संविधान के अनुसार “INDIA जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ होगा।”
विपक्षी दलों की बेंगलुरु बैठक का संदेश क्या है? इस संबंध में दीपंकर भट्टाचार्य, महासचिव सीपीआई (एम-एल) लिबरेशन की ओर से 19 जुलाई के अपडेट में कहा गया है कि बेंगलुरु में विपक्षी दलों के सफल दूसरे सम्मेलन और ‘INDIA’ उपनाम के साथ एक नए गठबंधन के उद्भव ने स्पष्ट रूप से मोदी शासन को परेशान कर दिया है। भारत के सभी कोनों से नई पार्टियों की खोज और निर्माण करके उसी दिन दिल्ली में एक समानांतर ‘गठबंधन’ शो खड़ा करने की बेताबी ने शासन की बढ़ती घबराहट को दर्शाता है।
यह अगले 50 वर्षों तक भारत पर बिना किसी चुनौती के शासन करने के भाजपा के अहंकारपूर्ण दंभ के बिल्कुल विपरीत है! एक साल पहले पटना में जेपी नड्डा का वह अहंकारपूर्ण बयान याद है कि भारत में क्षेत्रीय पार्टियों के दिन लद गए हैं? इस साल 9 फरवरी को राज्यसभा में नरेंद्र मोदी के ‘एक अकेला’ दावे को याद करें जब उन्होंने कहा था कि एक आदमी इस देश में कई लोगों की सामूहिक ताकत से भारी साबित हुआ है?
सत्ता के नशे में चूर अहंकारी भाजपा आज 2024 के चुनावों से पहले निष्क्रिय एनडीए बैनर को पुनर्जीवित करने की पूरी कोशिश कर रही है। इसके अहंकार के कारण शिवसेना, अकाली दल और जदयू जैसे उसके कई पुराने सहयोगियों को भाजपा से अपना रिश्ता तोड़ना पड़ा। वही भाजपा अब इन पार्टियों को विभाजित करने और अलग हुए समूहों को अपने सहयोगियों के रूप में समायोजित करने की कोशिश कर रही है। इसने राम विलास पासवान के निधन के बाद एलजेपी में विभाजन कराया और अब यह एकल पूर्व पार्टी को दो नए-नवेले सहयोगियों के रूप में पेश करके संख्या का खेल खेल रही है।
घबराया हुआ मोदी खेमा अब भारत को भारत के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश कर रहा है, जिससे एक बार फिर भारत के संविधान के प्रति उसकी अवमानना उजागर हो रही है। भारत के संविधान का पहला अनुच्छेद कहता है, “INDIA, जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ होगा”। मोदी सरकार इंडिया और भारत के बीच दरार पैदा करना चाहती है और भारत के राज्यों को एक अति-केंद्रीकृत केंद्र सरकार के उपनिवेशों की स्थिति में लाना चाहती है।
मोदी सरकार शासन का केवल एक मॉडल जानती है। वह भारत पर लगातार युद्ध छेड़ने के अलावा शासन नहीं कर सकता – भारत के लोकतंत्र की संवैधानिक नींव और संघीय ढांचा, भारत के सामाजिक ताने-बाने की समग्र संस्कृति और विविधता, भारत के नागरिकों के अधिकार और स्वतंत्रता और भारत के लाखों मेहनतकशों का अस्तित्व और सम्मान।
भारत को इस आपदा से उबरने के लिए अपनी पूरी ताकत लगानी होगी जिसके बारे में डॉ. अंबेडकर ने भारत के संविधान को अपनाने के समय ही हमें आगाह कर दिया था। एक संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य की संवैधानिक दृष्टि को मोदी शासन द्वारा देश में पैदा की गई चौतरफा अराजकता और संकट के दुःस्वप्न पर विजय प्राप्त करनी चाहिए।
पटना और बेंगलुरु का संदेश अब भारत के हर कोने में लोगों तक पहुंचाया जाना चाहिए। भाजपा को हराने के लिए आगामी चुनाव को एक सशक्त जन आंदोलन के रूप में लड़ना होगा। लड़ाई तो अभी शुरू हुई है। हम लड़ेंगे! हम जीतेंगे!