तुम्हारी हैवानियत का विरोध करने वाली स्त्रियों को
तुमने कुलटा अथवा राक्षसी बताकर उन पर हैवानियत की हदें पार कीं
उनका बलात्कार कर उन्हें ही लांक्षित कर समाज से निष्कासित किया और खुद देवराज कहलाए
उनके नाक-कान काट डाले
यही नहीं,
तुमने सीता और राधा के साथ भी छल किया
सरस्वती और गायत्री भी तुम्हारे हवस की शिकार होने से नहीं बच सकी
स्वयं ही अपराधी होकर भी
उनकी तरह तरह से अग्नि परीक्षाएं लीं
गर्भवती स्त्री तक को नहीं बख्शा और
शेर-भालुओं की खुराक बनने जंगल में छोड़ अपनी निर्दयता का परिचय दिया
उनके शरीर से रक्त का कतरा कतरा चूस कर मार डाला
उनकी मर्ज़ी के खिलाफ उन्हें स्वयंवरों में प्रदर्शित किया
नहाती हुई स्त्रियों के वस्त्र चुराकर छिपा दिए
जुए में दाॅव पर लगाकर केश पकड़ जमीन पर घसीटा
तथाकथित वीर और विद्वत्जनों की भरी सभा में उनके चीर हरण कर डाले
मंदिरों में देवदासी बनाकर उनके मांस को नोचते रहे
जलती हुई चिता में बार-बार जलाया
सती प्रथा छोड़ी तो बार-बार रेप कर जिंदा जलाया
तुम्हारे धर्मग्रंथों में स्त्रियों को देवी का दर्जा निहायत छलावा है
दरअसल स्त्री तुम्हारे लिए कभी पूज्य नहीं रही
तुमने उसे मात्र दासी और भोग्या ही समझा है
यह तुम्हारी वीरता का नहीं, कायरता का परिचायक है
नामर्दी का परिचायक है
वीर स्त्री की इज़्ज़त को कभी तार तार नहीं करता
वीर तो उसका रक्षाकवच होता है
तुमने तो उनकी रक्षा के हर घेरे को कुचल डाला
तुमने उनके साथ कौन सा अत्याचार नहीं किया
कभी उन्हें नाखूनों से नोचा-खसोटा
कभी, उनकी आंख फोड़ीं, स्तन काटे
उनके गुप्तांग में प्रस्तर खंड ठूंसे, डंडे डाले, गुप्तांग जलाए
तो कभी उनके शरीर के कई टुकड़े कर डाले
होलिका दहन की परंपरा उसी विकृत मानसिकता और हैवानियत का नतीजा है
यही तुम्हारी संस्कृति है!
तुम्हारी हैवानियत के इतने क़िस्से हैं
कि “सात समंद मी मसि करौं, लेखनी सब बनराइ
धरती सब कागद करौं तेरी हैवानियत लिखा न जाइ”
(आलेख : श्याम)