मंगलवार, सितम्बर 10, 2024

विश्व आदिवासी दिवस: शासक वर्ग की उपेक्षा का शिकार जनजाति समाज

Must Read

सन 1994 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा लिए गए एक निर्णय के तहत, 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है। आमतौर पर ‘आदिवासी’ शब्द से उन लोगों को समझा जाता है जो आदि काल से संबंधित भूभाग में निवासरत हैं। हमारे देश के सरकारी दस्तावेजों में ‘जनजाति’ शब्द का उपयोग होता है और इन्हें मूलनिवासी भी कहा जाता है। हालांकि, ‘आदिवासी’ और ‘जनजाति’ शब्द समानार्थी नहीं हैं। ‘आदिवासी’ शब्द का निहितार्थ आदि काल से निवासरत से संबंधित है, जबकि ‘जनजाति’ शब्द एक विशेष समाज व्यवस्था से संबंधित है।

भारत में लगभग 700 से अधिक जनजाति समूह हैं, जिनमें करीब 75 कमजोर जनजाति समूह शामिल हैं। छत्तीसगढ़ में 42 जनजाति समूह हैं। आधुनिक विज्ञान ने यह खोज की है कि आधुनिक मानव का उद्भव दक्षिण अफ्रीका में हुआ है और वहीं से मनुष्य अलग-अलग टोली में विभिन्न समय पर दुनिया के विभिन्न हिस्सों में फैल गया है।

किसी भी समुदाय को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में शामिल करने के लिए मुख्य रूप से उनके आदिम लक्षण, विशिष्ट संस्कृति, भौगोलिक पृथकीकरण, समाज के एक बड़े हिस्से से संपर्क में संकोच, और पिछड़ापन इन मापदंडों को आधार बनाया जाता है। किसी भी मनुष्य समाज को जनजाति की श्रेणी में शामिल करने के लिए उनके आदि निवासी होना या नहीं होने का कोई संबंध नहीं है।

जनजाति समाज की खोज, परंपराएं, और शासन व्यवस्था का अध्ययन अमेरिका के हेनरी मॉर्गन ने किया था। विश्व आदिवासी दिवस आदिवासियों के अधिकारों के संरक्षण और उनके विकास पर बल देता है। जनजाति समाज जिनका जीवन का मुख्य साधन संग्रहण होता है, वे मुख्य रूप से वनोपज संग्रहण या शिकार कर ही अपनी जीवन व्यतीत करते हैं। अगर जंगल नहीं रहेगा तो जनजाति समाज के जीवन निर्वाह के साधन समाप्त हो जाएंगे। इसलिए जंगल के साथ जनजाति समाज का गहरा रिश्ता जुड़ा हुआ है। आधुनिक समाज के चश्मे से अगर हम जनजाति समाज को देखेंगे तो हम उनकी परंपरा, उनकी शासन पद्धति का सही निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकते।

मार्गन ने कहा है कि मानव ने अपना जीवन पैमाने की निचली सतह से आरंभ किया और धीरे-धीरे प्रयासों पर आधारित ज्ञान का भंडार जमा करते हुए मनुष्य सभ्यता की ओर अपना सफर तय किया। किसी भी समाज की रीति, परंपरा अपरिवर्तनीय नहीं हो सकती हैं। समाज परिवर्तन के साथ ही इन सभी परंपराएं, मान्यताएं भी परिवर्तित होना स्वाभाविक हैं।
आज जनजाति समाज की परंपराएं, मान्यताएं मुख्यधारा के मानव से भिन्न जरूर दिखती हैं, लेकिन दुनिया भर में आज जो समाज अपने आपको सभ्यता के उच्च शिखर पर पाते हैं, प्राचीन काल में इस सभ्य मानव की रीति-रिवाज, परंपरा, मान्यताएं भी किसी समय जनजाति समाज जैसी ही थीं। मॉर्गन ने इसी बात की खोज की थी कि अमेरिका में रहने वाले जनजाति समाज के लोग हों या अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, रोम, यूनान, भारत या मेक्सिको में जो लोग आज भी जनजाति समाज में रहते हैं, उनकी रीति-रिवाज, परंपराएं, मान्यताओं में कोई भिन्नता नहीं है।
जब हम समाज व्यवस्था और मूलनिवासियों के बीच के अंतर को घालमेल कर देते हैं, तो उस समाज व्यवस्था की विशेषता के बारे में सही निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकते। मुख्य सवाल यह है कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जो लोग आज भी जनजाति समाज में जीवन व्यतीत कर रहे हैं, उन समाजों का विकास होना आवश्यक है। दुनिया में अनेक मानव प्रजातियां इसलिए लुप्त हो गई हैं क्योंकि वे प्रकृति को जीत नहीं पाए या कहें तो प्रकृति के साथ संघर्ष में अपने आपको बचा नहीं सके। आज भी हमारे इस भूभाग में ऐसी अनेक जनजाति समाज के लोग हैं जो विलुप्त होने के कगार पर हैं।

विश्व आदिवासी दिवस में क्या यह संकल्प नहीं लिया जाना चाहिए कि दुनिया के किसी भी हिस्से में रहने वाले मनुष्य विलुप्त न हों? क्या तथाकथित मुख्यधारा और अपने आपको सभ्य होने का दंभ भरने वाले मनुष्य इस दिशा में गंभीर हैं? जिस तथाकथित सभ्य समाज का मुख्य उद्देश्य सिर्फ मुनाफे की हवस और शोषण पर आधारित हो, उस समाज के शासक वर्ग से मानवता की आशा करना ही बेईमानी है। विश्व आदिवासी दिवस कोई जश्न मनाने का दिन नहीं हो सकता है। यह समाज के सबसे उपेक्षित, वंचित समाज को विकसित करने का संकल्प लेने का दिवस है।
शासक वर्ग कभी नहीं चाहेगा कि समाज के इन उपेक्षित लोगों का विकास हो और वे भी समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनें। हमारा इतिहास बताता है कि किस तरह से शासक वर्ग ने जनजाति समाज के लोगों का उपयोग अपने मुनाफे के लिए किया है। अंग्रेजों ने असम के चाय बागानों में मजदूर के रूप में झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ के जनजाति समाज के लोगों का शोषण किया था। कोयला खदानों में इस समाज के लोगों का कितना निर्मम दोहन किया गया। यह सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है। ठेकेदारों और निजी मालिकों द्वारा इस समाज के लोगों का शोषण आज भी किया जाता है।

विश्व आदिवासी दिवस उस शोषण, उत्पीड़न को समाप्त कर एक बेहतर जीवन की ओर अग्रसर होने के लिए शपथ लेने का दिवस है।
आलेख: सुख रंजन नंदी 
(लेखक राजमिस्त्री मजदूर रेजा कुली एकता यूनियन के कार्यकारी अध्यक्ष हैं)


- Advertisement -
  • nimble technology
[td_block_social_counter facebook="https://www.facebook.com/Adiniwasi-112741374740789"]
Latest News

छत्तीसगढ़ मांझी समाज की कुलदेवी: संबलपुर की समलाई दाई का इतिहास

छत्तीसगढ़ के मांझी समाज के लिए उड़ीसा के संबलपुर स्थित समलाई दाई मंदिर का विशेष महत्व है। यह मंदिर न...

More Articles Like This