🔹झारखंड के निर्माता दिशुम गुरु शिबू सोरेन के निधन के बाद विश्व आदिवासी दिवस सादगी से मनाया गया।
🔹कंडेर पंचायत में आयोजित कार्यक्रम में गुरुजी को श्रद्धांजलि दी गई, कोई नाच-गान नहीं हुआ।
🔹शिबू सोरेन को ‘भारत रत्न’ देने की मांग ने जोर पकड़ा, कई नेताओं ने किया समर्थन।
🔹आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए 5-सूत्रीय प्रस्ताव पारित किया गया।
ललपनिया, बोकारो (आदिनिवासी)। झारखंड के महानायक और आदिवासियों के ‘दिशुम गुरु’ (देश के गुरु) शिबू सोरेन के हाल ही में हुए निधन के शोक के बीच, शनिवार को पूरे क्षेत्र में विश्व आदिवासी दिवस अत्यंत सादगी और संकल्प के साथ मनाया गया। सांस्कृतिक उत्सवों और पारंपरिक नृत्यों से गुलजार रहने वाले इस अवसर पर इस वर्ष मातम और उदासी छाई रही। कंडेर पंचायत के दरहाबेड़ा गांव में आयोजित कार्यक्रम नाच-गान और तामझाम से दूर, गुरुजी को श्रद्धांजलि देने और उनके दिखाए रास्ते पर चलने के संकल्प का साक्षी बना।
यह कार्यक्रम, जो सामान्य रूप से आदिवासी संस्कृति, परंपरा और अधिकारों का उत्सव होता है, इस बार एक शोक सभा में बदल गया। कार्यक्रम की शुरुआत दिशुम गुरु शिबू सोरेन की तस्वीर पर माल्यार्पण और उनकी आत्मा की शांति के लिए एक मिनट का मौन रखकर की गई। इस भावभीने क्षण में बड़ी संख्या में संथाल आदिवासी महिला-पुरुष शामिल हुए, जिनकी आंखों में अपने प्रिय नेता को खोने का दर्द साफ झलक रहा था।

एक नेता, जिन्होंने समाज को राह दिखाई
आदिवासी संघर्ष मोर्चा के जिला संयोजक और भाकपा माले के नेता जगलाल सोरेन ने गुरुजी को याद करते हुए कहा, “गुरुजी ने अपना पूरा जीवन आदिवासियों के अधिकारों और जल, जंगल, जमीन को लूट से बचाने के लिए समर्पित कर दिया।” उन्होंने महाजनी प्रथा और सूदखोरों के खिलाफ शिबू सोरेन के ऐतिहासिक ‘डुगडुगी बजाओ आंदोलन’ का जिक्र किया, जिसने शोषित आदिवासियों को उनकी जमीनें वापस दिलाईं। उन्होंने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि आज आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ने वालों को या तो जेल में डाल दिया जाता है या उनकी हत्या कर दी जाती है।
इसी क्रम में, भाकपा माले के राज्य कमेटी सदस्य भुवनेश्वर केवट ने कहा कि शिबू सोरेन केवल एक राजनेता नहीं थे, बल्कि एक महान समाज सुधारक थे, और इसी वजह से वे आदिवासियों के ‘दिशुम गुरु’ बने। उन्होंने जोरदार मांग की कि दिशुम गुरु शिबू सोरेन को मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया जाना चाहिए।यह मांग सिर्फ इस सभा तक सीमित नहीं है, बल्कि झारखंड के कई राजनीतिक और सामाजिक संगठन भी गुरुजी के निधन के बाद से यह आवाज उठा रहे हैं।

कॉरपोरेट लूट के खिलाफ संघर्ष का संकल्प
श्री केवट ने आगे कहा कि विश्व आदिवासी दिवस अपनी संस्कृति और परंपराओं की रक्षा का संकल्प लेने का दिन है। उन्होंने आरोप लगाया, “आज झारखंड के जल, जंगल, जमीन और खनिज पर कॉरपोरेट कंपनियों की गिद्ध दृष्टि लगी हुई है। जहां भी खनिज संपदा है, वहां से आदिवासियों को विस्थापित करने की साजिशें हो रही हैं।” उन्होंने चेतावनी दी कि जिस तरह अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी को नहीं चलने दिया गया, उसी तरह अडानी-अंबानी की लूट को भी नहीं चलने दिया जाएगा। यह प्रकृति के र9क्षक आदिवासियों को बचाने की लड़ाई है, क्योंकि अगर वे नहीं बचे, तो पर्यावरण असंतुलन की मार से कोई नहीं बचेगा।

भविष्य की दिशा तय करते पांच सूत्रीय प्रस्ताव
कार्यक्रम का संचालन करते हुए राजेश किस्कू ने बताया कि इस अवसर पर आदिवासियों के भविष्य और अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए सर्वसम्मति से पांच सूत्रीय प्रस्ताव पारित किया गया। इन प्रस्तावों में शामिल हैं:-
– दिशुम गुरु शिबू सोरेन को भारत रत्न से सम्मानित करना।
– आगामी जनगणना 2026 में आदिवासियों की विशिष्ट धार्मिक पहचान के लिए ‘सरना धर्म कोड’ का एक अलग कॉलम बनाना।
– आदिवासियों को ग्राम सभा में अधिकार देने वाले पेसा (PESA) कानून को अक्षरशः लागू करना।
– झारखंड के जंगलों में चल रहे ‘आदिवासी हंट अभियान’ को तत्काल बंद करना।
– संविधान में दिए गए आदिवासी अधिकारों की रक्षा करने वाले कानूनों को सख्ती से लागू करना और युवाओं व महिलाओं के लिए रोजगार का सृजन करना।

यह कार्यक्रम, जो पुसू मांझी, गुणी सोरेन, सोमर टुडू और सबिता सोरेन जैसे कई स्थानीय नेताओं की उपस्थिति में संपन्न हुआ, केवल एक श्रद्धांजलि सभा नहीं थी, बल्कि यह गुरुजी के निधन से उत्पन्न शून्य को उनके संघर्षों को आगे बढ़ाकर भरने का एक सामूहिक संकल्प भी था। 4 अगस्त को 81 वर्ष की आयु में शिबू सोरेन के निधन ने पूरे झारखंड को शोक में डुबो दिया था, और यह सादगीपूर्ण आदिवासी दिवस उसी गहरे दुख और अटूट सम्मान का प्रतीक था।