छत्तीसगढ़ के जंगल में आग तेजी से फैल रही है। बस्तर से लेकर सरगुजा तक और महासमुंद से कवर्धा तक प्रत्येक जिले का जंगल धधक रहा है। प्रदेशभर में रोजाना आग की औसतन 430 सूचनाएं वन विभाग तक पहुंच रही हैं। सिर्फ मार्च में ही जंगल में आग की 13414 सूचनाएं मिली हैं।
आखिर जंगलों में आग क्यों बेकाबू है और गर्मी के अलावा क्या वजह हैं, भास्कर टीम ने इसका पता लगाने के लिए राजधानी से 250 किमी के दायरे में 3 जिले के घने जंगलों का सर्वे किया। पता चला कि महुआ बीनने वाले और हाथी से सुरक्षा के लिए ग्रामीण आग लगा रहे हैं और तेंदूपत्ता-लकड़ी के लिए तस्कर भी। हालात ये हैं कि प्रदेश में पिछले छह साल में 544 किमी जंगल जल चुके हैं, यानी रायपुर जिले के क्षेत्रफल (226 वर्ग किमी) से तीन गुना।
महुआ बीनने वालों को रोकने के लिए वन विभाग के अफसर अपने-अपने इलाकों में कुछ उपाय कर रहे हैं, लेकिन तस्करों की आग रोकने का ठोस उपाय वन विभाग के पास भी नहीं है। भास्कर टीम धमतरी, गरियाबंद, महासमुंद से राजनांदगांव, कांकेर होते हुए बस्तर में घने जंगलों तक पहुंचे। सड़क के दोनों ओर ही जगह-जगह सुलगती आग या राख नजर आ रही है। गरियाबंद के मैनपुर पहाड़ों पर आग कई दिन से धधक रही है।
भास्कर टीम 31 मार्च को सुबह 10.10 बजे उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व में थी। तब वहां पदस्थ वन अफसर को सूचना मिली कि कक्ष क्रमांक 351 में आग लगी है। वन विभाग की टीम किसी तरह उस पहाड़ी में पहुंची जहां जंगल जल रहा था। लगभग खड़ी चढ़ाई और 41 डिग्री से ज्यादा तापमान के बीच शुरू हुआ आग पर काबू पाने का अभियान। आधे घंटे में आग बुझाई गई, लेकिन हर जगह आग बुझाने की ऐसी सुविधा नहीं है। आग इतने दुर्गम जंगलों में लग रही है कि वन अमले का कई बार वहां पहुंच पाना मुश्किल नहीं है।
हड़ताल से और नुकसान
प्रदेश में 5 हजार से अधिक दैनिक वेतनभोगी वन कर्मचारी अपनी 12 सूत्रीय मांगों को लेकर अनििश्चतकालीन हड़ताल पर हैं। इनकी हड़ताल के चलते जंगल में लग रही आग पर काबू पाना बेहद मुश्किल हो रहा है। वन विभाग अस्थाई व्यवस्था के तौर पर स्थानीय ग्रामीणों की मदद ले रहा है, लेकिन ग्रामीण दक्ष नहीं है, इसलिए नतीजे उतने अच्छे नहीं हैं।