रविवार, सितम्बर 8, 2024

हसदेव आंदोलन के सम्मान में: सर्व आदिवासी समाज आया मैदान में

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नेशनल हाईवे और रेलवे ट्रैक पर धरना-प्रदर्शन

कांकेर (आदिनिवासी)। परसा कोल ब्लॉक संचालन के विरोध में अब छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज भी सड़क पर उतर चुका है। सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष सोहन पोटाई हजारों समर्थकों के साथ साल्ही पहुंचे। यहां लोगों ने नेशनल हाइवे 130 और रेलवे ट्रैक पर धरना प्रदर्शन किया। छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना के प्रदेश अध्यक्ष अमित बघेल और अन्य संगठनों के लोग भी मौके पर मौजूद रहे।

सर्व आदिवासी समाज के मांग पत्र में छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को कहा गया है कि, खनन प्रस्ताव अनुमति में बहुत सारी वैधानिक खामियां हैं। पांचवीं अनुसूचित क्षेत्र में आने वाले सरगुजा में किसी भी काम के लिए ग्राम सभा की अनुमति जरूरी है, लेकिन किसी भी ग्राम सभा से अनुमति नहीं ली गई है बल्कि फर्जी ग्राम सभा कराने की कवायद प्रशासन ने की। ज्ञापन में उल्लेख किया गया है कि, आदिवासियों में टोटम प्रणाली होती है, जो पौधे जीवित एवं स्थान पर आधारित होते हैं, पेन देव देवी जो आदिवासी पूर्वज हैं, वे उस भूमि की विशिष्ट स्थानों पर निवास करते हैं, उन्हें किसी दूसरी भूमि में स्थानांतरित नहीं कर सकते।

विस्थापन का मतलब है कि आदिवासियों के दृढ़ प्राकृतिक आस्था प्रणाली का विनाश होगा। पत्र में चेतावनी दी गई है कि, परसा कोल ब्लॉक उत्खनन की अनुमति को निरस्त और परसा ईस्ट बासेन में कोयला खनन को तत्काल बंद यदि नहीं किया गया तो पूरे प्रदेश में सर्व आदिवासी समाज उग्र आंदोलन करेगा।

हसदेव अरण्य को लेकर तमाम विरोध के बीच सीएम भूपेश बघेल की इस मामले में जो टेक है, वह संकेत देता है कि, राज्य सरकार उत्खनन नहीं रोकेगी, हालांकि वह यह सुनिश्चित करेगी कि, कानून और नियमों का उल्लंघन ना हो। मुख्यमंत्री बघेल ने रायपुर हेलीपेड पर पत्रकारों से चर्चा में 18 मई को कहा है कि कोयला वहीं है, जहां पहाड़ और जंगल है, जंगलों को बचाने के लिए नीतियां बनी हैं। वन विभाग उसे देखता है। उसके लिए वन अधिनियम है। पर्यावरण कानून है। उन नियमों का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। प्रभावित लोगों को मुआवजा बराबर मिलना चाहिए। देश को बिजली चाहिए तो कोयले की जरूरत तो पड़ेगी। आज कोयले के लिए पैसेंजर ट्रेन को खुद भारत सरकार रोक रही है। कोयला निकलेगा तो वहीं से जहां खदान है, लेकिन इसके लिए जो नियम है उसका पालन होना चाहिए।

हसदेव अरण्य क्षेत्र के आदिवासियों ने पिछले एक दशक से अपने जल, जंगल और जमीन को बचाने के लिए ग्राम सभा में सर्व सम्मति से प्रस्ताव पारित कर अपनी मांगें रखी है। बावजूद इसके राज्य और केंद्र सरकार दोनों ही आदिवासियों के इस संवैधानिक विरोध को दरकिनार कर एक के बाद एक स्वीकृति दे दी गई। इस खदान हेतु पांचवीं अनुसूचित क्षेत्र की ग्राम सभाओं के सभी अधिकारों को दरकिनार कर सारी स्वीकृति प्रदान की गई। आज स्थिति ये है कि इतने विरोध के बावजूद प्रशासन द्वारा अब पुलिस फ़ोर्स लगाकर पेड़ों को काटने का कार्य शुरू कर दिया गया है।

पूरा मामला अरण्य क्षेत्र में लाखों पेड़ काटकर उसमें कोयला खदान खोलने का है। परसा कोल ब्लॉक आवंटन हो चुका है। अब खदान खोलने की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। जिसमें सबसे पहले 06 हजार एकड़ में फैला जंगल काट दिया जाएगा। लाखों पेड़ काटकर जंगल को कोयले की भट्ठी बना दिया जायेगा। जिससे सरगुजा और कोरबा की तपिश बढ़ जाएगी।

सरकारी गिनती के अनुसार 4 लाख 50 हजार पेड़ कटेंगे। जबकि ग्रामीणों का कहना है कि सरकारी गिनती में सिर्फ बड़े पेड़ों को ही गिना जाता है। जबकि छोटे और मीडियम साइज के पेड़ों की गिनती नहीं की जाती। ग्रामीणों का अनुमान है की यहां 9 लाख से भी ज्यादा पेड़ काटे जाएंगे। इतने पेड़ अगर काट दिये गये तो प्रकृति का विनाश तय है। जिसका शिकार सरगुजा और कोरबा वासियों को होना पड़ेगा।


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