लोकसभा चुनाव के पहले अभूतपूर्व तामझाम के साथ अयोध्या में जिस राम मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी थी, अचानक 22 महीने बाद उसके ध्वजारोहण के नाम पर हुआ आयोजन सिर्फ एक रस्मी कार्यक्रम नहीं है, धार्मिक आयोजन तो...
न्याय की नई परिभाषा
भारतीय न्यायपालिका ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि कानून का अर्थ केवल शब्दों की सीमाओं में नहीं, बल्कि न्याय के उद्देश्य में निहित होता है। सुप्रीम कोर्ट का हालिया निर्णय - जिसमें यह...
बालको की राख से उठती आवाज़: जब ‘विकास’ शोषण की फैक्ट्री बन जाता है
छत्तीसगढ़ की धरती पर एक बार फिर वही सवाल गूंज रहा है — "क्या यह देश कुछ गिने-चुने उद्योगपतियों की जागीर बन चुका है?" वेदांता समूह...
नागपुर में सनातन का जाप और संविधान पर उछलता जूता!
मजमून के मुकाबले जूते के चलने को अपने शेर में “बूट डासन ने बनाया, मैंने एक मजमूँ लिखा / मेरा मजमून रह गया डासन का जूता चल गया” में दर्ज...
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की स्थापना केवल एक राजनीतिक संगठन के गठन की घटना नहीं, बल्कि भारत के शोषित, पिछड़े और आदिवासी समुदायों के सामाजिक-राजनीतिक पुनरुत्थान की दिशा में एक ऐतिहासिक आवश्यकता थी। इस पार्टी के संस्थापक दादा हीरा सिंह...
भारतीय तिथि के अनुसार 2 अक्टूबर 2025 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना को सौ वर्ष पूरे हो चुके हैं। पिछले 11 वर्षों से आरएसएस, जो एक सांप्रदायिक-फासीवादी संगठन है, देश पर शासन कर रहा है और भारत...
आज, जब हम महान क्रांतिकारी और विचारक शहीद भगत सिंह की 118वीं जयंती मना रहे हैं, यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या उनके सपनों का भारत बन पाया है? भगत सिंह ने जिस शोषण-मुक्त और न्यायपूर्ण समाज की...
पूरे 2 साल 4 महीने 10 दिन बाद देश के प्रधानमंत्री को मणिपुर की याद आई और 13 सितम्बर को वे पर्यटन करने, पीड़ा से कराहते, डरे सहमे और असुरक्षित नागरिकों के बीच जा पहुंचे। 3 मई 2023 को...
आज जब दुनिया विकास की नई ऊंचाइयों को छू रही है, तब एक सवाल बार-बार उठता है - क्या इस विकास की कीमत इंसान और इंसानियत चुका रहे हैं? कल-कारखानों से लेकर खेतों तक, दिन-रात पसीना बहाने वाले मजदूरों...
धर्मस्थला में दबे सत्य और न्याय को उजागर करना जरूरी
हरे-भरे जंगलों और धीमी-धीमी बहती जलधाराओं से घिरा, और चूंकि यह बरसात का मौसम है - बहते पानी का तेज़ खिंचाव, बारिश की पुकार करते मोर और तोतों की चहचहाहट ;...