शुक्रवार, मई 9, 2025

भारतीय संविधान में आदिवासियों के अधिकार: 20 प्रमुख तथ्य जो हर भारतीय को जानना चाहिए

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“आदिवासी समुदायों के अधिकारों का मजबूत सहारा: जानिए संविधान की ऐसी धाराएं जो देती हैं उनको संरक्षण”

भारतीय संविधान ने आदिवासी समुदायों (अनुसूचित जनजातियों) के अधिकारों, संरक्षण और विकास के लिए अद्वितीय प्रावधान किए हैं। लेकिन अक्सर इनकी जानकारी की कमी के कारण आदिवासी समुदाय के लोग अपने हक से वंचित रह जाते हैं। आइए उन महत्वपूर्ण संवैधानिक धाराओं और कानूनों के बारे में जानें, जो आदिवासी समुदायों के लिए आशा की किरण हैं। 

1. गांव पंचायतों को मिला कानूनी दर्जा (अनुच्छेद 13)
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13(3) के तहत आदिवासी समुदायों की पारंपरिक ग्राम सभा या मुकदमी पंचायतों को कानूनी मान्यता मिली है। यह उनकी परंपराओं और स्थानीय न्याय प्रणाली को सुरक्षा देता है। 

2. शिक्षा में समान अवसर (अनुच्छेद 15)
अनुच्छेद 15(4) के तहत आदिवासी समुदायों की शैक्षणिक उन्नति के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। इसके तहत सरकार उनके लिए विशेष स्कूल, स्कॉलरशिप और प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाती है। 

3. आर्थिक और शैक्षणिक हितों का संरक्षण (अनुच्छेद 46)
अनुच्छेद 46 के तहत सरकार को आदिवासी समुदायों के आर्थिक और शैक्षणिक हितों को बढ़ावा देने का निर्देश दिया गया है। इसके तहत आदिवासी बच्चों के लिए आवासीय विद्यालय, स्वास्थ्य सुविधाएं और रोजगार योजनाएं चलाई जाती हैं। 

4. राजनीतिक प्रतिनिधित्व (अनुच्छेद 330 और 332)
लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में आदिवासी समुदायों के लिए आरक्षित सीटें हैं। यह प्रावधान उनकी आवाज़ को संसद तक पहुंचाने का माध्यम है। 

5. राष्ट्रीय आयोग की स्थापना (अनुच्छेद 338) 
अनुच्छेद 338(1) के तहत राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की स्थापना की गई। आयोग आदिवासी समुदायों के अधिकारों के कार्यान्वयन की निगरानी करता है और सरकार को सुझाव देता है। 

6. केंद्र का निर्देशात्मक अधिकार (अनुच्छेद 339)
अनुच्छेद 339(2) के तहत केंद्र सरकार राज्यों को आदिवासी समुदायों के कल्याण के लिए निर्देश दे सकती है। इसके तहत वन अधिकार, भूमि सुरक्षा और आर्थिक विकास के लिए योजनाएं बनाई जाती हैं। 

7. वित्तीय सहायता (अनुच्छेद 275)
अनुच्छेद 275 के तहत आदिवासी बाहुल्य राज्यों को विशेष वित्तीय सहायता दी जाती है। इसका उपयोग शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे के विकास में होता है। 

8. पांचवीं अनुसूची: आदिवासी क्षेत्रों का संरक्षण
पांचवीं अनुसूची के तहत आदिवासी क्षेत्रों में जनजातीय सलाहकार परिषदों का गठन किया गया। ये परिषदें स्थानीय मामलों के निर्णय में आदिवासी समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करती हैं। 

9. वन अधिकार अधिनियम, 2006
इस कानून के तहत आदिवासी और वनवासी समुदायों को वन भूमि पर अपने अधिकारों की मान्यता मिली। यह कानून उनके पारंपरिक जीवन जीने के अधिकार को मजबूत करता है। 

10. SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 
इस कानून के तहत आदिवासी समुदायों को उच्च जातियों के खिलाफ अत्याचार से सुरक्षा प्रदान की गई। इसके बावजूद कई मामलों में कार्रवाई की कमी बनी हुई है। 

11. पेसा अधिनियम, 1996 
पेसा अधिनियम ने पांचवीं अनुसूची के तहत आदिवासी क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन को मजबूत किया। इसके तहत ग्राम सभाओं को वन, जल और खनिज संसाधनों पर नियंत्रण का अधिकार दिया गया। 

12. आरक्षण और पदोन्नति (अनुच्छेद 16)
अनुच्छेद 16(4) और 16(4ए) के तहत आदिवासी समुदायों को सरकारी नौकरियों और पदोन्नतियों में आरक्षण का अधिकार मिला। यह उनकी सामाजिक और आर्थिक उन्नति में सहायक है। 

13. सांस्कृतिक संरक्षण (अनुच्छेद 29)
अनुच्छेद 29 के तहत आदिवासी समुदायों को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार है। इसके बावजूद कई आदिवासी भाषाएं विलुप्त होने के कगार पर हैं। 

14. पंचायती राज में आरक्षण (अनुच्छेद 243) 
अनुच्छेद 243(4) के तहत ग्राम पंचायतों में आदिवासी समुदायों के लिए सीटें आरक्षित हैं। यह उनकी स्थानीय सरकार में भागीदारी सुनिश्चित करता है। 

15. जनजातीय कार्य मंत्रालय की स्थापना (1999)
अक्टूबर 1999 में जनजातीय कार्य मंत्रालय की स्थापना की गई। यह मंत्रालय आदिवासी समुदायों के विकास के लिए नीतियां बनाता है। 

16. अन्य संवैधानिक प्रावधान 
इनके अलावा अधिकांश संवैधानिक और कानूनी प्रावधान आदिवासी समुदायों के संरक्षण, विकास और हितों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। 

चुनौतियां: कार्यान्वयन में कमी
हालांकि संविधान ने आदिवासी समुदायों के लिए व्यापक प्रावधान किए, लेकिन उनके कार्यान्वयन में लगातार कमी देखी जाती है। वन अधिकारों का उल्लंघन, भूमि अधिग्रहण और शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में पिछड़ापन आदिवासी समुदायों के सामने बड़ी समस्याएं हैं। 

आवाज़ उठाना सीखें: अपने अधिकार जानें 
“अधिकारों की जानकारी ही आदिवासी समुदायों की ताकत है,” कहते हैं आदिवासी अधिकार विशेषज्ञ प्रो. जीतेंद्र मीणा। “सरकार को इन कानूनों के कार्यान्वयन में गंभीरता लानी होगी।” 

एक संघर्ष और आशा की कहानी 
भारतीय संविधान ने आदिवासी समुदायों के लिए एक मजबूत कानूनी ढांचा तैयार किया, लेकिन उसकी सफलता जनता तक पहुंच और कार्यान्वयन पर निर्भर करती है। आदिवासी समुदायों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना होगा, और सरकार को उनके विकास में ईमानदारी से काम करना होगा। 

(लेखक: अजीत सिंह मरावी, सामाजिक कार्यकर्ता।)

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