शनिवार, दिसम्बर 21, 2024

माता सावित्रीबाई फुले का जीवन संघर्ष और तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियां

Must Read

3 जनवरी: जयंती पर विशेष

माता सावित्रीबाई फुले भारत की पहली महिला शिक्षिका और महान समाज सुधारक थीं। उन्होंने अपने पति महात्मा ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ आजीवन संघर्ष किया। उन्होंने महिलाओं, दलितों और अनुसूचित जातियों के लिए शिक्षा, स्वावलंबन और समानता का मार्ग प्रशस्त किया।
माता सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के एक किसान परिवार में हुआ था। उनका विवाह मात्र 9 वर्ष की उम्र में 1840 में ज्योतिराव फुले से हुआ था। ज्योतिराव फुले उनके संरक्षक, गुरु और समर्थक थे। उन्होंने सावित्रीबाई को शिक्षा दी और उन्हें समाज सेवा में जुटने के लिए प्रेरित किया।

सावित्रीबाई फुले ने 1848 में अपने पति के साथ मिलकर बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की। यह भारत का पहला ऐसा विद्यालय था, जहां विभिन्न जातियों की लड़कियां शिक्षा प्राप्त कर सकती थीं। उस समय, लड़कियों की शिक्षा पर सामाजिक पाबंदी बनी हुई थी। सावित्रीबाई फुले को स्कूल जाते समय लोगों द्वारा पत्थर, कीचड़, गोबर और विष्ठा फेंका जाता था। लेकिन उन्होंने अपने पथ पर चलते रहे और अपने थैले में एक साड़ी लेकर चलती थीं, जिसे वे स्कूल पहुंचकर बदल लेती थीं।
सावित्रीबाई फुले ने अपने जीवन में अनेक सामाजिक कार्य किए। उन्होंने विधवाओं के लिए एक आश्रम की स्थापना की, जहां वे शिक्षा और रोजगार प्राप्त कर सकती थीं। उन्होंने विधवा विवाह को बढ़ावा दिया और खुद भी एक ब्राह्मण विधवा के पुत्र यशवंत राव को गोद लिया। उन्होंने दलितों के लिए एक कुंए का निर्माण किया, ताकि वे लोग आसानी से पानी ले सकें। उन्होंने बाल विवाह, सती प्रथा, छुआछूत और जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई।
सावित्रीबाई फुले एक कवयित्री भी थीं। उन्होंने मराठी भाषा में कई कविताएं लिखी, जिनमें उनके सामाजिक विचार और दर्द स्पष्ट रूप से झलकते हैं। उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता है।

सावित्रीबाई फुले का निधन 10 मार्च 1897 को प्लेग के कारण हुआ। उन्होंने प्लेग महामारी में लोगों की सेवा की और एक प्लेग से पीड़ित बच्चे की सेवा करते समय उन्हें भी प्लेग हो गया। उनका शव उनके पति के द्वारा जलाया गया।
माता सावित्रीबाई फुले भारत की ऐसी पहली महिला थीं, जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाने का साहस दिखाया। उन्होंने अपने जीवन को समाज के निर्धन, अशिक्षित और अविहित वर्गों की सेवा में समर्पित किया। उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर भारत के आधुनिकीकरण और समाज सुधार के लिए अनेक आंदोलन चलाए। उनका योगदान भारत के इतिहास में अमिट है।
माता सावित्रीबाई फुले को उनकी जयंती के अवसर पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, हम उनके दर्शनों और कार्यों को याद करते हैं। हम उनके द्वारा दी गई शिक्षा का उचित उपयोग करते हुए, समाज में न्याय, समानता और सौहार्द का संवर्धन करते हैं। हम उनके द्वारा रचित कविताओं को पढ़कर, उनके जीवन की प्रेरणा लेते हैं। हम उनके द्वारा दिखाई गई निःस्वार्थ सेवा का अनुसरण करते हुए, अपने देश और समाज के विकास में अपना योगदान देते हैं।
माता सावित्रीबाई फुले का जीवन एक उदाहरण है, जिससे हम सबको प्रेरित होना चाहिए। उन्होंने यह सिखाया कि शिक्षा एक शक्ति है, जिससे हम अपने और दूसरों के जीवन को बेहतर बना सकते हैं। उन्होंने हमें यह सिखाया कि समाज में विद्यमान अन्याय और भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाना हमारा कर्तव्य है। उन्होंने यह सिखाया कि हमें अपने सपनों को पूरा करने के लिए डरना नहीं चाहिए, बल्कि उनके लिए संघर्ष करना चाहिए।
माता सावित्रीबाई फुले को उनकी जयंती पर कोटि-कोटि नमन।

- Advertisement -
  • nimble technology
Latest News

वार्ड 41 बालको नगर की समस्याओं पर पार्षद गंगाराम भारद्वाज ने मुख्यमंत्री को लिखा पत्र!

पार्षद का निवेदन वार्डवासियों की समस्याओं का तत्काल समाधान करें कोरबा (आदिनिवासी)| नगर निगम कोरबा के वार्ड क्रमांक 41 के...

More Articles Like This