शुक्रवार, अक्टूबर 18, 2024

सरगुजा के हसदेव अरण्य में तनाव: कोयला खदान के लिए पेड़ों की कटाई रोकने पर ग्रामीणों और पुलिस में झड़प!

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सरगुजा (आदिनिवासी)। सरगुजा जिले के उदयपुर मुख्यालय में स्थित परसा ईस्ट केते एक्सटेंशन कोल खदान के लिए पेड़ों की कटाई पुलिस सुरक्षा के बीच जारी है। घाटबर्रा गांव में 200 पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई है, जबकि दूसरी ओर ग्रामीण अपनी जमीन और जंगल को बचाने के लिए संघर्षरत हैं। संसाधनों की कमी के बावजूद, ग्रामीण अपने परंपरागत हथियारों के साथ कटाई रोकने के लिए डटे हुए हैं। आज इसी मुद्दे पर पुलिस और ग्रामीणों के बीच झड़प हो गई, जिसमें तीन ग्रामीण गंभीर रूप से घायल हुए और उनके सिर पर चोटें आईं। वहीं, टीआई सहित कई पुलिसकर्मी भी चोटिल हो गए हैं।

हिंसक झड़प के बाद स्थिति तनावपूर्ण हो गई है, और परसा गांव को पूरी तरह से पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया है। हालात नियंत्रण में रखने के लिए अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया है।

गौरतलब है कि हसदेव अरण्य का यह क्षेत्र परसा ईस्ट केते बासन, परसा और केते एक्सटेंशन खदानों के लिए राजस्थान सरकार द्वारा आवंटित किया गया है। इन खदानों का संचालन अडानी ग्रुप के द्वारा किया जा रहा है, जो कोयला का एक बड़ा हिस्सा अपने बिजली संयंत्रों में उपयोग करता है। अडानी ग्रुप ने यहां दो चरणों में कोयला खनन किया है और अब परसा खदान में खनन के लिए पेड़ों की कटाई का कार्य शुरू हो गया है।

पर्यावरण संरक्षण और आदिवासी अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे ग्रामीणों का विरोध इस बात पर केंद्रित है कि आने वाले वर्षों में हसदेव अरण्य के जंगलों से 2 लाख 74 हजार से ज्यादा पेड़ों की कटाई की योजना है। यह जंगल सिर्फ पर्यावरणीय महत्व का नहीं है, बल्कि इस क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों की जीवनरेखा भी है।

यह स्थिति गंभीर है और इसमें दोनों पक्षों के हितों का संतुलन बनाए रखना जरूरी है। एक ओर, सरकार और अडानी ग्रुप का तर्क है कि कोयला खनन से क्षेत्र में रोजगार और विकास के अवसर बढ़ेंगे, वहीं दूसरी ओर, पर्यावरणविद् और स्थानीय ग्रामीण इस विकास के विनाशकारी परिणामों की ओर इशारा कर रहे हैं। यह सिर्फ पेड़ों की कटाई का मुद्दा नहीं है, बल्कि स्थानीय आदिवासी समुदायों की आजीविका और उनकी सांस्कृतिक पहचान से भी जुड़ा हुआ है।

यहां पारदर्शिता और संवाद की आवश्यकता है। सरकार और कंपनियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि विकास की प्रक्रिया में स्थानीय समुदायों के अधिकारों और पर्यावरण का सम्मान हो। यह संघर्ष दिखाता है कि विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच तालमेल बैठाना कितना आवश्यक है।

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