बुधवार, नवम्बर 20, 2024

कोरबा में 115 हितग्राही वन अधिकार पट्टे के लिए भटक रहे, SDM कार्यालय की लापरवाही उजागर!

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कोरबा (आदिनिवासी)। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के 115 पात्र हितग्राही महीनों से अपने वन अधिकार पट्टे के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं। इसके पीछे SDM कार्यालय की लापरवाही सामने आई है। निराश ग्रामीणों ने अब पुनः कलेक्टर से शिकायत की है, लेकिन अभी तक उन्हें न्याय नहीं मिल पाया है।

मामला पाली तहसील के 4 ग्राम पंचायतों—मुनगाडीह, दमिया, बतरा और जेमरा—से जुड़ा हुआ है। इन गांवों के 115 हितग्राहियों के नाम 487 लोगों की पात्रता सूची में हैं, लेकिन अब तक उनके वन अधिकार पट्टे जारी नहीं किए गए हैं।

लापरवाही से अटका मामला

आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त कार्यालय द्वारा पट्टे तैयार किए गए थे, जिसमें मुनगाडीह के 31 पट्टे भी शामिल थे। कार्यालय सहायक हरिप्रसाद बंजारे द्वारा यह दस्तावेज तैयार किए गए और आदिवासी विकास के छात्रावास अधीक्षक पंकज खरे के माध्यम से उन्हें हस्ताक्षर के लिए भेजा गया। श्री खरे ने वन विभाग के अधिकारी, उप वन मण्डलाधिकारी पाली और मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायत पाली से हस्ताक्षर करा लिया, लेकिन अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व), पाली से हस्ताक्षर नहीं हो सके।

पट्टा कहीं ‘खो’ गया

इस पूरी प्रक्रिया में अटकाव तब आया जब एसडीएम कार्यालय के बाबू अक्षय कुमार अजगले को हस्ताक्षर के लिए जिम्मेदारी दी गई। ग्रामीणों ने जब अक्षय कुमार से अपने पट्टों के बारे में पूछा, तो उनका जवाब बेहद निराशाजनक था। उन्होंने कहा कि पट्टे कहीं “खो” गए हैं और ढूंढने पर नहीं मिल रहे। इस लापरवाही के चलते ग्रामीणों को उनके अधिकार से वंचित किया जा रहा है।

ग्रामीणों की गुहार

हितग्राही ग्रामीणों ने प्रशासन से अपील की है कि उनकी शिकायत को गंभीरता से लिया जाए और जल्द से जल्द 115 वन अधिकार पत्र जारी किए जाएं। महीनों से प्रशासन के दरवाजे खटखटाने के बाद भी कोई समाधान नहीं निकला है, जिससे ग्रामीणों के धैर्य का बांध टूट रहा है।

यह मामला प्रशासनिक लापरवाही और ग्रामीणों के अधिकारों की अनदेखी का एक गंभीर उदाहरण है। ग्रामीणों का वन अधिकार पट्टा उनके जीवन यापन और भूमि पर उनके हक को सुनिश्चित करता है, लेकिन अधिकारियों की उदासीनता के कारण ये 115 परिवार न्याय की उम्मीद में संघर्ष कर रहे हैं। पट्टा “खो” जाने जैसी बयानबाजी से प्रशासन की जिम्मेदारी को टाला नहीं जा सकता।

इस तरह के मामलों में पारदर्शिता और त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता होती है ताकि ग्रामीणों का विश्वास प्रशासन में बना रहे और वे अपने अधिकार से वंचित न हों।

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