भू-विस्थापितों की प्रेस-वार्ता
कोरबा। एनटीपीसी कोरबा परियोजना से प्रभावित ग्राम चारपारा के भू विस्थापितो ने अपने अधिकारों की लड़ाई में एक और कदम बढ़ाया है। वे तानसेन चौक पर अनिश्चितकालीन आमरण अनशन पर बैठ गए हैं। उनका मुख्य मुद्दा है कि उन्हें एनटीपीसी में नौकरी और शेष मुआवजा नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने एनटीपीसी प्रबंधन और जिला प्रशासन पर आरोप लगाया है कि वे उन्हें झूठे और भ्रामक वादों से धोखा दे रहे हैं।
आमरण अनशन पर बैठे भू-विस्थापितों में राजन कुमार पटेल, घसिया राम केवट, मथुरा केवट, रामायण प्रसाद केवट, शुभम केवट आदि शामिल हैं। उन्होंने बताया कि एनटीपीसी की नीति फूट डालो और शासन करो की है। वे भू-विस्थापितों को बांटकर उनके विरोध को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने प्रबंधन और प्रशासन की तानाशाही को निंदा करते हुए कहा कि वे भू विस्थापितों के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं।
उन्होंने याद दिलाया कि एनटीपीसी कोरबा के लिए वर्ष 1979-80 में ग्राम चारपारा की 1000 हजार एकड़ भूमि में से 650 एकड़ भूमि एनटीपीसी ने अधिग्रहण कर ली थी। लेकिन 43 साल बाद भी उन्हें रोजगार और शेष मुआवजा नहीं दिया गया है। उन्होंने कहा कि उनके पास इसका रिकार्ड भी है लेकिन एनटीपीसी और प्रशासन उसे मानने को तैयार नहीं हैं।
उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी मांगों को लेकर 93 दिनों तक अनिश्चितकालीन धरना भी दिया था। उसके बाद भी उनकी बात नहीं सुनी गई। फिर उन्होंने 24 जुलाई को एनटीपीसी के गेट पर सांकेतिक प्रदर्शन किया। तब प्रबंधन ने राज्यपाल के निर्देश के अनुसार उन्हें नौकरी देने का आश्वासन दिया। लेकिन दूसरे ही दिन एनटीपीसी प्रबंधन और दर्री तहसीलदार ने उन्हें गुमराह करने की कोशिश की।
अब वे अपने आंदोलन को और तेज करने की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वे 30 जनवरी से कलेक्टर कार्यलय के सामने आमरण अनशन पर बैठे हैं। उनका कहना है कि वे अपनी मांगें पूरी न होने तक अनशन जारी रखेंगे। उन्होंने यह भी बताया कि वे जल्द ही मुख्यमंत्री निवास तक पैदल मार्च भी करेंगे।
यहां यह बात उल्लेखनीय है कि जिले के वाणिज्य, उद्योग और श्रम मंत्री श्री लखन लाल देवांगन भी स्वयं उसी चारपारा गांव के मूलनिवासी हैं जहां के माटीपुत्र होने का बार-बार दावा करते वे नहीं थकते थे। जिले में कई दशकों से लंबित विस्थापन, नौकरी और मुआवजे के सवाल को प्राथमिकता के साथ उठाने और तत्काल समाधान निकालने के बजाय इस ज्वलंत मुद्दे पर उनकी ओर से चुप्पी साथ लेना सचमुच एक दुखद और खेदजनक बात है।
अब तो जिले के उद्योगों में अपने अधिकार मांगने पर मेहनतकश श्रमिकों के ऊपर लाठियां भी बरसाए जाने लगे हैं और माननीय उद्योग और श्रम मंत्री उफ़ तक नहीं करते और उनके कार्यकाल में उनके इस औद्योगिक जिले में हो रहे शर्मनाक घटना के खिलाफ में एक बयान तक जारी नहीं करते। और तो और, खुद उनके ही गांव के भू-विस्थापितों को अपने अधिकार के लिए अब आमरण अनशन पर बैठना पड़ा है। क्या यह परिघटना यहां के मूल निवासियों के साथ एक भद्दा मजाक नहीं है? या ऐसे जीवन-मरण के सवालों पर विडंबना और भाग्य नाम का चादर ढककर मंदिरों में अब भजन कीर्तन करते बैठे रहें? या फिर जिंदा रहने के लिए संघर्ष करें, अब यह तो समय ही बताएगा।