सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है जो अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के आरक्षण में उप-वर्गीकरण की अनुमति देता है। यह निर्णय सामाजिक न्याय के क्षेत्र में एक नया अध्याय खोलता है, लेकिन साथ ही कई प्रश्न भी उठाता है।
CPI(ML) की पोलित ब्यूरो ने इस फैसले पर अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। पार्टी का मानना है कि उप-वर्गीकरण के लिए वैज्ञानिक आधार की आवश्यकता है, जिसके लिए जाति जनगणना अनिवार्य है। बिना इसके, विभिन्न जातियों के सापेक्ष वंचना के स्तर का सटीक आकलन संभव नहीं है।
पार्टी ने कहा, “जाति जनगणना और सभी अल्प-प्रतिनिधित्व वाले समूहों के उचित प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए आनुपातिक आरक्षण का फॉर्मूला वर्तमान समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।”
हालांकि, फैसले के कुछ पहलुओं पर CPI(ML) ने चिंता व्यक्त की है। न्यायालय ने SC/ST आरक्षण में ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा और केवल एक पीढ़ी तक आरक्षण सीमित रखने का सुझाव दिया है। पार्टी का मानना है कि ये सुझाव मामले के दायरे से बाहर हैं और संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत हो सकते हैं।
पार्टी ने जोर देकर कहा, “SC/ST आरक्षण एक सकारात्मक कार्रवाई है जो भारत के दलित-आदिवासी समुदाय के सामने आने वाले सामाजिक बहिष्कार और हाशिये पर रहने की निरंतर वास्तविकता का मुकाबला करने और उसे कम करने के लिए है।”
CPI(ML) ने इस धारणा का खंडन किया कि यह भेदभाव केवल ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित है। पार्टी ने कहा, “यह सोचना कि शहरीकरण अपने आप में इस भेदभाव को कम कर देता है, भारतीय वास्तविकता का गलत प्रतिनिधित्व है। SC/ST छात्र और विद्वान प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा के अन्य केंद्रों जैसे IIT, IIM और मेडिकल व इंजीनियरिंग कॉलेजों में भी अत्याचारों का सामना करते रहते हैं।”
अंत में, CPI(ML) ने सभी वंचित वर्गों के बीच एकता और एकजुटता का आह्वान किया। पार्टी ने कहा, “हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला शोषित और वंचित वर्गों के बीच और अधिक विभाजन और प्रतिद्वंद्विता को बढ़ावा न दे। यह शक्तिशाली और विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों की ‘फूट डालो और राज करो’ की रणनीति को मजबूत कर सकता है।”
यह फैसला निस्संदेह भारत के सामाजिक न्याय के परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। इसके व्यापक प्रभावों का आकलन करने और सभी वर्गों के हितों की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए गहन विचार-विमर्श और सतर्क कार्यान्वयन की आवश्यकता होगी।