इस देश का गोंड आदिवासी समाज उत्तर प्रदेश में आज भी शेड्यूल्ड ट्राइब (अनुसूचित जनजाति) की श्रेणी में नहीं आता। भारत की आजादी से आज तक उत्तर प्रदेश में ऐसा हो रहा है, आखिरकार इतनी बड़ी गलती किसकी है? कौन है इसका जिम्मेदार?
उत्तर प्रदेश में गोंड समाज को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का शासनादेश करीब डेढ़ दशक पहले जारी हुआ था लेकिन आज तलक इसका पालन नहीं हुआ। प्रशासन गोंड आदिवासियों को आदिवासी होने का प्रमाण पत्र जारी नहीं कर रहा है। जिसको लेकर गोंड समाज के लोग लगातार धरना प्रदर्शन करने को बाध्य हो रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के जौनपुर जनपद में गोंड समाज की जनसंख्या 10 फ़ीसदी से ज्यादा है। डेढ़ दशक पहले प्रदेश सरकार ने इन्हें अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का एक शासनादेश जारी किया था, बावजूद इसके प्रशासन इस शासनादेश को लगातार दरकिनार कर रहा है।
प्रशासन के इस रवैए के खिलाफ गोंड समाज ने 02 नवंबर 2004 से जौनपुर के जिलाधिकारी कार्यालय के समक्ष धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया था। करीब 02 माह के लंबे संघर्ष के बाद 22 जनवरी 2005 को प्रशासन राजी हुआ और केवल 03 व्यक्तियों को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र जारी कर इस आंदोलन का पटाक्षेप करा दिया था। इस दिन प्रशासन ने गोंड समाज के विकास, बीनू व प्रियंका को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र जारी किया था।
तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट रहे आरके राम ने उस दौरान कहा था कि अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई है। इस समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही प्रमाण पत्र जारी किये जाएंगे।
दरअसल जौनपुर जिले में नवंबर 2004 में जब गोंड समाज को अनुसूचित जनजाति का जाति प्रमाण पत्र जारी करने के लिए आंदोलन प्रारंभ किया गया था तो उस वक्त जौनपुर जिले की आबादी तकरीबन 40 लाख थी। इनमें तकरीबन ढाई लाख लोग गोंड समाज के थे, जो अब बढ़कर 05 लाख के पार हो गए हैं।
गोंड समाज के नेता विनोद गोंड बताते हैं कि “राजनीतिक दल हमारी मांगे पूरी कराने के लिए सिर्फ आश्वासन ही देते रहे हैं, लेकिन अब ऐसे चलने वाला नहीं है। हमारे समाज का धैर्य टूटता नजर आ रहा है। गौड समाज ने अब आंदोलन की राह पकड़ लिया है, अपने हक और अधिकार के लिए अब हम पीछे हटने वाले नहीं हैं।”
आंदोलन की राह पर गोंड आदिवासी समाज
जौनपुर के मछलीशहर, मड़ियाहूं, शाहगंज, केराकत व बदलापुर तहसील में भारी संख्या में गोंड़ समाज के लोग निवास करते हैं। पूर्वांचल के सोनभद्र, मिर्जापुर, चंदौली, आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, सिद्धार्थनगर, देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज सहित झांसी, उन्नाव इत्यादि जनपदों में भी गोंड समाज की अच्छी खासी तादाद बताई जाती है। बावजूद इसके ये लंबे समय से अपने आदिवासी होने के प्रमाण पत्र के लिए आंदोलन करते आ रहे हैं।
अब सवाल उठता है कि आखिरकार उत्तर प्रदेश में आज तक उन्हें आदिवासी होने का प्रमाण पत्र क्यों नहीं दिया गया? और जब अनुसूचित जनजाति होने की प्रमाण पत्र के लिए शासनादेश जारी कर दिया गया है तो फिर उन्हें आदिवासी होने के प्रमाण पत्र जारी करने में सरकारी मुलाजिमों को परेशानी क्या है? आखिरकार क्यों इनके साथ ऐसा दुर्भावनापूर्ण राजनीतिक खेल खेला जा रहा है?
