बुधवार, अप्रैल 23, 2025

‘ऑपरेशन कगार’ की आड़ में आदिवासियों पर बढ़ता सैन्य दमन: राष्ट्रपति से तत्काल हस्तक्षेप की अपील

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दुर्ग (आदिनिवासी)। माओवाद-मुक्त भारत के नाम पर छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल सहित अन्य आदिवासी इलाकों में चल रहे सैन्य अभियानों ने जन-जीवन को गंभीर संकट में डाल दिया है। गृह मंत्रालय द्वारा मार्च 2026 तक माओवाद समाप्त करने की समय-सीमा निर्धारित किए जाने के बाद, ‘ऑपरेशन कगार’ के अंतर्गत राज्य में इज़रायली ड्रोनों, उन्नत हथियारों और सैन्य शिविरों का अभूतपूर्व विस्तार हो रहा है।

इन कार्रवाइयों के तहत पिछले कुछ महीनों में सैकड़ों निर्दोष आदिवासी मारे जा चुके हैं, और उनकी हत्या को ‘मुठभेड़’ का नाम देकर इनाम की व्यवस्था शुरू की गई है। ज़मीनी सच्चाई यह है कि इन अभियानों के ज़रिये राज्य ने संविधान और मानव अधिकारों को दरकिनार करते हुए बस्तर जैसे संवेदनशील इलाकों में युद्ध जैसी स्थिति बना दी है।

‘पाँचवीं अनुसूची’ के क्षेत्र में ग्राम सभाओं की अनुमति के बिना सुरक्षा शिविर स्थापित किए जा रहे हैं, जिससे आदिवासियों की भूमि, जल, जंगल पर अतिक्रमण हो रहा है। बस्तर की जनता, विकास की जगह अत्यधिक सैन्य उपस्थिति और भय के साये में जीवन जी रही है।

जन संगठन पर प्रतिबंध, नेताओं को निशाना

पिछले वर्ष अक्टूबर में सरकार ने ‘मूलवासी बचाओ मंच’ जैसे जन अधिकार संगठन पर छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा अधिनियम के तहत प्रतिबंध लगा दिया, जबकि यह संगठन अहिंसात्मक और लोकतांत्रिक तरीकों से अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहा था।
वहीं, हाल ही में तेंदूपत्ता बोनस में गड़बड़ी उजागर करने वाले लोकप्रिय आदिवासी नेता मनीष कुंजाम को भी राज्य पुलिस द्वारा निशाना बनाया गया, जो जनभावनाओं के साथ अन्याय है।

माओवाद के नाम पर कॉर्पोरेट हितों की तैयारी?

ऑपरेशन कगार के पीछे असली मंशा बस्तर जैसे खनिज-संपन्न इलाकों को कॉर्पोरेट कब्जे में देना प्रतीत होती है। सरकार द्वारा प्रस्तावित “एकीकृत विकास केंद्र” केवल दिखावा हैं, असल मकसद इन इलाकों में स्थायी सैन्य तैनाती है।

राष्ट्रपति महोदया से मांग

आदिवासी संघर्ष मोर्चा, महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी से निम्नलिखित मांग करता है:-

1. ऑपरेशन कगार के अंतर्गत हो रही न्यायेतर हिंसा व फर्जी मुठभेड़ों को तुरंत रोका जाए।

2. बस्तर और अन्य आदिवासी क्षेत्रों में सेना की स्थायी तैनाती पर पुनर्विचार हो।

3. जन अधिकार संगठनों पर लगे प्रतिबंध हटाए जाएं।

4. मनीष कुंजाम सहित सभी निर्दोष आदिवासी नेताओं व कार्यकर्ताओं की रिहाई सुनिश्चित की जाए।

5. मुठभेड़ों और हत्याओं की स्वतंत्र न्यायिक जांच कराई जाए।

6. आदिवासी क्षेत्रों में संविधान की पाँचवीं अनुसूची का पूर्ण पालन हो।

7. आदिवासियों को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सम्मानजनक जीवन का अधिकार मिले।

आदिवासी समाज न्याय, शांति और गरिमा के साथ जीने की लड़ाई लड़ रहा है। हम राष्ट्रपति महोदया से आग्रह करते हैं कि वे आदिवासियों की इस ऐतिहासिक पीड़ा को समझें, आवाज़ दें, और भारत के लोकतंत्र व संविधान की रक्षा हेतु हस्तक्षेप करें।

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