प्रिय साथियों, 1936 में जब लाहौर के जाति पाति तोड़क मंडल ने बाबा साहेब डॉ आंबेडकर को पहले, सभापति के रूप में आमंत्रित किया और फिर भारत की क्रूर जाति व्यवस्था और अमानवीय हिंदुत्व के बारे में उनके क्रांतिकारी विचारों को जानकर उन्हें लाहौर के सम्मेलन में आमंत्रित नहीं करने का निर्णय लिया तब बाबासाहेब ने “जाति उन्मूलन” (Caste Annihilation) के नाम से अपनी पुस्तिका को छपवाया और वितरित किया।
उस समय उन्होंने एक युगांतरकारी बात कही थी कि भारत में अमानवीय जाति व्यवस्था को उखाड़ फेंके बिना कोई लोकतांत्रिक समाज नहीं बन सकता। इसके लिए उन्होंने भारतीय जनता को दो दुश्मनों से लड़ने को कहा था-एक ब्राम्हणवाद तो दूसरा पूंजीवाद। शहीद भगत सिंह ने भी ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ फेंकने के साथ साथ उसकी दलाल भारतीय पूंजीवाद से भी हमें लड़ने को कहा था। आज की तारीख में हम देखते हैं कि ब्राम्हणवाद, फासिस्ट आरएसएस के वैचारिक आधार मनुवादी हिंदुत्व का रूप धारण कर आज के पूंजीवाद, जिसे अडानी अंबानी का कॉरपोरेट राज कह सकते हैं का लठैत बना हुआ है। बाबा साहेब आंबेडकर की एक बात और हमें नहीं भूलना चाहिए कि हिंदुराष्ट्र की स्थापना भारत के अंधकारमय युग की शुरुआत है।
2014 के मध्य में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से, दुनिया का सबसे पुराना और सबसे बड़ा फासीवादी संगठन आरएसएस, भारत को एक हिंदूराष्ट्र के रूप में बदलने की दिशा में सुनियोजित ताबड़तोड़ आक्रमण में लगा हुआहै। आरएसएस का वैचारिक आधार मनुस्मृति है, जिसके अनुसार दलितों/उत्पीड़ितों, महिलाओं और गरीब मेहनतकशों को इंसान का दर्जा नहीं दिया जाता।इसके अलावा इनके तथाकथित हिंदुराष्ट्र (जो कि आम हिंदुओं के लिए नहीं है बल्कि अडानी, अंबानी जैसे धन कुबेरों के लिए है) में आरएसएस, मुसलमानों को नागरिकता और मानवाधिकारों से वंचित करती है।
विशेष रूप से, मोदी के दूसरे कार्यकाल के तहत 2019 के बाद से, भारत “मोदीनॉमिक्स” का एक क्रूर स्वरूप भी देख रहा है, जो आज क्रोनी कैपिटलिज्म ( जुआड़ी/ दरबारी पूंजीवाद) का भारतीय संस्करण है और अखिल भारतीय स्तर पर पूर्ण रूप से कॉर्पोरेट-भगवा फासीवाद का बहु-आयामी संस्करण है। आज भगवा नव-फासीवाद के तहत देश का समूचा सामाजिक ताना-बाना, अत्यधिक विभाजनकारी नीतियों और साम्प्रदायिक उकसावे के जरिए भयावह विघटन का सामना कर रहा है।
आज इस तथाकथित हिंदुराष्ट्र में लोगों के बीच आपसी द्वेष, नफरत और विभाजन पैदा किया जा है, जिससे दलितों / उत्पीड़ित, महिलाओं और अल्पसंख्यकों में असुरक्षा की भावना पैदा हो रही हैं। राज्य सत्ता के समर्थन से, आरएसएस ने भारत में सभी संवैधानिक और प्रशासनिक संस्थानों के भगवाकरण के अलावा सामाजिक जीवन के हर पहलू को अपने जाल में फंसाने में सफलता हासिल की है। 2019 के मध्य से, यानी मोदी के नेतृत्व में, हिंदुत्व आक्रमण को एक अतिरिक्त गति मिली। दूसरी बार सत्ता में आने के तीन महीने के भीतर, मोदी ने संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के साथ शुरू होने वाली फासीवादी चालों की एक श्रृंखला शुरू की, जिससे एक ओर कश्मीर के टुकड़े हो गए और दूसरी ओर इसे जबरन भारतीय संघ में एकीकृत कर दिया गया।
संविधान को मानने की शपथ लेने के बावजूद धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करते हुए, मोदी ने स्वयं बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर निर्माण की नींव रखी, जिसके बाद सीएए/एनआरसी के जरिए मुसलमानों के खिलाफ नागरिकता के अधिकार के मुद्दे पर भेदभाव करना और उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने की ओर अग्रसर है।
