दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाले प्रकृति पूजक और रक्षक आदिवासी हमेशा मानवतावादी और सहिष्णु होते हैं, उन्होंने धर्म और संप्रदाय के नाम पर लोगों के बीच भेदभाव नहीं किया, इतिहास गवाह है कि हम सभी धर्मों के लोगों को स्वीकार करते आयें हैं। आज तक किसी भी आदिवासीओ ने किसी भी धर्म के लोगों का धर्मांतरण नहीं करवाया या किया है।
सही मायनों में हमने सामुदायिकता, सामूहिकता और सहकारिता की पैतृक पारिवारिक भावना को कायम रखते हुए उत्कृष्ट संस्कृति के साथ-साथ विरासत और परंपरा को संरक्षित किया है, यहां तक कि सदियों से शांतिपूर्ण आदिवासी समुदाय के लोगों द्वारा विदेशियों का भी स्वागत किया जाता रहा है। सदियों से क्षेत्रवादी और सामंतवादी विचारधाराओं वाले विदेशीयों को सहन किया जाता रहा है।
कुछ आदिवासियों का विरोधी संगठनों के वेतनभोगी असभ्य कर्मचारी और उनके नेता शैक्षणिक, कानूनी, संवैधानिक लोकतंत्र वाले देश में अपने हक़ और अधिकारों के लिए पिछले एक दशक में आदिवासी समुदाय की जन जागरूकता को जान गयें है और उनकी बोखलाहट हम समझते हैं, डरने के कारण वे सोश्यल मीडिया पर गाली गलौज पर उतर आए हैं और उनकी विकृत मानसिकता और उनके माता-पिता द्वारा दिए गए कुसंस्कार का प्रदर्शन कर रहे है।
आदिवासी समुदाय के स्वाभिमानी और मेहनती बहादुर लोग ऐसी फर्जी आईडी वाले नपुंसक “भौंकने वाले” असामाजिक तत्वों से बिल्कुल भी नहीं डरते हैं, इसी को ध्यान में रखते हुए हम आप आदिवासी विरोधियों को लिखने और बोलने में संयम बरतने की चेतावनी देते हैं।
सुनने में आया है कि इस तरह के आदिवासी विरोधी संगठन वाले हर गांव में बेरोजगार गुमराह युवकों को धर्म के नाम पर भ्रमित कर के आदिवासियों के विरुद्ध बोलने और लिखने के लिए पैसे दे रहे हैं, अगर यह सच है तो वे आदिवासी विरोधी संगठन पैसे के लालच में आदिवासी समुदाय के लिए जागरूकता अभियान चला रहे हैं उनके खिलाफ पैसे देकर फेक आईडी बनवाकर सोश्यल मिडिया में भड़का रहे हैं वो ही जिम्मेदार हैं।
पिछले कुछ समय से आदिवासी समुदाय के लोग ऐसी संस्थाओं और पालतू जानवरों की तरह उनकी नासमझ संतानों को जानने लगे हैं। सहिष्णु आदिवासियों के धैर्य की परीक्षा न लें। कृपया हमें “शांतिपूर्ण आदिवासी भारतीयों” को जातियों जातियों के बीच और धर्म और संप्रदाय के नाम पर नफ़रत फैला कर गृहयुद्ध लड़ने के लिए मजबूर न करें क्योंकि हम हिन्दू वर्णव्यवस्था के तहत नहीं आते हैं और हम आदिवासी कभी भी हिंदू, ईसाई, मुस्लिम, बौद्ध, सिख, जैन धर्म में नहीं गिने जाते, कृपया धर्म के नाम पर हमें गुमराह करने की कोशिश न करें।
जोहार कहना ही सही रहेगा।
सबको कल्याणकारी प्रकृति की जय हो।
-अरुण चौधरी