शुक्रवार, दिसम्बर 27, 2024

विकास के लिए किसान कब तक होता रहेगा बलिदान

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नरईबोध गोलीकाण्ड की 25 वीं बरसी पर विशेष

कोरबा/नरईबोध (आदिनिवासी)। अनाज उगाने वाले किसान का मोल आज तक किसी ने नहीं समझा, उनको हमेशा एक मशीन के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। आजादी के बाद से देश की विकास के नाम पर किसानो की बलिदान को हर रूप में देखा जा सकता है। आज़ादी के बाद अब तक देश के विकास परियोजनाओं में 2.5 लाख करोड़ हेक्टेयर जमीन अधिग्रहण किये जाने से 6 करोड़ लोग विस्थापन के शिकार बन चुके हैं।

छत्तीसगढ़ राज्य के कोरबा जिले को आद्योगिक नगरी के रूप में स्थान दिया जाता है। यहाँ पर लगभग 1950 से शुरू हुआ जमीन अधिग्रहण कि कार्यवाही आज भी जारी है और आने वाले सालों में भी जारी रहेगा। जल जंगल जमीन के मालिक किसानो को विकास के नाम पर सर्वहारा बना देने कि नीति पर चलते हुए विनाश की दलदल में धकेलने के अलावे और कुछ नहीं हो रहा है ।

क्योंकि आज तक हुए अधिग्रहण के मामले में पुनर्वास ,रोजगार, बसाहट की मांगो को पूरा नहीं किया जा सका है। पुनर्वास गाँव बदहाली की आंसू बहाने को मजबूर हैं . ऐसे समय में जब हजारो किसानो की जमीन जिले के कोयला खदानों को विस्तार देने, बिजली घरों, रेल की पटरी बिछाने के लिए बदस्तूर जारी है। आज से 25 साल पहले एस इ सी एल के लिए जमीन छिनने के लिए हुए रक्तपात कि घटना को याद किया जाना चाहिए ।

सभी तरह के दिवस का आयोजन उत्साह के साथ मना लिया जाता है किन्तु किसान और भूविस्थापितो के दर्द ,उनकी पीड़ा उनकी कुर्बानी के लिए कोई ऐसा दिवस कि घोषणा नहीं कि गयी और न ही किसान अपने लिए यह तय कर पाया है ,हो सकता है कि इस दिन को आने वाला वक्त भूविस्थापितो के सम्मान में याद किया जाये इसकी तैयारी को लेकर भूविस्थापित एकजुटता दिवस के रूप में मनाने के लिए हो भी रही है।

एसईसीएल की कुसमुंडा परियोजना की लक्ष्मण खदान के लिए किसानो की लगानी जमीन सहित गौचर भूमि लगभग 21 एकड़ का अधिग्रहण किया जा रहा था। अधिग्रहण के लिए तत्कालीन दिग्विजयसिंह की नेतृत्ववाली कांग्रेस सरकार के द्वारा मंजूरी दी गयी थी। गाँव से महज 20 मीटर की दूरी पर एसईसीएल के द्वारा काबिज होना था और उत्खनन किया जाना था। इस बात को लेकर किसानो के द्वारा गाँव का पूर्ण अधिग्रहण की मांग की जा रही थी क्योंकि इससे पूर्व ही उत्खनन के लिए होने वाली ब्लास्टिंग के कारण ग्रामीणों को ,उनके घरो को नुकसानी उठानी पड़ रही थी ।

दिनांक 8 अगस्त 1997 को तहसीलदार ने कोटवार के द्वारा गाँव में मुनादी करायी , तहसीलदार 11 अगस्त 1997 को गाँव के प्राथमिक शाला के प्रांगण में 2 बजे गाँववालो की समस्याएं सुनकर उचित निराकरण करेंगे । उस दिन गाँव के हर किसान के चेहरे पर ख़ुशी झलक रहा था , आशा से लबरेज किसानो को यह मालूम नही था कि उनका यह दिन उनके पुरे गाँव के लिए मातम भरा दिन साबित होने वाला था .

उत्साह के साथ अपने न्याय की आस में ग्रामीण दोपहर 2 बजे से इकट्ठा होना शु⁷डीडीरू कर रहे थे किन्तु शाम 4 बजे तक तहसीलदार का आगमन नहीं हो पाया था । इसी बीच उनको पता चला कि SECL के अधिकारी अपने गार्डो के साथ बुलडोजर से उक्त 21 एकड़ के क्षेत्र में खुदाई का काम शुरू कर दिए है । बैठक स्थल से गाँव वाले धीरे धीरे खुदाई वाले स्थल में पहुंचना शुरू कर दिए और खुदाई की काम को शांतिपूर्वक रुकवा दिया गया ।

