सोमवार, दिसम्बर 9, 2024

गेवरा परियोजना की विस्तार के लिये आयोजित जनसुनवाई में ऊर्जाधानी संगठन ने आपत्ति दर्ज कराई

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अध्यक्ष सपुरन कुलदीप ने पर्यावरणीय और पुनर्वास नीति पर जोरदार तरीके से रखी बात, और सौंपा विरोध पत्र

कोरबा (आदिनिवासी)। एसईसीएल की गेवरा प्रोजेक्ट कोयला खदान की क्षमता 52.5 मिलियन टन वार्षिक से बढ़ाकर 70 मिलियन टन एवं रकबा 4184.486 हेक्टेयर से बढ़ाकर 4781.798 हेक्टेयर विस्तार के लिए आयोजित होने वाले पर्यावरणीय जनसुनवाई में ऊर्जधानी भूविस्थापित किसान कल्याण समिति ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई है और कहा है पहले पुराने मामले पूरा करे उसके बाद आगे का अर्जन किया जाए।
ऊर्जाधानी भू-विस्थापित किसान कल्याण समिति के अध्यक्ष सपूरन कुलदीप ने आज गेवरा में आयोजित जन सुनवाई में जमकर विरोध दर्ज कराई है उन्होंने आवेदक मेसर्स एसईसीएल की गेवरा प्रोजेक्ट द्वारा अपने वार्षिक उत्पादन क्षमता विस्तार करने हेतु पर्यावरण सरंक्षण मंडल 06 जून को गेवरा क्षेत्र में लोक सुनवाई का आयोजन किया था। एस ई सी एल द्वारा जारी पर्यावरण समाघात निर्धारण अधिसूचना ( ईआईए ) की रिपोर्ट में वास्तविक तथ्यों को छुपाइ गयी है। आद्योगिक नगरी कोरबा प्रदूषित शहरों में शामिल है और बढ़ते प्रदुषण की समस्या से आमजन के स्वास्थ पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है विभिन्न प्रकार की प्रदूषणजनित रोंगों से ग्रसित हो रहे हैं।

संगठन की ओर से इस बात को रेखांकित करते हुये कहा गया है देश की आजादी के बाद से वर्ष 1958-60 से कोरबा जिले में कोयला उद्योग स्थापित हो चुका है और आज देश की कोयला उत्पादन में सबसे अग्रणी बन चूका है साथ ही साथ बिजली , एल्युमियम सहित अनेक उत्पादों के जरिये देश को सबसे ज्यादा राजस्व भी यही से जाता है। इसी वर्ष गेवरा खदान ने देश में सबसे ज्यादा उत्पादन कर विश्व रिकार्ड भी कायम किया है किन्तु कोयला उत्पादन की हवस में यहाँ के भूविस्थापित और आमजनों के स्वास्थ तथा पर्यावरणीय क्षति के बारे प्रबंधन के साथ साथ शासन ऑर प्रशासन भी मौन है और पुरे देश में प्रदुषण के मामले में भी अग्रणी बना दिया गया है।
संगठन के अध्यक्ष सपूरन कुलदीप ने कहा कि दशको पूर्व अर्जन के एवज में रोजगार के मामले अब तक लंबित है नए अर्जन के मामले में भी नियम विरुद्ध कोल इंडिया पालिसी लागू किये जाने से छोटे रकबे वाले किसानो को रोजगार का लाभ से वंचित होना पड़ा है। वर्षो तक भूमि बंधक बनाकर रखे गए है और मुआवजा पुराने नीति से देने के कारण भारी आर्थिक नुक्सान हो रहा है। कोयला खदानो के बेतरतीब गतिविधियों से प्रदुषण की व्यापक समस्या बढ़ी है | पेयजल संकट , जल स्तर में गिरावट , नदी तालाबो में प्रदूषित रसायनों की विसरण , हवा में हानिकारक धुल धुंआ घुलने से प्राणघातक बीमारियों से लोंगो की परेशानी बढ़ गयी है और दूसरी ओर क्षेत्र के लोंगो के पास रोजगार की बढती समस्या के कारण पूरा जन जीवन अस्तव्यस्त हो गया है। सबसे पहले तो इन्ही सब बातों का समाधान करने और लोंगो के सामाजिक सुरक्षा के उपाय करने के उपरांत ही खदान विस्तार को अनुमति मिलने चाहिए । और तब तक सुनवाई ही रदद् कर दी जानी चाहिए।

इसमें प्रमुख रूप से रूद्र दास महंत कुलदीप सिंह राठौर बसंत कुमार कंवर दीपक यादव संतोष चौहान जगदीश पटेल रामाधार यादव सागर जायसवाल ललित महिलांगे फुलेन्द्र सिंह दयाराम सोनी विद्याधर दास सीमा सोनी निशा खन्डाईत गीता चतोम्बर विकास खन्डाईत प्रताप चतोम्बर पार्वती घोड़ा वीरेन्चु कोड़ा सुषमा नाग मनोज कमला गोड़सोरा कृष्णा बबलू गोप शंभू बेहरा ज्योति बाई बलदेव गोड़ मधुबाई मेहतर चौहान मंजू गोप रजनीकांत सहीस भारती आयकोन हाईबुऊ गुरुवारी अहिल्या दास सुशांति सुभद्रा कैलाश सुनीता बारजो मंगल शिवलाल साहू अशोक साहू गुरूवारीबाई, गीता,सुनीता, नेहादास, आराधना सोनी,पिंकी लता साहू, सीमा सोनी, दयाराम,बंशी, काशीनाथ, मणिशंकर साहू रोहित दास किशन सोनी चामु नाग दीपेश सोनी अंशू अली रवि चंद्रा रुधन चंद्रा बबलू केशव केवट राजेश (दाऊ) मुस्तकीम सहित अनेक भूविस्थापित शामिल थे।

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