कोरबा (आदिनिवासी)। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में कोटवारी सेवा भूमि के अवैध हस्तांतरण और बिक्री के मामले में प्रशासन ने सख्त कदम उठाया है। कलेक्टर अजीत वसंत के निर्देश पर भैंसमा तहसीलदार के.के. लहरे ने ग्राम कुकरीचोली में 0.652 हेक्टेयर कोटवारी भूमि का नामांतरण अपास्त कर उसे शासन के रिकॉर्ड में दर्ज कर लिया है। इस कार्रवाई में डॉ. केसी देवनाथ सहित कई अन्य लोगों के नाम पर दर्ज भूमि का हस्तांतरण रद्द किया गया है। यह कदम न केवल कोटवारी भूमि की रक्षा के लिए उठाया गया है, बल्कि यह उन कोटवारों के सम्मान और आजीविका की रक्षा का भी प्रतीक है, जिन्हें यह जमीन सेवा के बदले दी गई थी।
क्या है कोटवारी भूमि और क्यों है यह महत्वपूर्ण?
कोटवारी भूमि वह जमीन है, जो शासन द्वारा कोटवारों को उनकी ग्रामीण सेवाओं के बदले दी जाती है। यह जमीन अहस्तांतरणीय होती है, यानी इसे न तो बेचा जा सकता है और न ही किसी अन्य के नाम पर दर्ज किया जा सकता है। फिर भी, कुछ लोग नियमों को ताक पर रखकर इस जमीन को खरीदने और बेचने में लगे हुए हैं, जिससे कोटवारों के अधिकारों का हनन हो रहा है। कोरबा जिले में ऐसे कई मामले सामने आए, जिनमें कोटवारी भूमि को गलत तरीके से अन्य लोगों के नाम पर दर्ज किया गया।
कलेक्टर के निर्देश और तहसीलदार की त्वरित कार्रवाई
कलेक्टर श्री वसंत ने सभी तहसीलदारों को सख्त निर्देश दिए थे कि कोटवारी भूमि के अवैध हस्तांतरण को तुरंत निरस्त किया जाए और इसे शासन के नाम पर पुनः दर्ज किया जाए। इस आदेश के बाद भैंसमा तहसीलदार के.के. लहरे ने त्वरित कार्रवाई शुरू की। ग्राम कुकरीचोली में खसरा नंबर 376 और 377/1 के तहत दर्ज कोटवारी भूमि की गहन जांच की गई। जांच में पाया गया कि इस जमीन को अनिता कौशिक, मंजू जायसवाल, कनिका चक्रवर्ती और डॉ. केसी देवनाथ जैसे लोगों के नाम पर गलत तरीके से हस्तांतरित किया गया था।
तहसीलदार ने निम्नलिखित हस्तांतरणों को अपास्त किया:
– अनिता कौशिक: खसरा नंबर 377/1, रकबा 0.045 हेक्टेयर
– मंजू जायसवाल: खसरा नंबर 377/1, रकबा 0.040 हेक्टेयर
– कनिका चक्रवर्ती: खसरा नंबर 377/1, रकबा 0.012 हेक्टेयर
– डॉ. केसी देवनाथ: खसरा नंबर 376 और 377/1, कुल रकबा 0.555 हेक्टेयर
इन सभी मामलों में, भूमि को शासन के रिकॉर्ड में पुनः दर्ज कर लिया गया है। यह कार्रवाई न केवल नियमों का पालन सुनिश्चित करती है, बल्कि कोटवारों के हक को भी सुरक्षित करती है।
जिले में कोटवारी भूमि के मामले और कार्रवाई का दायरा
कोरबा जिले में कोटवारी भूमि के अवैध हस्तांतरण के कुल 63 मामले सामने आए हैं, जिनमें सिंगल ट्रांजेक्शन शामिल हैं। इनमें भैंसमा तहसील में 16, कटघोरा में 8, दीपका में 8, हरदीबाजार में 7, बरपाली में 10, पोड़ी उपरोड़ा में 2, कोरबा में 2, दर्री में 6 और पाली में 4 प्रकरण शामिल हैं। कलेक्टर ने सभी तहसीलदारों को इन मामलों की गहन जांच और त्वरित कार्रवाई के लिए निर्देशित किया है।
कोटवारों की भावनाएं और सामाजिक प्रभाव
कोटवारी भूमि कोटवारों के लिए केवल जमीन का टुकड़ा नहीं, बल्कि उनकी मेहनत, सम्मान और आजीविका का आधार है। जब इस जमीन को गलत तरीके से बेचा या हस्तांतरित किया जाता है, तो यह न केवल उनके अधिकारों का हनन करता है, बल्कि उनके परिवारों के भविष्य को भी खतरे में डालता है। कोरबा के एक कोटवार ने (नाम न छापने की शर्त पर ) बताया, “यह जमीन हमारे लिए जीवन का आधार है। इसे बेचने वाले लोग हमारे सम्मान और मेहनत को ठेस पहुंचाते हैं। प्रशासन की इस कार्रवाई से हमें न्याय की उम्मीद जगी है।”
कानूनी और सामाजिक परिप्रेक्ष्य
कानून के अनुसार, कोटवारी भूमि का हस्तांतरण पूरी तरह से प्रतिबंधित है। छत्तीसगढ़ सरकार ने 1950 के पूर्व मालगुजारी द्वारा दी गई कोटवारी भूमि को भी अहस्तांतरणीय घोषित किया है। इसके बावजूद, कई कोटवारों ने ऊंचे दामों पर अपनी जमीन बेच दी, जिसके खिलाफ हाईकोर्ट ने भी सख्त रुख अपनाया है। हाईकोर्ट के एक आदेश में स्पष्ट किया गया है कि कोटवारों को भूस्वामी का अधिकार नहीं है, और ऐसी जमीन की बिक्री अवैध है।
यह कार्रवाई न केवल कानूनी रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक न्याय की दिशा में भी एक बड़ा कदम है। कोटवारी भूमि की रक्षा से ग्रामीण समुदायों में कोटवारों की स्थिति मजबूत होगी और उनके परिवारों को आर्थिक स्थिरता मिलेगी।
अब आगे क्या?
कलेक्टर श्री अजीत वसंत ने स्पष्ट किया है कि कोटवारी भूमि के सभी अवैध हस्तांतरणों को निरस्त करने की प्रक्रिया तेज की जाएगी। इसके लिए सभी तहसीलदारों को एक माह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए गए हैं। साथ ही, ऐसी जमीनों के दस्तावेज जप्त करने और सिविल वाद दायर करने की प्रक्रिया भी शुरू की जाएगी।
न्याय और पारदर्शिता की जीत
कोरबा में कोटवारी भूमि के अवैध हस्तांतरण के खिलाफ उठाया गया यह कदम न केवल प्रशासन की सख्ती को दर्शाता है, बल्कि कोटवारों के सम्मान और अधिकारों की रक्षा का भी प्रतीक है। यह कार्रवाई उन लोगों के लिए एक सबक है, जो नियमों को ताक पर रखकर लाभ कमाने की कोशिश करते हैं। कोटवारों के लिए यह एक नई उम्मीद की किरण है, जो उन्हें अपने हक के लिए लड़ने की ताकत देगी।
आप क्या सोचते हैं? क्या कोटवारी भूमि की रक्षा के लिए और सख्त कदम उठाए जाने चाहिए? अपनी राय हमारे साथ साझा अवश्य करें।