जन आंदोलनों के बाद ही जागती है सरकार
पिछले दिनों फरवरी 2023 के प्रथम सप्ताह में उत्तर प्रदेश के मऊ जनपद के कलेक्ट्रेट परिसर में अखिल भारत वर्षीय गोंड महासभा संगठन के बैनर तले लोगों ने जाति प्रमाण पत्र जारी करने की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन प्रारंभ किया था। लेकिन 03 दिन बाद प्रशासन ने आश्वासन देकर अनशन समाप्त करा दिया।
गोंड महासभा के जिलाध्यक्ष रमाकांत गोंड का कहना था कि “मऊ जिला प्रशासन हमारे समाज के लोगों को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र जारी नहीं कर रहा है और लगातार सिर्फ हीला हवाली कर रहा है।”
फरवरी 2021 में गोंड महासभा ने आदिवासी बाहुल्य जिले मिर्जापुर के कलेक्ट्रेट का घेराव कर जोरदार प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन के जरिए गोड जाति को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण देने और मिर्जापुर में अनुसूचित जनजाति के लोगों की संख्या को शून्य दिखाए जाने को निरस्त करने की मांग की गई थी।
गोंड आदिवासी समाज का लगातार घरना प्रदर्शन
इस प्रदर्शन में भारी संख्या में महिलाओं की भी भागीदारी रही। प्रदर्शन के दौरान लोगों ने आरोप लगाया है कि एक सोची समझी साजिश के तहत उनका अनुसूचित जनजाति (एसटी) जाति प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जा रहा है। अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र न होने से वो कई योजनाओं का लाभ पाने से वंचित हो जा रहे हैं।
प्रदेश में अनुसूचित जनजाति की संख्या कम दिखाने का षड्यंत्र
आरोप है कि ब्लॉक द्वारा उन्हें जाति प्रमाणपत्र जारी नहीं किया जा रहा था, जिससे उन्हें आवास योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा था। इसके लिए वह तहसील से लेकर ब्लॉक अधिकारियों के चौखट पर कई बार गुहार लगा चुके थे। यहां तक कि उनके पक्ष में ग्राम प्रधान ने भी स्वीकृत दे दी थी, बावजूद इसके उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज साबित हो रही थी।
आश्चर्य की बात तो यह है कि रमाकांत की बेटी को चुनार तहसीलदार द्वारा 2018 में अनुसूचित जनजाति का जाति प्रमाणपत्र जारी किया गया था, ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब बेटी को जाति प्रमाणपत्र जारी कर दिया गया तो फिर पिता और माता को जाति प्रमाणपत्र देने में क्या समस्या आड़े आ रही है?
यह स्पष्ट होता है कि अधिकारी मनमानी और अपनी हठधर्मिता पर आमादा हैं। हालांकि बाद में इस मामले में जीत रमाकांत की होती है वह अपना हक पाने के लिए ना केवल संघर्षरत थे बल्कि सफलता भी उन्हें मिली।
उत्तर प्रदेश के गोंड आदिवासी लोगों को अनुसूचित जनजाति का प्रमाणपत्र जारी करने की मांग के संदर्भ में मिर्जापुर जिलाधिकारी की अध्यक्षता में 01 फरवरी 2021 को कलेक्ट्रेट सभागार में बैठक हुई थी। जिसमें उप जिलाधिकारी सदर व तहसीलदार सदर के साथ साथ गोंड समाज के लोग भी शामिल थे।
बैठक में गोंड समाज की ओर से पूर्व सेक्टर कमीश्नर केएन गोंड, रामप्यारे गोंड, एडवोकेट ज्ञानेन्द्र ध्रुवे, लवकुश गोंड, शिव कुमार गोंड, कमलेश कुमार गोंड, एडवोकेट प्रभाकर गोंड, बृजेश कुमार गोंड, सूरज कुमार गोंड शामिल थे।
