कोरबा (आदिनिवासी)। बालकोनगर में वेदांता/बालको प्रबंधन की नीतियों को लेकर चल रहा श्रमिक आंदोलन एक बार फिर निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है। बालको बचाओ संयुक्त संघर्ष समिति ने 27 नवंबर- बालको स्थापना दिवस के अवसर पर- वेदांता समूह के अध्यक्ष अनिल अग्रवाल के प्रतीकात्मक पुतला दहन की घोषणा की है। समिति ने इस कार्यक्रम के संबंध में जिला प्रशासन से सुरक्षा, शांति और संवाद के वातावरण को बनाए रखने हेतु आवश्यक हस्तक्षेप के लिए अनुरोध किया है।
30 अक्टूबर से जारी है शांतिपूर्ण विरोध, श्रमिकों में बढ़ती नाराज़गी
सेक्टर-04 स्थित आंदोलन स्थल पर समिति के नेतृत्व में 30 अक्टूबर 2025 से सतत धरना जारी है। श्रमिकों और निवासियों का आरोप है कि प्रबंधन द्वारा- श्रमिकों की समस्याओं की अनदेखी। संवादहीनता। श्रम एवं जन विरोधी निर्णय और मनमाने आदेश- ने माहौल को तनावपूर्ण बना दिया है।
संयोजक बी.एल. नेताम के अनुसार, “श्रमिकों के धैर्य की परीक्षा अब सीमा पर है। बातचीत के नाम पर सिर्फ आश्वासन मिल रहे, समाधान नहीं।”
समिति का आरोप: ‘ श्रमिक एवं स्थानीय हितों की अनदेखी, प्रबंधन का रवैया दमनात्मक’
समिति का कहना है कि वेदांता/बालको प्रबंधन की नीतियों ने वर्षों से काम कर रहे श्रमिकों में गहरा अविश्वास पैदा कर दिया है।
आवास, वेतन, स्थायीकरण, सुरक्षा और सम्मान से जुड़े मुद्दों पर प्रबंधन की उपेक्षा ने परिस्थितियों को जटिल बना दिया है।
समिति का दावा है कि जब लगातार प्रयासों के बाद भी प्रबंधन ने ठोस पहल नहीं की, तब 27 नवंबर को प्रतीकात्मक पुतला दहन के कार्यक्रम की घोषणा करनी पड़ी है। यह कदम “निराशा नहीं, बल्कि संवाद हीनता की मजबूरी” के रूप में देखा जा रहा है।
प्रशासन से शांतिपूर्ण माहौल सुनिश्चित करने की अपील
कलेक्टर को दिए गए पत्र में समिति ने दो मुख्य मांगें रखी हैं:-
🔸श्रमिकों की वास्तविक समस्याओं पर त्वरित और प्रभावी प्रशासनिक हस्तक्षेप, ताकि प्रबंधन समाधान के लिए बाध्य हो।
🔸 27 नवंबर के कार्यक्रम के दौरान आवश्यक सुरक्षा और शांतिपूर्ण माहौल की व्यवस्था, ताकि कोई अप्रिय स्थिति न बने।
पत्र में यह भी स्पष्ट किया गया है कि पुतला दहन कार्यक्रम पूरी तरह शांतिपूर्ण, लोकतांत्रिक और संवैधानिक दायरे में आयोजित होगा।
स्थानीय समुदाय में चिंता, लेकिन उम्मीद भी
विरोध के इस दौर ने बालकोनगर के सामाजिक और पारिवारिक जीवन पर भी प्रभाव डाला है।
आवास, नौकरी, रोजगार, व्यापार, और भविष्य की अनिश्चितता ने सामान्य परिवारों में तनाव बढ़ाया है, लेकिन स्थानीय लोगों में उम्मीद भी है कि प्रशासन के हस्तक्षेप से समाधान का रास्ता निकलेगा।
नीतिगत समाधान की आवश्यकता
यह विवाद सिर्फ श्रमिक–प्रबंधन संबंध का प्रश्न नहीं है, बल्कि उद्योग, रोजगार, सामाजिक स्थिरता और क्षेत्रीय विकास से भी जुड़ा है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर प्रबंधन और श्रमिकों के बीच भरोसे का पुल नहीं बनाया गया, तो इसका असर लंबी अवधि में उद्योग की उत्पादकता और सामाजिक संतुलन पर भी पड़ेगा।
बालकोनगर का ये संघर्ष अपने चरम पर है और 27 नवंबर का दिन इस आंदोलन की दिशा तय कर सकता है। कर्मचारियों की पीड़ा, प्रशासन की भूमिका, और प्रबंधन की जवाबदेही – तीनों का संतुलन ही आने वाले समय में बालको के भविष्य को सुरक्षित बना सकता है।
अब देखने की बात यह है कि प्रशासन और प्रबंधन इस टकराव को संवाद और समाधान की राह पर ले जाने के लिए कितनी तत्परता दिखाते हैं।





