छत्तीसगढ़ के मांझी समाज के लिए उड़ीसा के संबलपुर स्थित समलाई दाई मंदिर का विशेष महत्व है। यह मंदिर न केवल मांझी समाज की कुलदेवी का स्थान है, बल्कि इसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व भी आदिवासी समाज के लिए अत्यधिक गौरवपूर्ण है। संबलपुर शहर का नामकरण भी समलाई दाई के नाम पर ही किया गया है, जो मांझी समाज के ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहर का प्रतीक है।
समलाई दाई और मांझी समाज का इतिहास
मांझी समाज के इतिहास और समलाई दाई के महत्व को स्पष्ट करने के लिए सरजू मांझी ने एक पुस्तक लिखी है जिसका नाम “सेवा पन्मेश्वरी दाई” है। इस पुस्तक में मांझी समाज की परंपराओं, रीति-रिवाजों और इतिहास का वर्णन किया गया है। सरजू मांझी ने केवल दूसरी कक्षा तक शिक्षा प्राप्त की है, लेकिन उन्होंने अपने समाज के इतिहास को सहेजने का कार्य किया है, जो काबिल-ए-तारीफ है।
हालांकि, पुस्तक के प्रकाशन को लेकर समाज में कुछ विरोध भी हुआ। मांझी समाज के कुछ लोगों ने सरजू मांझी के पुस्तक प्रकाशित करने के प्रयासों को रोकने की कोशिश की। यहां तक कि समाज के अध्यक्ष रोहित मांझी को फोन कर कहा गया कि वे इस पुस्तक के प्रकाशन को रोकें। विरोध करने वाले लोगों का तर्क था कि सरजू मांझी शिक्षित नहीं हैं और उनकी लिखी पुस्तक से समाज को नुकसान हो सकता है। लेकिन रोहित मांझी ने स्पष्ट किया कि सरजू मांझी को लिखने का मौलिक अधिकार है और वे अपनी जिम्मेदारी स्वयं लेंगे।
सरजू मांझी की संघर्ष यात्रा और सफलता
सरजू मांझी की इस पुस्तक को प्रकाशित होने से रोकने के बावजूद, उन्होंने अपनी जिद और मेहनत से एक हजार प्रतियां छपवाकर समाज में वितरित कर दीं। पुस्तक के प्रकाशन के बाद, समाज के 50 से अधिक सदस्यों ने सरजू मांझी को फोन कर बधाई दी और उनके प्रयास की सराहना की। सभी ने कहा कि सरल भाषा में लिखी इस पुस्तक ने समाज के इतिहास को सजीव कर दिया है। सरजू मांझी को गर्व है कि उन्होंने अपने समुदाय के लिए कुछ महत्वपूर्ण किया है।
मांझी समाज का भविष्य और चुनौतियां
सरजू मांझी के इस प्रयास ने यह भी दिखाया कि जब अपने ही समाज के लोग अपनों के पैर खींचते हैं, तो समाज की प्रतिभाएं उभरकर सामने नहीं आ पातीं। इस पुस्तक ने यह भी साबित किया है कि पढ़ाई-लिखाई की सीमा से परे, इतिहास और संस्कृति को सहेजने की जिम्मेदारी हर व्यक्ति की है, चाहे वह शिक्षित हो या नहीं।
समलाई दाई का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
समलाई दाई का मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि मांझी समाज के लिए एकता और पहचान का प्रतीक भी है। यह मंदिर छत्तीसगढ़ से लेकर उड़ीसा तक मांझी समाज के गौरवशाली अतीत की कहानी बयां करता है। गोंडवाना समाज और आदिवासी समुदाय के लिए भी यह मंदिर विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह उनके आराध्य देवी का स्थान है।मांझी समाज के इतिहास में मांझी लिंगो का भी वर्णन है, जो आदिवासी धर्म गुरु पहान्दी पारी कुपार लिंगो जी के 18 शिष्यों में से एक थे। इस प्रकार, समलाई दाई का मंदिर मांझी समाज के इतिहास, परंपराओं और धार्मिक आस्थाओं का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।
मांझी समाज के इतिहास में मांझी लिंगो का भी वर्णन है, जो आदिवासी धर्म गुरु पहान्दी पारी कुपार लिंगो जी के 18 शिष्यों में से एक थे। इस प्रकार, समलाई दाई का मंदिर मांझी समाज के इतिहास, परंपराओं और धार्मिक आस्थाओं का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।मांझी समाज की कुलदेवी समलाई दाई का मंदिर और सरजू मांझी की पुस्तक ‘सेवा पन्मेश्वरी दाई’ न केवल समाज के इतिहास को सहेजने का कार्य करती है, बल्कि यह समाज के आत्मगौरव और सांस्कृतिक धरोहर की भी रक्षा करती है। समाज के हर व्यक्ति को चाहिए कि वह इस प्रकार के प्रयासों को सराहे और समर्थन दे, ताकि भविष्य की पीढ़ियां अपने गौरवशाली अतीत से प्रेरणा ले सकें।
मांझी समाज की कुलदेवी समलाई दाई का मंदिर और सरजू मांझी की पुस्तक ‘सेवा पन्मेश्वरी दाई’ न केवल समाज के इतिहास को सहेजने का कार्य करती है, बल्कि यह समाज के आत्मगौरव और सांस्कृतिक धरोहर की भी रक्षा करती है। समाज के हर व्यक्ति को चाहिए कि वह इस प्रकार के प्रयासों को सराहे और समर्थन दे, ताकि भविष्य की पीढ़ियां अपने गौरवशाली अतीत से प्रेरणा ले सकें।