स्थान: एकता पीठ परिसर, ऐक्टू यूनियन कार्यालय, बालकोनगर, कोरबा
समय: प्रातः 11:30 बजे से
कोरबा (आदिनिवासी)। बालको के सेवानिवृत्त श्रमिकों के अधिकारों, सुविधाओं और सम्मान से जुड़े गंभीर मुद्दों को लेकर “रिटायर्ड कामगार समूह, बालको” की एक महत्वपूर्ण बैठक आगामी 15 अक्टूबर (बुधवार) को प्रातः 11:30 बजे से एकता पीठ परिसर, ऐक्टू यूनियन कार्यालय, बालकोनगर में आयोजित की जा रही है। यह बैठक लंबे समय से अनदेखे किए जा रहे उन सवालों को केंद्र में रखेगी, जो सेवानिवृत्त कर्मचारियों के जीवन, स्वास्थ्य और आवासीय सुरक्षा से सीधे जुड़े हैं।
लंबित भुगतान और स्वास्थ्य सुविधाओं पर बनेगी रणनीति
बैठक के एजेंडा में प्रमुख रूप से अंतिम भुगतान (पीएफ, ग्रेच्युटी, लीव एनकैशमेंट) में हो रही देरी, चिकित्सा सुविधाओं की बहाली, तथा आवास खाली करने के दबाव जैसे अहम मुद्दे शामिल हैं।
कर्मचारियों ने आरोप लगाया है कि सेवानिवृत्ति के वर्षों बाद भी प्रबंधन ने उनकी मेहनत की पूंजी रोक रखी है, जिससे वृद्धावस्था में आर्थिक संकट और असुरक्षा की स्थिति बनी हुई है।
इसी प्रकार, मेडिकल सुविधाएं बंद होने से न केवल सेवानिवृत्त श्रमिक बल्कि उनके परिजन भी परेशान हैं। कई बुजुर्ग कामगार इलाज के अभाव में कठिनाइयों से गुजर रहे हैं।
आवास से बेदखली और प्रबंधन के रवैये पर रोष
बैठक में उन सेवानिवृत्त कर्मचारियों की स्थिति पर भी चर्चा होगी जिन्हें बालको क्वार्टर खाली करने का दबाव झेलना पड़ रहा है। कर्मचारियों का कहना है कि जब तक उनके लंबित भुगतान नहीं किए जाते, तब तक उन्हें आवास से निकालना “अमानवीय और अन्यायपूर्ण” है।
रिटायर्ड कामगार समूह का मत है कि कंपनी प्रबंधन संवेदनशीलता दिखाए और श्रमिकों के जीवन को अस्थिर करने वाले कदमों से बचे।
संगठनात्मक एकता और आंदोलन की दिशा पर विमर्श
इस बैठक में “रिटायर्ड कामगार समूह” की नई संगठनात्मक संरचना, आंदोलन की रणनीति और भविष्य की कार्ययोजना भी तय की जाएगी।
संयोजक बी.एल. नेताम ने कहा कि यह बैठक केवल एक औपचारिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि हमारे सम्मान और अस्तित्व की आवाज़ है।
उन्होंने सभी सेवानिवृत्त साथियों से अपील की है कि वे अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करें और अन्य प्रभावित कामगारों को भी साथ लाएँ।
“हमारी एकता ही हमारी ताकत है, और यही ताकत हमें न्याय दिलाएगी,” श्री नेताम ने कहा।
मानवीय दृष्टि से बड़ा सवाल
बालको जैसे औद्योगिक प्रतिष्ठानों में वर्षों तक काम करने वाले हजारों श्रमिक आज बुढ़ापे में अपने ही अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह स्थिति केवल प्रशासनिक असंवेदनशीलता नहीं, बल्कि उस मानवीय जिम्मेदारी पर भी प्रश्नचिह्न है जिसे हर संस्थान को अपने श्रमिकों के प्रति निभाना चाहिए।
रिटायर्ड श्रमिकों की यह लड़ाई केवल बालको तक सीमित नहीं — यह उन सभी मेहनतकश हाथों की लड़ाई है जिन्होंने उद्योग को खड़ा किया, पर अब उपेक्षा के शिकार हैं।