इस बैठक में सेवानिवृत्त कमीश्नर केएन गोंड ने उत्तर प्रदेश सरकार के शासनादेश और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों हवाला देकर बताया कि गोंड अनुसूचित जनजाति के लोग पूरे मिर्जापुर जनपद में पाये जाते है।
अखिल भारत वर्षीय गोंड महासभा का आंदोलन
मामले का निस्तारण कर अनुसूचित जनजाति प्रमाणप्रत्र जारी करने के लिए तहसीलदार सदर और उप जिलाधिकारी सदर ने जिलाधिकारी से एक सप्ताह का समय देने की मांग की, जिस पर गोंड आदिवासी समाज के लोग व जिलाधिकारी मिर्जापुर ने अपनी सहमति दी। लेकिन गोंड समाज के लोग आज भी अनुसूचित जनजाति का जाति प्रमाण पत्र हासिल करने के लिए दर-दर भटकते हुए नजर आ रहे हैं।
अखिल भारत वर्षीय गोंड महासभा ने आरोप लगाया कि मिर्जापुर जिले सहित पूर्वांचल के कई जनपदों में अनुसूचित जनजाति के लोगों को शून्य दिखाए जाने से यह समाज कई योजनाओं से महरूम हो जा रहा है।
मिर्जापुर कलेक्ट्रेट में धरना प्रदर्शन के दौरान लोगों ने आरोप लगाया कि मिर्जापुर के सदर तहसील के ग्राम बेलन के लेखपाल द्वारा खुलेआम गोंड जाति के लोगों को अनुसूची जनजाति का प्रमाणपत्र जारी करने के लिए रुपये की मांग की जा रही है।
आरोप यह भी लगाया गया कि लेखपाल को उप जिलाधिकारी व तहसीलदार सदर का संरक्षण प्राप्त है। मांग पूरी न होने पर जाति प्रमाण पत्र निरस्त कर दिया जाता है, जबकि जिले में गोंड अनुसूचित जनजाति के लोग काफी संख्या में पाए जाते हैं।
हालांकि इस संदर्भ में तत्कालीन जिलाधिकारी प्रवीण कुमार लक्षकार ने गोंड समुदाय के प्रतिनिधि मंडल को 1 फरवरी को संपूर्ण दस्तावेज के साथ मिलने का समय देते हुए उनका धरना समाप्त करवा दिया था।
गौरतलब है कि अपने हक-हकूकों की लड़ाई के लिए गोंड समाज का यह कोई पहला धरना प्रदर्शन नहीं है। लंबे समय से ये लोग अपने हक-अधिकार के लिए खासकर अनुसूचित जनजाति का प्रमाणपत्र जारी करने के लिए संघर्ष करते आए हैं पूर्वांचल के कई जनपदों में लोग धरना प्रदर्शन करने के लिए विवश हुए हैं।
मांगों को लेकर गोंड समाज का आंदोलन
इसे मनमानी और हठधर्मिता नहीं तो और क्या कहेंगे कि एक तरफ जहां उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पारदर्शी नीतियों एवं सरकारी योजनाओं का शत-प्रतिशत लाभ पात्रों को उपलब्ध कराने का दावा करती है, लेकिन वहीं उनके अधिकारी मनमानी पर अमादा हैं।
मिर्जापुर जिले के सीखड़ विकास खंड के सिल्पी गांव निवासी रमाकांत की अपनी एक अलग ही व्यथा रही है, उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी संगीता देवी के नाम प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के तहत आवास आवंटित किया गया था, लेकिन उसमें जाति प्रमाणपत्र का पेंच फंसा दिया गया।
इस संदर्भ में गोंड आदिवासी समाज के लोगों का कहना है कि यदि इतने लंबे, लगातार संघर्षों के बाद भी उनकी समस्याओं का निस्तारण नहीं हुआ और उन्हें अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र जारी करने में फिर से हीला-हवाले बरती गई तो वो बड़े पैमाने पर प्रदेश स्तरीय जन आंदोलन करने के लिए बाध्य होंगे।
-संतोष देवगिरी