गुरूवार, नवम्बर 21, 2024

खम्हरिया में किसानों की बेदखली पर रोक लगाने की मांग: माकपा ने उठाई आवाज

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मूल खातेदारों की भूमि वापसी के आदेश की अनदेखी, माकपा का जिला प्रशासन पर गंभीर आरोप

कोरबा (आदिनिवासी)। एसईसीएल कुसमुंडा क्षेत्र और जिला प्रशासन द्वारा संयुक्त कार्यवाही करते हुए ग्राम खम्हरिया तहसील दर्री में किसानों से भूमि खाली कराने की कोशिश की जा रही है। यह कार्यवाही 1983 में पारित अवार्ड के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए की जा रही है, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि 20 वर्षों के बाद मूल खातेदारों को जमीन वापस की जानी चाहिए। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के जिला सचिव प्रशांत झा ने इस अन्यायपूर्ण कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की है।
सरकार की अधिसूचना और न्यायालय के आदेश
प्रशांत झा ने जानकारी देते हुए बताया कि राज्य के कोयला खदान के विकास हेतु 1978 में ग्राम खम्हरिया की भूमि का अधिग्रहण किया गया था। इस भूमि को मध्यप्रदेश भू-राजस्व सहिता 1959 की धारा 247/1 के तहत अधिग्रहण किया गया था। एसईसीएल के तत्कालीन प्रबंधक ने कोयला उत्खनन के लिए अतिरिक्त कलेक्टर से अनुमति मांगी थी, जिसपर 1983 में आदेश पारित किया गया था। इसमें पांच शर्तें शामिल थीं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण थी कि 20 वर्षों के बाद जमीन भू-स्वामियों को वापस की जानी चाहिए।

अनुचित पुनर्वास और वर्तमान स्थिति
प्रशांत झा ने कहा कि उक्त आदेश में किसी अन्य गाँव को बसाने का प्रावधान नहीं था, फिर भी पुनर्वास कार्य किए गए जो अनुचित थे। वर्तमान में, ग्राम खम्हरिया के शेष हिस्से को जबरदस्ती खाली कराया जा रहा है जो किसानों के साथ अन्याय है। उन्होंने आरोप लगाया कि एसईसीएल ने बुनियादी सुविधाएं नहीं दी हैं और रोजगार के कई प्रकरण लंबित हैं।
माकपा की मांग और आंदोलन की चेतावनी
माकपा ने जिला प्रशासन से किसानों की बेदखली पर रोक लगाने और जमीन को मूल खातेदारों को वापस करने की मांग की है। प्रशांत झा ने कहा कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं, तो माकपा किसानों के समर्थन में आंदोलन करेगी। उन्होंने छत्तीसगढ़ किसान सभा के जिला सचिव दीपक साहू और सुमेंद्र सिंह कंवर के साथ खम्हरिया पहुंचकर ग्रामीणों का समर्थन किया और आगे अन्य प्रभावित गांवों तक आंदोलन का विस्तार करने की घोषणा की।
खम्हरिया के किसानों की भूमि वापसी का मुद्दा गंभीर है। प्रशासन को न्यायिक आदेशों का पालन करते हुए किसानों के हितों की रक्षा करनी चाहिए। माकपा की मांगें पूरी न होने पर आंदोलन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जो प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल उठाती है।

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