सोमवार, फ़रवरी 3, 2025

14 फरवरी को अनिवार्य सरस्वती पूजा का आदेश धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ; जाति उन्मूलन आंदोलन ने जताई साय सरकार पर नाराजगी

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रायपुर। जाति उन्मूलन आंदोलन छत्तीसगढ़ ने राज्य शासन स्कूल शिक्षा विभाग के अवर सचिव के द्वारा जिला शिक्षा अधिकारियों को जारी 12 फरवरी को जारी पत्र जो कि सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों और अभिभावकों सहित 14 फरवरी को सरस्वती पूजा और मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाने से संबंधित है, के आदेश की घोर निंदा की है। जाति उन्मूलन आंदोलन के पदाधिकारियों का कहना है कि ये कृत्य असंवैधानिक है और धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों का उल्लंघन करना है।

दर असल उक्त दिवस 14 फ़रवरी को वेलेंटाइन दिवस का विरोध करने और विद्यार्थियों पर अपने भगवा एजेंडा को थोपने के लिए फासिस्ट आरएसएस के मार्गदर्शन में भाजपा सरकार यह सब कर रही है।धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राजसत्ता और धर्म दोनों अलहदा हैं। धार्मिक कर्मकांड का शिक्षा समेत सरकारी कामकाज में कोई दखल नहीं होना चाहिए। लेकिन इसके विपरित जिस प्रकार मोदी सरकार  केंद्र में हिंदुत्ववादी बहुसंख्यकवादी परियोजनाओं को अल्पसंख्यकों पर थोपती है, उसी तर्ज पर छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार भी चल रही है।

छत्तीसगढ़ जाति उन्मूलन आंदोलन के अध्यक्ष लखन सुबोध ने इस संबंध में अपनी आपत्ति दर्ज कराते हुए मीडिया को बताया कि जाति उन्मूलन आंदोलन ने यह सवाल उठाया है कि क्या साय सरकार, हिंदूत्व वादी एजेंडा की तरह सिक्खों, बौद्धों, जैनियों, ईसाइयों और मुसलमानों के देवी देवता आधारित या धार्मिक परंपराओं का पालन करने की अनिवार्यता, इसी तरह से राज्य के सरकारी शिक्षा संस्थानों में करने की अनुमति देगी?

छत्तीसगढ़ शासन स्कूल शिक्षा विभाग की यह कार्रवाई घोर निंदनीय है। संघी मनुवादी फासिस्ट ताकतों के राज में धर्मनिरपेक्षता और संवैधानिक मूल्यों को पूरी तरह तिलांजलि दे दी गई है।

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