मंगलवार, सितम्बर 10, 2024

न्यू इंडिया का त्वरित न्याय

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भागवत जी की शिकायत एकदम सही थी। मोदी जी के विरोधियों ने देश में नेगेटिविटी इतनी ज्यादा बढ़ा दी है कि मीडिया से सब कुछ हरा-हरा दिखवाने के बाद भी लोग शिकायतें करने से बाज नहीं आते हैं। देखा नहीं, कैसे मामूली फौजी से अग्निवीर बनाकर इज्जत बढ़ाए जाने के एलान पर थैंक यू मोदी जी करना तो दूर, नौजवान सडक़ों पर ही अग्निवीर बनकर दिखाने पर उतर आए।

और अब नये इंडिया में मोदी जी ने अदालतों में फैसले की रफ्तार जरा-सी बढ़वाने की कोशिश की है, तो भाई लोग उसका भी विरोध करने खड़े हो गए हैं। बहाना यह है कि फैक्ट चैक वाले मोहम्मद जुबैर की जमानत की अर्जी खारिज करने का अदालत का फैसला, अदालत में सुनाए जाने से कई घंटे पहले पुलिस ने कैसे सुना दिया, जो गोदी मीडिया ने हाथ के हाथ चला दिया? अदालत फैसला बाद में सुनाए, पुलिस के जरिए सारी दुनिया पहले जान जाए, यह तो न्याय का लक्षण नहीं है। पुलिस फैसला कर रही है, अदालत बाद में उसपर मोहर लगा रही है–क्या यही नये इंडिया का न्याय है? कुछ लोग तो हाई कोर्ट से इसकी जांच कराने की भी मांग कर रहे हैं।

लेकिन, विरोधियों की इसमें न्याय-अन्याय का सवाल घुसेडऩे के जरिए, जुबैर की गिरफ्तारी को ही अन्याय बताने की कोशिश कामयाब नहीं होने वाली है। क्या हुआ कि बंदा नये जमाने का पत्रकार माना जाता है, क्या हुआ कि उसका खास काम सत्ताधारी और विपक्षी, हरेक झूठ और सच की, झूठ और सच के रूप में पहचान कराना है; उसकी गिरफ्तारी एकदम कानून के हिसाब से है। सिर्फ गिरफ्तारी ही क्यों, पुलिस की रिमांड भी और अब जेल भेजा जाना भी। फिर उसका विरोध क्यों? मोदी जी के नये इंडिया में कानून तोडऩे वाला सजा से बच नहीं सकता है, जब तक वह स्वयं प्रभु की शरण नहीं आ जाता है। जहां तक कानून तोडऩे की बात है, तो उसका फैसला भी अदालत देर-सबेर कर ही देगी। न्याय व्यवस्था में विश्वास रखने से कोई कैसे इंकार कर सकता है?

रही बात अदालत का फैसला, अदालत से घंटों पहले पुलिस के सुना देने की, तो यह न्याय में किसी कोताही का नहीं, न्याय की रफ्तार में तेजी के, न्याय व्यवस्था में चुस्ती के, नये एक्सपेरीमेंट का मामला है। पहले न्यायाधीश फैसला लिखता, फिर सुनाता, फिर पुलिस फैसला सुनकर मीडिया को सुनाती; बात को इस कान से उस कान तक डालने के इस नौकरशाहीपूर्ण खेल में बेकार टाइम वेस्ट क्यों करना? जब फैसला पुलिस को ही करना और सब को सुनाना है तो, क्यों न पुलिस ही फैसला लिख भी ले और सब को बता भी दे। रही न्यायाधीश की बात, तो उससे बाद में भी दस्तखत कराए जा सकते हैं, उसके लिए न्याय में देरी करना ठीक नहीं है बल्कि अन्याय है। और अन्याय, मोदी जी न खुद करेेंगे और न किसी को करने देंगे!

अब प्लीज इसकी कांय-कांय बंद करें कि जुबैर को किसी तीस साल पुरानी फिल्म की तस्वीर के, पांच साल पुराने ट्वीट के लिए, गिरफ्तार किया गया है! फिल्म और ट्वीट पुराना हुआ तो क्या हुआ, आहत होने वाली भावनाएं तो नयी हैं। ये नया इंडिया है। यहां भावनाओं पर पांच साल या तीस साल छोड़ो, पांच सौ, हजार साल पुरानी चोटों के लिए भी, तुरंता न्याय दिलाया जाएगा। ये मोदी का वादा है।

व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा

(व्यंगकार वरिष्ठ पत्रकार एवं ‘लोकलहर’ के संपादक हैं)


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