नई दिल्ली (आदिनिवासी)। अमेरिकी शोध फर्म वाइसरॉय रिसर्च के एक सनसनीखेज पत्र ने भारत के वित्तीय और खनन मंत्रालयों में खलबली मचा दी है। इस पत्र में वेदांता समूह पर हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (HZL) की संपत्तियों के सुनियोजित दोहन का आरोप लगाया गया है, जबकि भारत सरकार की इसमें अभी भी 29.54% हिस्सेदारी है। यह पत्र, जिसे 22 जुलाई को जारी किया गया, केंद्रीय वित्त मंत्री, खनन मंत्री, DIPAM और प्रमुख विपक्षी नेताओं को संबोधित है, और इसमें गंभीर गवर्नेंस की खामियों, संबंधित पक्ष के लेन-देन (related party transactions) और दीर्घकालिक शेयरधारकों के हितों की अनदेखी के गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
आरोप: 1,500 करोड़ रुपए की हेराफेरी और मुनाफाखोरी
वाइसरॉय रिसर्च का मुख्य आरोप है कि 1,500 करोड़ की राशि संबंधित पक्ष के लेन-देन और ब्रांड फीस के माध्यम से निकाली गई है, जिसका HZL को कोई प्रत्यक्ष लाभ नहीं हुआ है। इसके अतिरिक्त, वित्तीय वर्ष 2018 से अब तक 80,000 करोड़ से अधिक का लाभांश (dividend) वितरित किया गया है, जो कई बार वार्षिक मुनाफे से भी अधिक है। इससे कंपनी के आंतरिक भंडार (reserves) की समाप्ति का संकेत मिलता है।
ऊर्जा सौदे से 300 करोड़ का सालाना घाटा
चिंताजनक बात यह है कि Serentica, जो वेदांता समूह से जुड़ी कंपनी है, के साथ ऊर्जा आपूर्ति के सौदे से HZL को अगले 30 वर्षों तक हर साल ₹300 करोड़ का नुकसान होगा। साथ ही, Minova Runaya, Serentica और वेदांता से संबद्ध अन्य कंपनियों के साथ संदिग्ध अनुबंधों के माध्यम से भारत की संपत्तियों को अपतटीय (offshore) कंपनियों में स्थानांतरित किया जा रहा है। वाइसरॉय रिसर्च के अनुसार, “यह केवल खातों का मामला नहीं है, यह भारत की दौलत को बाहर भेजने की एक साजिश है।”
गवर्नेंस पर गंभीर सवाल
वाइसरॉय ने HZL के निदेशक मंडल (Board) की संरचना पर भी सवाल उठाए हैं, जो लगभग पूरी तरह से वेदांता से जुड़े सदस्यों द्वारा नियंत्रित है। पत्र में भारत सरकार से 2002 के शेयरधारक समझौते के तहत 5 स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति की मांग की गई है, जिसे सरकार ने अब तक नजरअंदाज किया है। ब्रांड फीस समझौते को सरकारी निदेशकों की अनुमति के बिना पिछली तारीख से लागू किया गया, जो SEBI के संबंधित पक्ष के लेन-देन नियमों और कॉर्पोरेट गवर्नेंस के मूल मानदंडों का उल्लंघन हो सकता है।
वाइसरॉय की आपातकालीन सिफारिशें
इन आरोपों के मद्देनजर, वाइसरॉय ने निम्नलिखित आपातकालीन सिफारिशें की हैं:
HZL बोर्ड में भारत सरकार द्वारा 5 स्वतंत्र निदेशकों की तत्काल नियुक्ति।
Minova Runaya और Serentica सहित सभी संबंधित पक्ष के लेन-देन का फोरेंसिक ऑडिट।
जब तक वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित न हो, तब तक लाभांश भुगतान पर रोक।
सभी रणनीतिक सेवा और ऊर्जा समझौतों की समीक्षा।
HZL के वित्तीय व्यवहार का CAG (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) से ऑडिट।
वित्त और खनन की स्थायी संसदीय समितियों के माध्यम से संसदीय जांच।
“यह निजी नहीं, राष्ट्रीय मामला है”
वाइसरॉय ने अपने पत्र में इस बात पर जोर दिया है कि HZL कोई साधारण कंपनी नहीं, बल्कि भारत के औद्योगिक आधार और खनिज आत्मनिर्भरता की रीढ़ है। इसे विदेशी शोषण और अपारदर्शी वित्तीय इंजीनियरिंग से बचाना अत्यंत आवश्यक है।
HZL, जो दुनिया के सबसे बड़े जिंक उत्पादकों में से एक है, भारत की रणनीतिक संसाधन सुरक्षा, विदेशी मुद्रा आय और औद्योगिक भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि इसे इसी तरह खोखला किया गया, तो इसका प्रभाव न केवल इस कंपनी पर, बल्कि पूरे राष्ट्र के आर्थिक आधार पर पड़ सकता है।
सरकारी चुप्पी जारी
इस समाचार के लिखे जाने तक, न तो वेदांता समूह, न ही वित्त मंत्रालय, खनन मंत्रालय या DIPAM ने वाइसरॉय के पत्र में उठाए गए गंभीर आरोपों पर कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया दी है। यह चुप्पी मामले की गंभीरता को और बढ़ाती है, जिससे राष्ट्र की संपत्ति की सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं।