में बहुत रुचि लेते थे। वीकेंड पर रायपुर एक अय्याशगाह बन जाता है और अगल-बगल के राज्यों भर से नहीं महानगरों तक से लड़कियां और मनचले यहां पहुंचते हैं। कुछ तकदीर-कुछ संघर्ष से आज ऐसा समय आया है कि साफ़-सुथरी सोच और जनकल्याण के क्रांतिकारी इरादे वाला नेतृत्व सत्ता के मुहाने पर आ गया है।

पिछले दो दिनों से आदिवासी मुख्यमंत्री की संभावना के विरोधियों ने रायपुर में मीडिया कैंपेन भी चला रखी है। अजीब तर्क दिया गया है कि भाजपा एक आदिवासी महिला को राष्ट्रपति बना चुकी है इसलिए छग में आदिवासी मुख्यमंत्री के बजाए ओबीसी-सामान्य प्रवर्ग का मुख्यमंत्री होगा। क्या आज भी आदिवासी को सत्ता से दूर रख कर सिर्फ़ दिखावटी पदों पर धकेला जाएगा? एक पोस्टर प्रचारित हो रहा है कि केंद्रीय कैबिनेट मंत्री (जनजातीय मामलों के) अर्जुन मुंडा को आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने नहीं, आदिवासी प्रतिनिधियों को पुचकारने भेजा गया है। छत्तीसगढ में ओबीसी मतों का विभाजन जिस तरह इन विधान सभा चुनावों में हुआ है उससे भाजपा की चार लोकसभा सीटें खतरे में हैं। क्या अभी भी भाजपा का शीर्ष नेतृत्व आदिवासी हितों की बली देकर ओबीसी राजनीति को हवा देगा यह देखना होगा। रमन सिंह आदिवासी हित-विरोधी नीतियों के विरोध के खिलाफ़ 2013 का विधानसभा चुनाव भारी मुश्किल से सतनाम सेना के अपने दांव के कारण बचा पाए थे और फ़िर भाजपा को भयानक हार का मुंह 2018 में देखना पड़ा। क्या मोदीजी इन तथ्यों से नावाकिफ़ होंगे?

दुख की बात यह है कि अभी चुनाव जीते आदिवासी विधायक भी एकजुटता नहीं दिखा रहे। रमन सिंह का प्रभाव और अरुण साव के बाहरी सहयोगी आदिवासी प्रतिनिधियों को चुप रखने में अब तक कामयाब हैं। रामविचार नेताम, विष्णुदेव साय, केदार कश्यप, लता उसेंडी जैसे अनुभवी विधायक भी आदिवासी मुख्यमंत्री की खुल कर मांग नहीं कर रहे हैं क्योंकि इनका स्वार्थ सिर्फ़ खुद को मौका मिलने की संभावना तलाशने और खयाली पुलाव पकाने तक सीमित है। खुद रेणुका सिंह भाजपा के सहयोगियों से कह रही हैं कि रामविचार नेताम को मुख्यमंत्री बनना चाहिए और प्रधानमंत्री जी के विजन के मुताबिक किसी भी अन्य आदिवासी महिला के मुख्यमंत्री बनने पर वह साझा राय बनाने को तैयार हैं। वैसे दबाव-समूह जैसी चाहे कोशिश कर लें लेकिन भाजपा के लिए सबसे बेहतरीन ऑप्शन एक महिला, आदिवासी, गोंड़, अनुसूचित क्षेत्र प्रतिनिधि रेणुका सिंह ही हैं।

सामाजिक न्याय, महिला कल्याण, पर्यावरण संरक्षण, स्थानीय रोजगार, भू-माफ़िया नियंत्रण से नक्सल-निजात और साहसी प्रशासनिक सुधारों का रेणुका सिंह का एजेंडा अभी ही छन-छन कर जाहिर हो रहा है। ऐसे में आदिवासी और दलित प्रवर्गों के एकसाथ समर्थन के अलावा अनारक्षित और ओबीसी प्रवर्गों के पिछड़े हिस्सों में भी रेणुका सिंह के छग मुख्यमंत्री बनने की खबर से भारी उत्साह है। रेणुका सिंह सिर्फ़ आदिवासी चेहरा भर नहीं, छत्तीसगढ प्रशासन की नई सोच-नया सलीका लेकर आ रही हैं।

रेणुका सिंह की टीम ने सोशल मीडिया में दूरगामी प्रशासनिक सुधार के कुछ मजबूत कदम प्रस्तावित किए हैं:

1. भू-माफ़िया के खिलाफ़ कार्रवाई-आधारित नक्सल ऑपरेशंस सुरक्षा सलाहकार की नियुक्ति।
2. 2028 तक छग राज्य को ऋण-मुक्त बनाने के लिए सर्वत्र मितव्ययिता मुहिम।
3. राज्य प्रशानिक अभिकरण की पुनर्स्थापना ताकि सर्विस मामलों के लिए हाई कोर्ट पर बोझ घटे।
4. संचालक-स्वास्थ्य का पद (IAS) समाप्त कर राज्य आयुर्विज्ञान परिषद अध्यक्ष पद पर मेडीकल विशेषज्ञ की नियुक्ति।
5. शासन कार्यपालिक नियम (अंतर्गत, अनुच्छेद 167) में बदलाव ताकि विधेयकों पर फ़ैसले तेजी से लिए जा सकें।

इसी तरह रेणुका सिंह की टीम ने बेहद रचनात्मक जन-कल्याण कार्यक्रम भी प्रस्तावित किए हैं:

1. राज्य की हर बस्ती /कॉलोनी में सुपोषण मंडलियों का गठन और मांग-आधारित शासकीय आर्थिक सहयोग।
2. पुलिस थानों और शासकीय अस्पतालों में सहायी-स्वयंसेवकों की व्यवस्था समेत टाईम-गारंटी।
3. धूल-मुक्त, कचरा-मुक्त छत्तीसगढ के लक्ष्य के साथ राज्य भर के फ़ुटपाथों-गलियों-नालियों में सफ़ाई-हरितकरण मुहिम।
4. एक लाख ताल-तलैया की खुदाई-सफ़ाई मुहिम।
5. राज्य की हर बस्ती /कॉलोनी में सांस्कृतिक-व्यायाम मंडलियों का गठन और मांग-आधारित शासकीय आर्थिक सहयोग।
अब सबको रविवार 10 दिसंबर की विधायक दल की बैठक का इंतजार है। क्या छत्तीसगढ के जन-नायक शहीद वीर नारायण सिंह के जन्म-दिन पर प्रधानमंत्री जी इस राज्य को क्रांतिकारी बदलाव का तोहफ़ा देंगे, या कि आदिवासी-चेतना के मुंह पर मध्य-प्रदेश की तरह राजनैतिक मूत्रकांड होगा? यह देखना अभी बाकी है। -योगेश कुमार ठाकुर

(लेखक आदिवासी छात्र संगठन के लीडर हैं)
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