मंगलवार, जनवरी 21, 2025

छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रशासनिक उपयोग पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन: सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने की दिशा में बड़ा कदम!

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छत्तीसगढ़ी भाषा को प्रशासनिक कार्यों में शामिल करने का आह्वान।

कोरबा (आदिनिवासी)| छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग ने “प्रशासनिक कार्य व्यवहार में छत्तीसगढ़ी भाषा का उपयोग” विषय पर कलेक्ट्रोरेट कार्यालय के सभाकक्ष में एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की। इस कार्यक्रम का उद्देश्य प्रशासनिक कार्यों में छत्तीसगढ़ी भाषा के उपयोग को बढ़ावा देना और इसे सरकारी कामकाज का अभिन्न हिस्सा बनाना था।

कार्यशाला में अपर कलेक्टर मनोज बंजारे, राजभाषा आयोग की सचिव डॉ. अभिलाषा बेहार, प्रोफेसर सुधीर शर्मा, और ऋतुराज साहू विशेष अतिथि के रूप में शामिल हुए। जिले के सभी विभाग प्रमुखों और अधिकारियों ने इस महत्वपूर्ण प्रशिक्षण में भाग लिया।

कार्यशाला के मुख्य बिंदु और वक्ताओं के विचार
छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रशासनिक महत्व: डॉ. अभिलाषा बेहार
डॉ. अभिलाषा बेहार ने छत्तीसगढ़ी भाषा के गौरवशाली इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह केवल एक संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक पहचान और धरोहर है। उन्होंने कहा,

“छत्तीसगढ़ी भाषा का संरक्षण और प्रचार-प्रसार हमारी जिम्मेदारी है। इसे प्रशासनिक कार्यों में शामिल करने से जनता के साथ संवाद अधिक प्रभावी होगा।”

कार्यशाला में राजभाषा आयोग द्वारा प्रकाशित “लोक व्यवहार में छत्तीसगढ़ी” नामक मार्गदर्शिका भी प्रस्तुत की गई। इस पुस्तक में हिंदी के 67 शब्दों और वाक्यों का छत्तीसगढ़ी अनुवाद, नोटशीट, आवेदन पत्र और जाति प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेजों के प्रारूप दिए गए हैं।

छत्तीसगढ़ी भाषा से जुड़ाव आवश्यक: अपर कलेक्टर मनोज बंजारे
मनोज बंजारे ने छत्तीसगढ़ी भाषा को समाज और संस्कृति से जोड़ने का माध्यम बताया। उन्होंने कहा:

“शहरीकरण के बढ़ते प्रभाव से छत्तीसगढ़ी भाषा केवल गांवों तक सिमट गई है। इसे बचाना और प्रशासनिक कार्यों में अपनाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। यह भाषा जनता के करीब है और प्रशासनिक कार्यों में इसका उपयोग शासन को अधिक प्रभावी बनाएगा।”

छत्तीसगढ़ी भाषा का ऐतिहासिक योगदान: प्रोफेसर सुधीर शर्मा
प्रोफेसर सुधीर शर्मा ने छत्तीसगढ़ी भाषा के इतिहास और इसके विकास पर चर्चा करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ी भाषा का पहला व्याकरण 1880 में तैयार किया गया और 1900 में प्रकाशित हुआ।
उन्होंने कहा:

“छत्तीसगढ़ राज्य का गठन भाषाई आधार पर हुआ था। इसे राजभाषा का दर्जा देना सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का कदम था। छत्तीसगढ़ी भाषा में प्रशासनिक शब्दावली और तकनीकी शब्दावली शामिल है, जो इसे प्रशासनिक कार्यों के लिए सक्षम बनाती है।”

प्रशासनिक उपयोग को सरल बनाने की योजना: ऋतुराज साहू
ऋतुराज साहू ने छत्तीसगढ़ी भाषा के व्यावहारिक उपयोग पर प्रस्तुति दी। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ी भाषा के उपयोग से प्रशासनिक संवाद सरल और प्रभावी बनता है।
उन्होंने सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ी भाषा को कार्यालयीन कामकाज में अपनाने से यह जनता के बीच लोकप्रिय बनेगी।

भविष्य की योजनाएं और कार्यशाला की उपलब्धियां
कार्यशाला में बताया गया कि छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रशासनिक उपयोग को बढ़ाने के साथ-साथ इसे शिक्षा और दैनिक जीवन में भी शामिल किया जाएगा।

सभी प्रतिभागियों को छत्तीसगढ़ी भाषा के उपयोग को बढ़ावा देने की शपथ दिलाई गई।
प्रशिक्षण में भाग लेने वाले अधिकारियों को प्रमाण पत्र प्रदान किए गए।

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