“मोदी सरकार को जवाब देना होगा”
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुआ दिल दहलाने वाला आतंकी हमला न केवल भारत के लिए एक त्रासदी है, बल्कि यह मानवता पर एक क्रूर वार है। इस हमले में 26 निर्दोष लोगों की जान चली गई, जिनमें नेपाल का एक पर्यटक और एक स्थानीय घोड़ा चालक भी शामिल थे। यह हमला कश्मीर घाटी में पर्यटकों पर इस पैमाने का पहला आतंकी हमला है, जिसने देश और दुनिया को स्तब्ध कर दिया। इस जघन्य अपराध के दोषियों को सजा दिलाने के साथ-साथ उन सुरक्षा चूकों की जवाबदेही भी तय होनी चाहिए, जिनके चलते आतंकी बेरोकटोक अपनी साजिश को अंजाम दे सके।
त्रासदी की भयावह तस्वीर
पहलगाम, जो कभी अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांति के लिए जाना जाता था, उस दिन खून से लाल हो गया। करीब 2,000 पर्यटक बैसरन घाटी में थे, जब आतंकियों ने अचानक हमला बोल दिया। डेढ़ घंटे तक चले इस हमले में न तो पुलिस थी, न सेना। यह एक ऐसी जगह थी, जहां सुरक्षा बलों की भारी मौजूदगी होने का दावा किया जाता है। फिर भी, पर्यटक पूरी तरह असुरक्षित छोड़ दिए गए। खबरों के मुताबिक, सरकार को इस हमले की आशंका पहले से थी, क्योंकि खुफिया इनपुट मिल चुके थे। इसके बावजूद, कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया गया? यह सवाल हर भारतीय के मन में गूंज रहा है।
स्थानीय लोगों का बलिदान और साहस
इस त्रासदी के बीच कश्मीरी लोगों ने जो इंसानियत दिखाई, वह दिल को छू जाती है। जब सुरक्षा बल मौके पर नहीं पहुंचे, तब स्थानीय कश्मीरियों ने अपनी जान जोखिम में डालकर पर्यटकों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया। कई घायलों को अस्पताल ले जाया गया, जिसके चलते मरने वालों की संख्या और बढ़ने से रुकी। कश्मीर की अर्थव्यवस्था के लिए पर्यटन रीढ़ की हड्डी है, और इस हमले ने इसे गहरी चोट पहुंचाई। यही वजह है कि स्थानीय लोग सड़कों पर उतर आए और इस हमले के खिलाफ विरोध जताया। पूरे राज्य में स्वतःस्फूर्त बंद देखा गया। जहां एयरलाइंस फंसे पर्यटकों से मोटा किराया वसूल रही थीं, वहीं कश्मीरी परिवारों ने अपने घरों के दरवाजे खोलकर पर्यटकों को सहारा दिया।
जवाबदेही का सवाल
जम्मू-कश्मीर अब केंद्र शासित प्रदेश है, और यहां कानून-व्यवस्था की पूरी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है। हमले से ठीक दो हफ्ते पहले गृह मंत्री अमित शाह ने सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा की थी और दावा किया था कि कश्मीर आतंकवाद से मुक्त हो चुका है। लेकिन पहलगाम की घटना ने उनके दावों की पोल खोल दी। खुफिया जानकारी के बावजूद आतंकी कई दिनों तक इलाके में घूमते रहे और अपनी योजना को अंजाम दे गए। यह एक ऐसी चूक है, जिसे माफ नहीं किया जा सकता।
सूरत की शीतल कलाथिया का दर्द हर उस परिवार की पीड़ा को बयां करता है, जिसने इस हमले में अपने प्रियजनों को खोया। शीतल के पति शैलेश, जो एक बैंक कर्मचारी थे, इस हमले का शिकार हुए। शीतल का गुस्सा उस सुरक्षा व्यवस्था पर है, जो वीआईपी को तो कड़ी सुरक्षा देती है, लेकिन आम नागरिकों को असुरक्षित छोड़ देती है। यह गुस्सा हर उस भारतीय का है, जिसने सरकारी लापरवाही के चलते अपने किसी अपने को खोया है।

सरकार की चुप्पी और सियासी खेल
जब यूपीए सरकार सत्ता में थी, तब नरेंद्र मोदी, गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर, हर आतंकी हमले पर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से जवाब मांगते थे। एक पुराने वीडियो में वह सवाल उठाते हैं कि जब सरकार को सीमाओं और खुफिया जानकारी पर पूरा नियंत्रण है, तो आतंकी हमले कैसे हो जाते हैं? आज वही सवाल और प्रासंगिक हैं, लेकिन अब प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी उनके पुराने बयानों का मजाक उड़ाती है।
प्रधानमंत्री ने हमले के बाद सऊदी अरब की यात्रा तो रद्द की, लेकिन कश्मीर जाने के बजाय वह बिहार में चुनावी रैली करने पहुंचे। दिल्ली में बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में भी वह शामिल नहीं हुए। इससे साफ है कि सरकार इस त्रासदी को गंभीरता से लेने के बजाय सियासी फायदे की तलाश में है।
कश्मीरियों पर निशाना क्यों?
इस हमले के बाद कुछ मीडिया और सोशल मीडिया समूहों ने कश्मीरी मुसलमानों को बदनाम करने की कोशिश की। लेकिन सच्चाई यह है कि कश्मीरियों ने इस हमले में सबसे ज्यादा मानवता दिखाई। फिर भी, देश के कई हिस्सों में कश्मीरी छात्रों, व्यापारियों और मजदूरों को धमकियां मिल रही हैं। गुजरात और महाराष्ट्र में बंगाली बोलने वाले मुस्लिम मजदूरों के खिलाफ हिंसा की खबरें भी सामने आई हैं। यह नफरत और बंटवारे की साजिश देश को कमजोर करने की कोशिश है।
नीतियों की नाकामी
सरकार ने 2016 में नोटबंदी को आतंकवाद का इलाज बताया था, लेकिन पुलवामा हमले ने इस दावे को खारिज कर दिया। 2019 में जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने को भी मास्टरस्ट्रोक कहा गया, लेकिन पहलगाम की घटना ने साबित कर दिया कि कश्मीर में शांति अभी भी दूर की कौड़ी है। सरकार ने पर्यटकों को कश्मीर आने के लिए प्रोत्साहित किया, लेकिन अब वही सरकार कह रही है कि हमले में मारे गए पर्यटकों के पास जरूरी पुलिस अनुमति नहीं थी। यह दोहरा रवैया जनता के साथ विश्वासघात है।
आगे की राह
पहलगाम हमला भारत के लिए एक चेतावनी है। यह समय जवाबदेही तय करने, सच्चाई सामने लाने और नफरत के खिलाफ एकजुट होने का है। भारत और पाकिस्तान जैसे परमाणु शक्ति संपन्न देशों के बीच युद्ध का खतरा बढ़ रहा है, जिसे हर हाल में टालना होगा। दोनों देशों को बातचीत और सहयोग के रास्ते पर चलकर दक्षिण एशिया में शांति और भाईचारा कायम करना चाहिए।
पहलगाम की त्रासदी ने कश्मीर के लोगों के दर्द को फिर से उजागर किया है, जो दशकों से हिंसा, दमन और उपेक्षा का शिकार हैं। उनकी आवाज को अनसुना नहीं करना चाहिए। यह वक्त है कि हम इंसानियत और एकता के साथ खड़े हों, ताकि कश्मीर की वादी फिर से स्वर्ग बन सके।
(साभार: एम एल अपडेट)