बिलासपुर/छत्तीसगढ़ (आदिनिवासी)। देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश (CJI) न्यायमूर्ति गवई पर वरिष्ठ वकील राकेश किशोर द्वारा जूता फेंकने की घोर निंदनीय घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया है। बताया गया कि इस दौरान हमलावर ने “सनातन का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान” जैसे नारे भी लगाए। इस आपत्तिजनक कृत्य की गुरुघासीदास सेवादार संघ (GSS) और लोक सिरजनहार यूनियन (LSU) ने संयुक्त रूप से कड़ी निंदा की है।
संघों ने इसे “न्यायपालिका की गरिमा और भारतीय लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों पर हमला” बताया है। उन्होंने कहा कि यह घटना न केवल मुख्य न्यायाधीश जैसे सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति का अपमान है, बल्कि समाज में नफरत और अस्थिरता फैलाने की साजिश भी है।
GSS और LSU ने अपने संयुक्त वक्तव्य में कहा:—
“यह कृत्य उन मनुवादी फासिस्ट सोच का प्रतीक है जो दलित, वंचित और शोषित वर्गों को बराबरी के अधिकार से वंचित रखना चाहती है। न्यायपालिका के सर्वोच्च पद पर किसी दलित व्यक्ति का बैठना इन ताकतों को स्वीकार्य नहीं है, और इसलिए वे लोकतांत्रिक मर्यादाओं को रौंदते हुए हिंसा और असभ्यता पर उतर आए हैं।”
संघों ने कहा कि यदि वकील राकेश किशोर अपने विचार रखना चाहते, तो उन्हें संवैधानिक और लोकतांत्रिक तरीकों से जनांदोलन या बहस के माध्यम से अपनी बात रखनी चाहिए थी। लेकिन उन्होंने न्यायालय परिसर में ही हिंसक हरकत कर “लोकतंत्र की मर्यादा और कानून के शासन” को अपमानित किया है।
वक्तव्य में यह भी कहा गया है कि देश में आज भी दलित और शोषित समुदायों के साथ अन्याय और भेदभाव की घटनाएं हो रही हैं। अब जब संविधान ने सबको समानता और न्याय का अधिकार दिया है, तो वही फासिस्ट ताकतें संविधान की जड़ों को कमजोर करने का प्रयास कर रही हैं और “मनुवादी व्यवस्था” को फिर से स्थापित करने का षड्यंत्र चला रही हैं।
GSS और LSU ने कहा कि:—
“हम सभी नागरिकों से अपील करते हैं कि वे ऐसे असभ्य और अवांछित व्यवहार से दूर रहें, और देश के लोकतांत्रिक संस्थानों – विशेषकर न्यायपालिका – का सम्मान करें। न्याय की गरिमा बनाए रखना हर नागरिक का कर्तव्य है।”
दोनों संगठनों ने भारत सरकार और न्यायपालिका से मांग की है कि इस घटना की गंभीर जांच कर अपराधी राकेश किशोर पर Contempt of Court (न्यायालय की अवमानना) का मुकदमा चलाया जाए, ताकि ऐसी शर्मनाक घटनाएं दोबारा न हों।