सोमवार, अक्टूबर 7, 2024

सुप्रीम कोर्ट ने कहा: मकान मालिक के इंकार कर देने के बाद भी किरायेदार को बिजली देने से मना नहीं किया जा सकता

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बिजली एक बुनियादी सुविधा है, जिससे किसी भी व्यक्ति को वंचित नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली (आदिनिवासी) Hindi.livelaw.in के अनुसार जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने मई, 2022 में पारित अपने आदेश में कहा है कि-

“मालिक द्वारा अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) जारी करने में विफलता/इनकार के आधार पर किरायेदार को बिजली देने से इनकार नहीं किया जा सकता। बिजली आपूर्ति प्राधिकरण को यह जांचने की आवश्यकता है कि क्या बिजली कनेक्शन के लिए परिसर आवेदक के कब्जे में है या नहीं?”

उल्लेखनीय है कि ये टिप्पणियां हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करने के निर्णय में की गई है। उक्त आदेश में किरायेदार के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया गया था, जिसने कथित तौर पर बिजली बोर्ड को प्रस्तुत अनापत्ति प्रमाण पत्र में मकान मालिक के जाली हस्ताक्षर किए।

इस मामले में किराएदारों ने हैदराबाद रेंट कंट्रोल एक्ट की धारा 17 के तहत रेंट कंट्रोलर, औरंगाबाद की अदालत में याचिका दायर कर मकान मालिक को उक्त दुकान पर बिजली कनेक्शन देने का निर्देश देने की मांग की थी। इस याचिका के खारिज होने के बाद किरायेदार ने “अनापत्ति” पत्र के आधार पर अपने नाम से बिजली की आपूर्ति के लिए आवेदन किया और उक्त दुकान को अपने नाम से बिजली की आपूर्ति प्राप्त की।



इसके बाद मकान मालिक ने एफआईआर दर्ज कर आरोप लगाया कि अनापत्ति पत्र जाली बनाया गया और किरायेदार द्वारा उसके भाई के हस्ताक्षर जाली थे। हाईकोर्ट ने आरोपी-किरायेदार की याचिका को मंजूर करते हुए एफआईआर रद्द कर दी। अदालत ने कहा कि किरायेदार को इस व्यवसाय को करने के लिए बिजली की जरूरत है, लेकिन मकान मालिक अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं दे रहा है।

हाईकोर्ट ने ये टिप्पणियां कीं: इसके अलावा, बिजली बोर्ड केवल यह सत्यापित करने के लिए मकान मालिक से अनापत्ति चाहता है कि किरायेदार का कब्जा अधिकृत है। मकान मालिक से ऐसी अनापत्ति प्राप्त करने के पीछे कोई अन्य उद्देश्य नहीं है। मकान मालिक किरायेदार को अपनी लागत पर ऐसी सुविधा का लाभ उठाने से नहीं रोक सकता। उपरोक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखने की जरूरत है और फिर आईपीसी में दी गई जालसाजी, धोखाधड़ी आदि की परिभाषा को देखने की जरूरत है। वर्तमान मामले में यह नहीं कहा जा सकता कि गलत रिकॉर्ड यदि कोई बनाया गया है तो पहले मुखबिर की संपत्ति या व्यक्ति को कोई नुकसान हुआ है।

अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस प्रकार नोट किया:

“अब यह कानून का सुस्थापित प्रस्ताव है कि बिजली बुनियादी सुविधा है, जिससे किसी व्यक्ति को वंचित नहीं किया जा सकता। मकान मालिक द्वारा अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करने में विफलता / इनकार के आधार पर किरायेदार को बिजली देने से इनकार नहीं किया जा सकता। वह सब बिजली आपूर्ति प्राधिकरण को यह जांचना आवश्यक है कि क्या बिजली कनेक्शन के लिए आवेदक संबंधित परिसर में कब्जा कर रहा है।”

हालांकि, पीठ ने पाया कि हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द करने में गलती की।

पीठ ने कहा कि-

“यह नहीं कहा जा सकता है कि रिकॉर्ड बनाना या हस्ताक्षर बनाना और/या हस्ताक्षर करना भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत अपराध नहीं है। हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 415 में धोखाधड़ी की परिभाषा को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया।”

अपील की अनुमति देते हुए खंडपीठ ने निर्देश दिया कि दी गई बिजली की आपूर्ति बंद नहीं की जाएगी। बिजली विभाग द्वारा बिजली की आपूर्ति के नियमों और शर्तों के अनुपालन के अधीन उसी के लिए शुल्क के भुगतान में बिजली आपूर्ति चालू रहेगी।

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