मानव जीवन केवल जीने की महज़ एक जैविक प्रक्रिया नहीं है। यह चेतना, साहस और संघर्ष की एक सतत यात्रा है। इतिहास गवाह है कि जब-जब इंसान जागा है, तब-तब उसने अन्याय और शोषण की जंजीरों को तोड़ा है। लेकिन जागना केवल पहला कदम है, असली मंज़िल तक पहुँचने के लिए ज़रूरी है – जूझना। यही मानवता की असली यात्रा है – जागने से लेकर जूझने तक।
जागरण की आवश्यकता क्यों?
हर अंधकार की जड़ है – अज्ञान और उदासीनता। जो समाज अपनी हालत को स्वाभाविक मान लेता है, वह बदलाव की राह पर नहीं बढ़ सकता। जागरण का अर्थ है यह समझना कि कुछ ग़लत है और उसे बदलना ज़रूरी है।
चेतना से आत्मसम्मान तक
जागरण का मतलब केवल आँखें खोलना नहीं, बल्कि अपनी पहचान और अधिकारों को समझना है। “मैं कौन हूँ और मेरा हक़ क्या है?”- यह सवाल ही आत्मसम्मान को जन्म देता है, और यही आत्मसम्मान अन्याय के विरुद्ध खड़ा होने की ताक़त देता है।

अन्याय और शोषण की पहचान
शोषण हमेशा नकाब पहनकर आता है – कभी धर्म के नाम पर, कभी जाति, लिंग या पूंजी के नाम पर। जागरण का असली अर्थ है इन नकाबों को उतारना और यह समझना कि सत्ता और पूंजी की मिलीभगत से हमारी ज़मीन, श्रम और गरिमा छीनी जा रही है।
सवाल पूछने की ताक़त
जागरण की पहली पहचान है – सवाल। “क्यों?”, “किसके लिए?”, “किस कीमत पर?” – ये प्रश्न व्यवस्था की नींव हिला देते हैं। सवाल उठाना ही विद्रोह का बीज है और जूझने की शुरुआत।
भय से मुक्ति
अन्याय की सबसे बड़ी ताक़त है – डर। जागरण का अर्थ है इस डर को तोड़ना। जब जनता कहती है – “अब हम डरेंगे नहीं” – तो सत्ता की सबसे ऊँची दीवारें भी गिर जाती हैं।
संगठन और सामूहिकता
एक अकेला जागा हुआ इंसान चिंगारी है, लेकिन संगठित जनता आग का समुद्र। इतिहास के हर आंदोलन – गांधी का सत्याग्रह, अंबेडकर का आंदोलन या आजादी के पहले के तमाम आदिवासी विद्रोह – ने दिखाया है कि संगठन ही जागरण को संघर्ष में बदलता है।

संघर्ष की अनिवार्यता
जागरण का स्वाभाविक परिणाम है – संघर्ष। जिसने अन्याय को पहचान लिया, वह चुप नहीं रह सकता। संघर्ष विनाश के लिए नहीं, बल्कि नए निर्माण के लिए होता है। यह रचनात्मक विद्रोह है, जो नए समाज की नींव रखता है।
त्याग और बलिदान का महत्व
जूझने की राह कठिन है। इसमें पीड़ा, त्याग और बलिदान शामिल हैं। शहीद वीरनारायण सिंह से लेकर बिरसा मुंडा, भगत सिंह तक असंख्य योद्धाओं ने अपने प्राण न्योछावर किए। बलिदान याद दिलाता है कि न्याय की कीमत बड़ी होती है, पर वही भविष्य को उज्जवल बनाती है।
ऊर्जा और निरंतरता
संघर्ष एक दिन का नहीं, बल्कि सतत प्रक्रिया है। हार, थकान और निराशा के बीच भी आगे बढ़ना पड़ता है। यही “रुकना नहीं, झुकना नहीं” का मंत्र संघर्ष को जीवित रखता है।

विचारधारा और लक्ष्य की स्पष्टता
जागरण यदि विचारधारा विहीन हो तो केवल असंतोष है। संघर्ष यदि लक्ष्यहीन हो तो केवल हिंसा है। संघर्ष को दिशा तभी मिलती है जब उसके पास न्याय, समानता और समाजवाद जैसे स्पष्ट मूल्य और लक्ष्य हों।
आदर्श और प्रेरणा के स्रोत
संघर्ष को ऊर्जा चाहिए। यह ऊर्जा मिलती है इतिहास, साहित्य, लोकगीतों और शहीदों की गाथाओं से। जब हम देखते हैं कि हमारे पूर्वजों ने असंभव को संभव किया, तो वर्तमान पीढ़ी भी साहस पाती है।
जागरण से मुक्ति तक
जागना और जूझना साधन हैं, लक्ष्य नहीं। असली मंज़िल है—एक ऐसा समाज, जहाँ कोई दमन न हो, कोई भेदभाव न हो, और सबको समान अवसर मिले। यही है जागरण से संघर्ष और संघर्ष से मुक्ति की अंतिम यात्रा।
“जागने से लेकर जूझने तक…” केवल शब्द नहीं हैं, यह मानव इतिहास का सूत्र है। आज़ादी की लड़ाई से लेकर आधुनिक सामाजिक आंदोलनों तक, यही मार्गदर्शक रहा है। बिना जागरण के जूझना असंभव है, और बिना जूझे मुक्ति अधूरी।
इसलिए हमें संकल्प लेना होगा – जागो, सवाल करो, उठो और जूझो – जब तक न्याय और समानता की सुबह न हो जाए।
जागते रहें! जुड़ते रहें!! जूझते रहें!!!
(आलेख: दिलेश उईके)