अगला कदम नई शिक्षा नीति (NEP 2020) के माध्यम से शिक्षा का भगवाकरण और कॉरपोरेटीकरण, राज्यों पर हिंदी और संस्कृत को थोपना और भारत के इतिहास व संस्कृति को साम्प्रदायिक तथा विकृत बनाना जारी है। बेशक, उनका एजेंडा बहुराष्ट्रीय, बहुभाषी, बहुसांस्कृतिक, बहु-जातीय और बहु-धार्मिक भारत को कॉरपोरेट के प्रभुत्व वाले एक बहुसंख्यक हिंदुराष्ट्र में बदलना है।
मौजूदा स्थिति में, विधानसभा चुनावों में हिंदू वोट-बैंक को मजबूत करने और 2024 के आम चुनाव में भगवा स्वीप के लिए जमीन तैयार करने और ” हिंदुराष्ट्र” के पक्ष में, आरएसएस के मार्गदर्शन में बीजेपी द्वारा छत्तीसगढ़ समेत उन राज्यों में जहां विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, “धर्मसंसद” और तथाकथित संतों/ बाबाओं को इक्ट्ठा कर “पदयात्रा “समेत कई नफरती दंगा भड़काऊ हिंदुत्ववादी बुलडोजर चलाया जा रहा है।
अब इस भगवा आक्रमण की श्रृंखला में नवीनतम चोट, समान नागरिक संहिता और आर्थिक आधार पर आरक्षण हैं। जाहिर है, डॉ. अम्बेडकर द्वारा प्रस्तुत किए गए संवैधानिक रूप से अनिवार्य जाति-आधारित आरक्षण का उद्देश्य सामाजिक जीवन के सार्वजनिक क्षेत्रों में उच्च जातियों के हमले से उत्पीड़ित जातियों की रक्षा करना था।दलितों, आदिवासियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का अधिकार, सामाजिक न्याय की दिशा में एक जनवादी अधिकार है।
लेकिन, आर्थिक आरक्षण को शामिल करके 103वां संवैधानिक संशोधन, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में समर्थन दिया है, मोदी शासन ने जाति-आधारित आरक्षण को कमजोर कर दिया है, जिसका उद्देश्य ब्राह्मणवादी ऊंची जातियों द्वारा अछूत और उत्पीड़ित जातियों के खिलाफ किए गए ऐतिहासिक अन्याय को सुधारना था। इस तरह जहां आरक्षण को निजी क्षेत्रों/कॉरपोरेट घरानों के तहत लागू करने की पहल करनी थी वहां, संघ परिवार के मार्गदर्शन में उसे पूरी तरह खत्म करने का आयोजन किया जा रहा है।
इसी संदर्भ में, जाति उन्मूलन आंदोलन, निर्मम जाति व्यवस्था और ब्राम्हणवादी धार्मिक कट्टरपंथ/ पाखंड के खिलाफ शोषित पीड़ित जनता की मुक्ति के नवजागरण आंदोलन के अग्रदूतगण ज्योतिबा फुले की जयंती 11 अप्रैल से लेकर बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर की जयंती 14 अप्रैल तक जाति उन्मूलन आंदोलन के पक्ष में सशक्त अभियान चलाने का प्रगतिशील जनता से आह्वान करती है।
साथ ही मौजूदा मुस्लिम-विरोधी, दलित-विरोधी, किसान, मजदूर, आम मेहनतकश जनता और पितृसत्तात्मक घोर महिला विरोधी आरएसएस के ब्राम्हणवादी/ मनुवादी फासीवाद के खिलाफ हम मेहनतकश वर्ग, देशभक्त, जनवादी, धर्मनिरपेक्ष प्रगतिशील अवाम और तमाम उत्पीड़ितों से अपील करते हैं कि आरएसएस के वैचारिक आधार मनुवादी हिंदुत्व के खिलाफ उठ खड़े हों तथा इसकी कब्र खोदने और एक सच्चे जनवादी भारत के निर्माण के लिए, सावित्री बाई फुले, फातिमा शेख, गुरु घासीदास, ज्योतिबा फुले, पेरियार, शहीद भगत सिंह और बाबासाहेब आंबेडकर के सपनों के भारत का निर्माण करने के लिए जाति उन्मूलन आंदोलन को आगे बढ़ाएं।
इंकलाब ज़िंदाबाद
“साझी शहादत साझी विरासत जिंदाबाद”
जनता के दुश्मन कॉरपोरेट घरानों के दलाल संघी मनुवादी फासिस्ट मुर्दाबाद।
एक जाति विहीन, वर्ग विहीन, स्त्री पुरुष समानता वाले, वैज्ञानिक सोच संपन्न, धर्मनिरपेक्ष, सच्चे समतावादी भारत का निर्माण करने के लिए एकजुट हों।