रविवार, सितम्बर 8, 2024

हाथरस: एक बलात्कारी की चरणधूलि के लिए; अंधविश्वास, शोषण और मौतों का क्रूर सच

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हाथरस की घटना ने एक बार फिर से अंधविश्वास और शोषण के गहरे मुद्दों को उजागर कर दिया है। एक बलात्कारी की मँहगी कार के नीचे की धूल को चरणधूलि मानकर उसे पाने के लिए सड़कों पर उमड़ी भीड़ में 126 लोग कुचल कर मारे गए। यह घटना केवल एक दुर्घटना नहीं बल्कि हमारे समाज में व्याप्त पाखंड और शोषण की गवाही देती है।
अमीरों और गरीबों का भेद
यह पहली बार नहीं हुआ है जब गरीबों के साथ ऐसा अन्याय हुआ हो। कुम्भ, महाकुम्भ, और अन्य धार्मिक आयोजनों में अक्सर बदइंतजामी देखने को मिलती है, जिसमें गरीब लोग ही शिकार बनते हैं। वहीं दूसरी तरफ, जब अमीर लोग जुटते हैं तो सब कुछ सुव्यवस्थित होता है। यह भेदभाव हमारे समाज में गहराई तक व्याप्त है।

शोषक वर्ग का दृष्टिकोण
शोषक वर्ग गरीबों को कीड़े-मकोड़े समझता है, जिनकी जान की कोई कीमत नहीं होती। सरकार चलाने वाले लोग अस्पतालों में जाकर घायलों का हाल-चाल पूछकर घड़ियाली आंसू बहाते हैं, लेकिन वास्तविकता में कुछ नहीं बदलता।
अंधविश्वास का फैलाव
सवाल उठता है कि आखिर इस बलात्कारी में ऐसा क्या खास था कि लोग उसके गाड़ी के पहियों की धूल को चरणधूलि मानकर प्राण देने को तैयार हो गए? असल में, उसने खुद को भगवान घोषित कर रखा था और सत्संग में कहा था कि उसके चरणों की धूल से कष्ट दूर हो जाएंगे। यह बाबा पहले एक साधारण पुलिस कर्मी था जिस पर यौन शोषण के कई आरोप लगे। जेल से छूटने के बाद उसने खुद को भगवान घोषित कर दिया और गरीब जनता को ठगने लगा।

संवैधानिक अधिकार और शोषण
हमारे संविधान में सभी नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता, और समानता का अधिकार दिया गया है, लेकिन असल में यह अधिकार केवल नाम मात्र के लिए हैं। शोषक वर्ग इन्हीं अधिकारों का फायदा उठाकर जनता को ठगता है। पाखंडी साधु-संतों को संवैधानिक अधिकार का हवाला देकर गिरफ्तार नहीं किया जा सकता, जो कि एक बड़ी विडंबना है।
सरकार और शोषण का गठजोड़
सरकार गरीब जनता से टैक्स तो वसूलती है लेकिन उनके लिए शिक्षा, चिकित्सा, और रोजगार की उचित व्यवस्था नहीं करती। शोषक वर्ग चाहता है कि जनता अपनी मांगें उनसे न करके पाखंडी बाबाओं और धार्मिक स्थलों से करे। इसलिए बाबाओं का पूंजीपतियों और नेताओं से गहरा नाता रहता है।

कबीर का सच्चा संदेश!
कबीर ने कहा है, “दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय।” इसका अर्थ है कि बाबाओं के पास बढ़ती भीड़ जनता के बढ़ते दुःख को दर्शाती है। महंगाई, बेरोजगारी और अन्य समस्याओं के कारण लोग बाबाओं की शरण में जा रहे हैं।
विज्ञान बनाम अंधविश्वास
आज के विज्ञान युग में अंधविश्वास का यह फैलाव चिंताजनक है। शोषक वर्ग वैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग करके विज्ञान के खिलाफ लड़ाई छेड़े हुए है और आम जनता को विज्ञान से दूर कर रहा है। हमें यह तय करना होगा कि हमारे देश का उद्धार विज्ञान से होगा या अंधविश्वास से।
इस घटना ने हमारे समाज में व्याप्त अंधविश्वास, शोषण और पाखंड को स्पष्ट रूप से उजागर किया है। यह समय है कि हम इन मुद्दों पर गंभीरता से विचार करें और एक न्यायपूर्ण और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं।
(आलेख : रजनीश भारती)
जनवादी किसान सभा


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