‘जोहार’ शब्द ना तो ‘अपभ्रंश भाषा’ का शब्द है और ना ही यह शब्द ‘संस्कृत भाषा’ का शब्द है बल्कि यह ‘प्राकृत भाषा’ का शब्द है जिसका अर्थ ‘प्रकृति की जय हो’ होता है।
झारखण्ड, मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना आदि राज्यों मे जहाँ आदिवासी समुदाय निवास करते है वे अपने लोगों को अभिवादन करने के लिए “जोहार” शब्द का प्रयोग करते है।
“जोहार” प्राकृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ ‘अभिवादन’, ‘अभिनन्दन’, ‘स्वागत’, और बोलचाल की भाषा मे ‘हालचाल पूछना’ होता है। आदिवासी समुदाय मे ‘जोहार’शब्द का अर्थ – ‘प्रकृति की जय हो’ अर्थात हम इस पृथ्वी के अंग है जिसमे सभी प्रकार के जीव पेड़,पौधे, वनस्पति, जल, जंगल, पशु-पंक्षी, औषधि, हवा, पानी, नदी,कुआ, तालाब आदि समस्त चीजों से ही हम मानव का अस्तित्व कायम है।
अगर ये सारी चीजें ना हो तों हम मनुष्यों का जीवन कठिन हो जायेगा जिससे हम मनुष्य का इस पृथ्वी मे अस्तित्व बचाना मुश्किल हो जायेगा।
इस पृथ्वी के सम्पूर्ण मानवजाति कों एक दूसरे कों अभिवादन मे ‘जोहार’ बोलकर करना चाहिए। इस प्रकार हम मनुष्य ‘प्रकृति’ कों धन्यवाद देते है और उसका शुक्रगुजार करना चाहिए।
भारत के कई राज्यों मे जहाँ ‘आदिवासी’ यानि ‘अबोर्जिनल ट्राइब’ निवास करते है वे अपने अभिवादन मे जैसे ‘गौंड’ ट्राइब ‘सेवा जोहार’ बोलकर अभिवादन करते है। भारत के भील प्रदेश के ‘अबोर्जिनल भील ट्राइब’ ‘जय जोहार’ बोलते है।
झारखण्ड प्रान्त के आदिवासी जैसे हो, मुंडा, खड़िआ,उराओं आदि ‘जोहार’ या ‘जोहार उलगुलान’ बोलते है उसी प्रकार संतालपरगना के संताल आदिवासी ‘हुल जोहार’ बोलकर अभिवादन करते है। कुछ सामाजिक कार्यकर्ता ‘क्रन्तिकारी जोहार’ शब्द का भी प्रयोग करते है।
झारखण्ड प्रदेश मे स्थानीय नीति के लिए आंदोलन करने वाले सामाजिक संगठनों मे अब ‘ख़ातिहानी जोहार’ जैसे अभिवादन का भी प्रचलन बढ़ गया है।
‘जोहार’ शब्द आदिवासियों के सामाजिक एवं राजनीतिक एकजुटता एवं शक्ति का प्रतीक बन गया है और भारत के सभी आदिवासी समुदाय को एकसूत्र मे बाँधने का कार्य ‘जोहार’ शब्द ने किया है।
वर्तमान भारत के कई राज्यों के आदिवासी समुदाय अब अपने अभिवादन मे ‘जोहार’ शब्द का प्रयोग करना गर्व की बात समझते है।
जो लोग ‘जोहार’ शब्द के विरोधी है या ‘जोहार’ शब्द से घृणा या लज्जा समझते है मै उन्हें बता देना चाहता हुँ ‘जोहार’ शब्द किसी ‘धर्म’ या सम्प्रदाय’ का परिचायक नहीं बल्कि यह शब्द ‘सामाजिक एकता’ और ‘अखंडता’ का प्रतीक बन गया है।
जो लोग ‘जोहार’ शब्द का विरोध करते है वे शायद इस बात से अनभिज्ञ है वे अंजाने मे ‘प्रकृति’ के प्रति ‘अकृतज्ञ’ है तथा वे ‘प्रकृति’ द्वारा प्रदान सभी प्राकृतिक संसाधनों के प्रति उनके हृदयों मे आदर नहीं।
अतः ‘जोहार’ शब्द ना तों ‘अपभ्रश भाषा’ का शब्द है और ना ही यह शब्द ‘संस्कृत भाषा’ का शब्द है बल्कि यह ‘प्राकृत भाषा’ का शब्द है जिसका अर्थ – ‘प्रकृति की जय हो’ होता है। प्राकृत और प्रकृति से जुड़े हुए समुदाय ही ‘जोहार’ शब्द का प्रयोग अपने अभिवादन मे किया करते है। ‘जोहार’ शब्द के पीछे छिपा भारत का अति प्राचीन इतिहास को समझना अति आवश्यक है।
अतः प्रकृति कों आत्मसात करने वाले भारत के प्राचीन समुदायों द्वारा हजारों वर्षों से इस शब्द की रक्षा की है और अब यह शब्द भारत के आदिवासी समुदायों के ‘एकता’और ‘अखंडता’ को कायम करने वाला ‘शब्द’ बन गया है।
-राजू मुर्मू
स्वतंत्र विचारक
झारखण्ड