गुरूवार, अगस्त 28, 2025

विश्व आदिवासी दिवस पर मैसूर में राज्यव्यापी सम्मेलन: जल-जंगल-ज़मीन और अधिकारों के लिए संगठित संघर्ष का संकल्प

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मैसूर (आदिनिवासी)। विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर आदिवासी संघर्ष मोर्चा ने मैसूर के आइडियल जावा रोटरी स्कूल में राज्यस्तरीय सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें कर्नाटक भर से आए आदिवासी प्रतिनिधियों ने अपने मुद्दों, चुनौतियों और अधिकारों पर चर्चा की। सम्मेलन ने साफ़ संदेश दिया—जल, जंगल और ज़मीन पर आदिवासियों के हक़ को छीनने वाली नीतियों के खिलाफ संगठित संघर्ष ही अस्तित्व और सम्मान की गारंटी है।

अत्याचार और शहादत की याद
कार्यक्रम की शुरुआत 18 वर्षीय पोनन्ना (विराजपेट, कोडागु) की याद से हुई, जिन्हें 28 दिसंबर 2024 को चोरी के संदेह में गोली मार दी गई थी। साथ ही उन सभी आदिवासियों को श्रद्धांजलि दी गई जो राज्य या गैर-राज्य हिंसा में मारे गए।

आदिवासी समुदाय की स्थिति – एक गहरी पीड़ा
आदिवासी संघर्ष मोर्चा के संयोजक क्लिफ्टन डी’ रोज़ारियो ने कहा कि कर्नाटक के 50 अनुसूचित जनजाति समुदाय—जैसे जेनु कुरुबा, सोलिगा, पनिया, येरेवा, कोरगा, हक्की पिक्की, इरुलिगा, सिद्धी आदि—अभी भी अपने ही अधिकारों से वंचित हैं।
उन्होंने बताया, “राष्ट्रीय उद्यानों, आरक्षित वनों और टाइगर रिज़र्व से आदिवासियों को बेदखल किया जा रहा है। दूसरी ओर, आवास, सड़क, परिवहन और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं तक नहीं मिल रहीं।”

शोषण और उपेक्षा के अनुभव
सविता (केडामलूर, कोडागु): “हमारी मज़दूरी दासता जैसी है। न्यूनतम मज़दूरी तक नहीं मिलती, और आंगनवाड़ी केंद्र इतने दूर हैं कि बच्चों को छोड़ना संभव नहीं।”

शीलामणि (एच.डी. कोटे): “सड़क, बस, अस्पताल, राशन कार्ड—कुछ भी आसानी से नहीं मिलता। गर्भवती महिलाएं और बीमार लोग समय पर इलाज नहीं पा पाते।”

मच्चम्मा (एच.डी. कोटे): “सरकार से इंतज़ार करने के बजाय हमें संगठित होकर अपने अधिकार लेने होंगे।”

समिथ कुमार (हक्की पिक्की, बेंगलुरु): “80 साल की लड़ाई के बाद ज़मीन मिली – ये साबित करता है कि संगठन ही ताकत है।”

केम्पैया (इरुलिगा): “वन विभाग झूठे केस लगाता है। इन्हें तुरंत वापस लिया जाए।”

मुत्ता (कोडागु): “मनरेगा जीवनरेखा है, पर लागू ही नहीं होती। समय पर काम और भुगतान ज़रूरी है।”

कावेरी: “मेरे पति पर झूठा केस लगाकर सात साल तक जेल में रखा गया—परिवार तबाह हो गया।”

संस्कृति, पहचान और संवैधानिक अधिकार
कार्यक्रम में आदिवासी भाषा-संस्कृति की रक्षा, धार्मिक स्वतंत्रता, और पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम 1996 (PESA) को लागू करने की मांग हुई। अखिल भारतीय किसान मोर्चा के रामन्ना विट्टाला ने चेताया कि धर्म के नाम पर आदिवासियों को बांटने की कोशिश हो रही है, जिसे रोकना होगा।

पारित प्रमुख प्रस्ताव

सम्मेलन में सर्वसम्मति से दस मांगें पारित हुईं:-
1. बेदखली रोकें और वनाधिकार अधिनियम 2006 को पूरी तरह लागू करें।
2. भूमि और जंगल पर आदिवासी अधिकार मान्यता प्राप्त करें।
3. धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा करें।
4. आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए समयबद्ध योजना बने।
5. आदिवासी कल्याण के लिए पर्याप्त बजट प्रावधान।
6. अत्याचार रोकें और SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 का कड़ाई से पालन करें।
7. 9 अगस्त को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करें।
8. आदिवासी बहुल क्षेत्रों को पाँचवीं अनुसूची में शामिल करें और PESA लागू करें।
9. मनरेगा के लिए बजट और क्रियान्वयन में सुधार।
10. झूठे मुकदमों की समीक्षा और उन्हें वापस लेना।

यह सम्मेलन केवल एक आयोजन नहीं था, बल्कि चेतावनी थी – अगर नीतियां और शासन व्यवस्था आदिवासियों के हित में नहीं बदलतीं, तो संघर्ष तेज़ होगा। आदिवासी समाज का यह स्वर साफ है – “हमारे बिना यह जंगल, यह ज़मीन और यह देश अधूरा है।”

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