देर शाम लगभग 6-7 बजे तहसीलदार महोदय भी घटना स्थल पर अपने मातहतों के साथ पहुच गए और ग्रामीणों को बताया कि सरकार ने इस भूमि की उत्खनन कार्य के लिए SECL को अनुमति दे दिया है और वो इसे रोकने में अक्षम है । तब गाँव वालो ने इसकी जानकारी लिखित में देने के लिए कहा । इस बीच आसपास के थानो से बड़े पैमाने पर पुलिस बल भी पहुँच चुकी थी । तहसीलदार ने अधिग्रहण से जुडी पूरे प्रकरण लिखित रूप में पेश कर रहे थे पढ़ने के लिए और समीप ही हैण्डपम्प खोदने वाले की कैंडिल ले लिए थे । कोई उठाया हुवा था । तब तक लगभग रात्रि 8 बज चुके थे ।

अचानक किसी को समझ में नहीं आया कि एक पुलिस वाले ने कैंडिल को डंडे से मारकर तोड़ दिया तडाक कि आवाज के साथ कैंडिल चकनाचूर हो गया और वहां पर अन्धेरा छा गया और देखते ही देखते मौके पर मौजूद पुलिस के जवान उपस्थित 3 -4 सौ ग्रामीणों पर टूट पड़े । डंडे और बन्दुक की बट से ताबड़तोड़ हमला कर दिया किसी का जबड़ा टूटा ,किसी आँखे धँस गयी ,किसी हाथ टूट गया, किसी का पैर टूट गया । हाहाकार मच चुका था ।

इस अचानक हुए हमले से ग्रामीण इधर उधर भागने लगे । इसी बीच अचानक गोपाल दास को सामने पाकर इंस्पेक्टर ने अपने सर्विस रिवाल्वर से गोपाल के सर पर गोली मार दी, गोली सर से होकर गुजर गई मौके पर ही गोपाल की मौत हो गयी वहीँ दूसरे पुलिस वालो ने भी गोलियां चला दी जिससे फिरतु दास घटना स्थल पर गंभीर रूप से घायल हो गया जो अस्पताल पहुँचकर दम तोड़ दिया । अन्य घायल माखन यादव, जुगुल दास, कलसाय ,ढपढपहिन् ,गिधौरिन नामक (दोनों बूढी महिला ) को जिला अस्पताल में भर्ती किया गया था । जहां उनको देखने गए 17 लोंगो को पकड़कर जेल भेज दिया गया ।

मृत और घायल सहित 29 लोंगो के खिलाफ मामला बनाकर कोर्ट में केस फाइल किया गया । सालो साल चले केस की सुनवाई से भुविस्थापितो की मनोबल और किसानो की हौसला जवाब दे चुका था कुछ प्रशासनिक दबाव में आकर आखिरकार लगभग 10 साल केस चलने के बाद सुलहनामा के बाद केस खत्म किया गया ।

किन्तु जिन दोषी पुलिस अधिकारियों ने निहत्थे ग्रामीणों पर लाठी और गोली चलाई उन पर किसी तरह का अपराधिक मामला दर्ज न कर निर्दोष साबित कर दिया।

जमीन अधिग्रहण का यह सिलसिला 1997 के बाद समाप्त नहीं हुआ बल्कि वर्तमान में और तेजी के साथ जारी है। भूमि अधिग्रहण के लिए बनाये गए कानून और तरीको के खिलाफ देश भर में किसान और भूविस्थापितो का आन्दोलन का नतीजा है कि देश के सभी राजनैतिक पार्टियों की सहमती से नया भू-अधिग्रहण अधिनियम 2013 लागू किया गया है लेकिन अनुभव यह बताता है कि जिले में अधिग्रहित की जा रही भूमि के एवज में प्रभावित परिवारों को न तो उचित मुआवजा राशि और न ही बेहतर पुनर्वास और न ही कानून के तहत दी जाने वाली अन्य सुविधाएं ही दिया जा रहा है।

शासन-प्रशासन जिनका काम कानून को सही ढंग से अमल कराना है उन्ही कि छत्रछाया में कानून का खुलेआम उलंघन हो रहा है . वर्ष 1997 में जिस नरईबोध गाँव में एसईसीएल के द्वारा आशिंक अधिग्रहण से उपजे असंतोष के कारण दमन का शिकार होना पड़ा ,आज उसी गाँव सहित जिले के सैकड़ो गाँवो में नए नए कोयला खदान ,कोल ब्लाक ,रेल विस्तार ,पॉवर प्रोजेक्ट जैसी परियोजनाओ के लिए जमीन का अधिग्रहण कम्पनियों की अपनी शर्तो औछ जीडी जज ए बी 2²²⅔³22र नीतियों या कहे जोर जबरदस्ती जमीन छिनने कि कार्यवाही हो रही है ।

आम किसान जहां एक ओर सरकारी कम्पनियों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे है वहीँ दूसरी ओर निजी कम्पनियाँ अधिग्रहण के बदले दी जाने वाली सुविधाओ को देने से बचने के लिए दुसरे रास्ते का उपयोग कर जमीन पर कब्जा जमाने में लगी हुई है । ऐसे समय में भूविस्थापितों को अलग अलग रास्ते पे चलकर संघर्ष चलाने के बजाय एक मंच पर आकर अपनी आवाज बुलंद करने कि जरुरत है और एकजुटता स्थापित कर अपने बुनियादी अधिकार की रक्षा करना चाहिए।

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