रायपुर। 2024 का अन्तरिम बजट, चुनावी वर्ष में भाजपा सरकार के दस साल के प्रदर्शन के बड़बोले दावे करने वाला दस्तावेज़ है और ये दावे चुनिंदा आंकड़ों, अर्द्धसत्य और तोड़ मरोड़ करके पेश किया जा रहा है प्रचार का पुलिंदा भर है।
भाकपा (माले) लिबरेशन के छत्तीसगढ़ राज्य सचिव कॉम. बृजेंद्र तिवारी ने पार्टी द्वारा जारी बयान में बताया है कि बजट में संशोधित अनुमान के आंकड़े बताते हैं कि यह सरकार उन योजनाओं के लिए भी वास्तविक धन का आवंटन करने में विफल रही है, जिन्हें इस सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं के तौर पर प्रचारित किया जाता रहा है।
बहुप्रचारित प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए वित्त वर्ष 2023-24 के लिए संशोधित अनुमान 54103 करोड़ रुपया रखा गया है (2023 के बजट में इसके लिए अनुमानित धनराशि 79590 करोड़ रुपये रखी गयी थी), स्वच्छ भारत मिशन के लिए संशोधित अनुमान की राशि 2550 करोड़ रुपया है (बजट 2023 में अनुमानित राशि और प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत स्वास्थ्य ढांचे पर यह राशि 2100 करोड़ रुपया है। (2023 के बजट में इसके लिए अनुमानित राशि 4000 करोड़ रुपया रखी गयी थी)
सरकार किसानों की आय दोगुनी करने की बातें करती रहती है पर संशोधित आकलन की वास्तविक संख्या बताती है कि वित्तीय वर्ष 2022-23 के वास्तविक खर्च 165217 करोड़ रुपये के मुक़ाबले यूरिया सब्सिडी घटा कर 128594 करोड़ रुपया कर दी गयी है और पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (यूरिया मुक्त खाद सब्सिडी) को वित्तीय वर्ष 2022-23 के वास्तविक खर्च 86122 करोड़ रुपये से घटा कर 60300 करोड़ रुपये कर दिया गया है. इससे साफ है कि सरकार एक हाथ से किसानों से छीन ले रही है और दूसरे हाथ से उसी धनराशि को किसान सम्मान निधि के रूप में 6000 रुपया सालाना दे रही है। यूरिया और पोषण आधारित सब्सिडी में पिछले साल के मुक़ाबले जो कटौती है, वो 62445 करोड़ रुपया है और यह किसान सम्मान निधि पर किए गए कुल खर्च-60000 करोड़ रुपए से कहीं ज्यादा है।
यूरिया और पोषण सब्सिडी के लिए बजट के किए गए प्रावधान, क्रमशः 119000 करोड़ रुपये और 45000 करोड़ रुपया तो वास्तविक खर्च से कहीं कम है जो इन मदों की सब्सिडी में और कटौती का संकेत है।
गरीब कल्याण के दावों के बावजूद 205250 करोड़ रुपये का खाद्य सब्सिडी का बजटीय प्रवाधान, 212332 करोड़ रुपए के संशोधित अनुमान से काफी कम है।
युवाओं को कुशल बनाने के उद्देश्य वाले बहु प्रचारित कौशल विकास मिशन के लिए 538 करोड़ रुपये की मामूली धनराशि आवंटित की गयी है, जिससे इस देश के बेरोजगार और अल्परोजगार वाले युवाओं को कुशल और पुनः कुशल बनाया जाना है।
बड़े कॉरपोरेटों और अति धनाढ्यों पर टैक्स बढ़ाने से इंकार करने का परिणाम है उच्च राजकोषीय घटा, संशोधित अनुमानों में यह जीडीपी के 5.8 प्रतिशत आंका गया है।
बीते दस सालों में कर्ज से जीडीपी अनुपात भयावह हुआ है, यह 67 प्रतिशत से जीडीपी का 82 प्रतिशत हो गया है. कुल संशोधित अनुमान में 44.90 लाख करोड़ रुपये के सम्पूर्ण खर्च में से 10.55 लाख करोड़ रुपये का उपयोग तो ब्याज के भुगतान के काम में लगना है, जो कि प्रति 4 रुपये में से एक रुपए के लगभग है.
लक्ष्य बदलते रहने और जबरदस्त ध्यान भटकाने की इस सरकार की (कु)ख्याति है और प्रस्तुत अन्तरिम बजट भी यही करता है।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा हाल में किया गया उपभोक्ता आत्मविश्वास सर्वे से यह खुलासा हुआ कि 80 प्रतिशत लोग जो कि कम आय वर्ग की श्रेणी में आते हैं- जिनकी आय 25000 रुपये, 10000 रुपये और 5000 रुपए मासिक से कम है- मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की मार झेल रहे हैं. इन आय वर्गों के लोगों ने पिछले एक वर्ष में व्यापक रूप से अपनी आर्थिक स्थिति को बिगड़ते हुए देखा है।
हाल में बिहार में हुई जाति जनगणना, पूरे देश को आईना दिखाने वाली है, जिसमें अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक आर्थिक रूप से अधिक वंचित हैं जबकि आम तौर पर अर्थ व्यवस्था की स्थिति सबके लिए ही बिगड़ी है।
मोदी-शाह हुकूमत द्वारा अच्छे दिन और अमृत काल की गढ़ी गयी आवधारणाओं और आर्थिक विकास की अमीरों द्वारा पोषित झूठे दावों का आगामी लोकसभा चुनावों में वही हश्र होगा, जो अटल-आडवाणी काल में “ शाइनिंगइंडिया ” के खोखले प्रचार का हुआ था।