रानी दुर्गावती मरावी जो कि गोंडवाना साम्राज्य की वीरांगना थीं। उनका जन्म 05 अक्टूबर 1524 को कालिंजर के राजा कीरत राय चन्देल ‘द्वितीय’ के यहाँ हुआ था। उनका विवाह दलपत शाह मरावी से हुआ था। जो कि गोंडवाना साम्राज्य के राजा संग्राम शाह मरावी के पुत्र थे। रानी दुर्गावती के गोंडवाना के इस सुखी और सम्पन्न राज्य पर मालवा के मुसलमान शासक बाजबहादुर ने कई बार हमला किया लेकिन वह हर बार पराजित हुआ।
मुगल शासक अकबर भी गोंडवाना साम्राज्य को किसी भी तरह से जीतना चाहता था। विवाद प्रारम्भ करने हेतु उसने रानी के प्रिय हाथी सरमन और उनके सबसे ज्यादा भरोसेमंद वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा। रानी ने यह मांग ठुकरा दी। इस पर अकबर ने अपने एक रिश्तेदार आसफ खां के नेतृत्व में गोण्डवाना साम्राज्य पर हमला कर दिया।
गोंडवाना के आदिवासियों, भीलों वा धनुर्धर कोल आदिवासियों ने अपने बहादुर रानी दुर्गावती के लिए अपनी जान दे दी। एक बार तो आसफ खां पराजित हुआ, लेकिन अगली बार उसने दुगनी सेना और तैयारी के साथ हमला बोला। दुर्गावती के पास उस समय बहुत कम सैनिक थे। उन्होंने जबलपुर के पास नरई नाले के किनारे मोर्चा लगाया तथा उन्होंने स्वयं पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया। ‘Wikipedia’ के अनुसार इस युद्ध में 3,000 से अधिक मुगल सैनिक मारे गये, लेकिन रानी को भी जान-माल की भारी क्षति उठानी पड़ी।
अगले दिन 24 जून 1564 को मुगल सेना ने फिर से हमला बोला। लगातार युद्ध से आज रानी का पक्ष कमजोर लग रहा था। इस कारण से रानी ने अपने पुत्र वीर नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। तभी एक तीर उनकी भुजा में लगा, रानी ने उसे निकाल फेंका। दूसरे तीर ने उनकी आंख को बेध दिया, रानी ने इसे भी निकाला पर उसकी नोक आंख में ही रह गयी। तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर धंस गया।
वीरांगना रानी ने अपना अंतिम समय निकट जानकर वजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे। लेकिन इसके लिए उनका सबसे विश्वासपात्र वजीर आधार सिंह बिलकुल तैयार नहीं हुआ। अंततः रानी ने अपनी कटार खुद ही अपने पेट में भोंककर आत्म बलिदान के पथ पर आगे बढ़ गयीं। गोंडवाना की वीरांगना रानी ने सम्मान के साथ मर जाना कबूल किया लेकिन किसी और की सत्ता के के सामने गोंडवाना साम्राज्य को झुकने नहीं दिया। गोंडवाना साम्राज्य की वीर रानी दुर्गावती ने अकबर के सेनापति से लड़कर अपनी जान गंवाने से पहले पंद्रह वर्षों तक शासन कर गोंडवाना साम्राज्य का विस्तार किया था।
जबलपुर के पास जहां यह ऐतिहासिक युद्ध हुआ था, उस स्थान का नाम बरेला है, जो मंडला रोड पर स्थित है, वहीं रानी की समाधि है। जहां आज भी लोग गोण्डवाना साम्राज्य के अपनी वीरांगना रानी को श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। (Credits:Wikipedia)