कोरबा (आदिनिवासी)। कोरबा से लगभग 26 किलोमीटर दूरी पर स्थित छाता सरई गांव, जहाँ पहाड़ी कोरवाओं का बसेरा है, जिसे हमारे राष्ट्रपति के द्वारा दत्तक पुत्र का दर्जा दिया है। गांव तक जाने के लिए 6 किलोमीटर की कच्ची सड़क पर सफर करना पड़ता है, जहाँ एक स्वागत द्वार इस बस्ती का प्रवेश द्वार है। यहाँ पहुंचते ही इस बस्ती के वास्तविक हालात की झलक मिलती है।
वर्षों पहले, कोरबा के कलेक्टर कैशर हक ने इस गांव को समृद्ध बनाने की कोशिश की थी। गांव में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर, स्कूल, आंगनवाड़ी, जलाशय और सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किए गए थे। गलियों में चकाचक टाइल्स भी लगाई गई थीं।
लेकिन हाल ही में, 13 अक्टूबर को जब सामाजिक कार्यकर्ताओं की एक टीम ने इस गांव का दौरा किया, तो उन्होंने देखा कि इन सुविधाओं की स्थिति अत्यंत खराब है। पानी की टंकी लगी हुई है लेकिन उसमें पानी नहीं है, बिजली का संयंत्र है लेकिन बिजली नहीं है, और आंगनबाड़ी की हालत जर्जर है। आवासों की स्थिति भी बदतर है, जहां दरवाजे और खिड़कियां टूटी-फूटी पड़ी हैं।
इस गांव में विकास की बातें तो की गईं, लेकिन उन्हें अमली जामा पहनाने में सरकार नाकाम रही है। यह स्थिति उन वादों और सपनों का मखौल उड़ाती प्रतीत होती है, जो इन निवासियों से किए गए थे। सवाल उठता है कि अगर इस तरह की स्थिति है तो क्या वाकई में उनको भारत के राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र बताने का कोई अर्थ भी है?
यह गंभीरता से विचारणीय है कि जब हम राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र का तमगा देते हैं, तो क्या हमारी जिम्मेदारियां सिर्फ उपाधियों तक सीमित रह जाती हैं? यह समय है कि सरकारी तंत्र इन वास्तविक समस्याओं का समाधान निकाले और वादे नहीं, बल्कि वास्तविक परिवर्तन की ओर अग्रसर हो।
(सौजन्य: अब्दुल नफीस खान)