गुरूवार, नवम्बर 21, 2024

जमीन की कॉर्पोरेट लूट, आदिवासियों के निर्मम दमन के खिलाफ एकजुट हुए कई संगठन: भूमि अधिकार आंदोलन के सम्मेलन में दिखी देश भर की एकजुटता

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रायपुर (आदिनिवासी)। छत्तीसगढ़ के अनेक आदिवासी, किसान तथा सामाजिक संगठन रायपुर में भूमि अधिकार आंदोलन तथा छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के राज्य स्तरीय सम्मेलन में इकट्ठा हुए। दिन भर चले इस सम्मेलन में प्रतिनिधियों ने छग के छत्तीसों स्थानों पर जल, जंगल, जमीन, खनिज और अन्य प्राकृतिक संपदा की रक्षा करने तथा जनतंत्र बचाने के लिए चल रहे आंदोलनो और उन पर किये जा रहे जुल्म तथा अत्याचारों का विवरण दिया तथा विस्थापन की बेदर्दी और पीड़ा को सामने रखा।

आलोक शुक्ला के संचालन में हुए इस सत्र में हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति से मुनेश्वर पोर्ते, रावघाट संघर्ष समिति से नरसिंह मंडावी, दलित आदिवासी मंच से राजिम केतवास, बेचाघाट आंदोलन के सरजू टेकाम, नया रायपुर किसान आंदोलन से रूपन चंद्राकर, आदिवासी महासभा के मनीष कुंजाम, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के जनकलाल ठाकुर, छत्तीसगढ़ किसान सभा के ऋषि गुप्ता, सर्व आदिवासी समाज से पूर्व सांसद अरविंद नेताम, सहित जशपुर, कोरबा, धमतरी व अन्य स्थानों के प्रतिनिधियों ने अपनी बात रखी। उन्होंने बताया कि इन सभी स्थानों पर मौजूदा सरकार सहित छग की सरकारें किस तरह कारपोरेट कम्पनियों के लिए आदिवासियों की बेदखली और गिरफ्तारियां, यहां तक कि फर्जी मुठभेड़ें करने के कामो में लगी हैं, उनकी हत्यारी मुहिम को संरक्षण देने में लगी है। सम्मेलन ने इन सभी जन आंदोलनों के साथ एकजुटता व्यक्त की।

सारकेगुड़ा नरसंहार की 10 वीं बरसी के दिन हुए सम्मेलन में वक्ताओं ने बताया कि जिस नरसंहार में आधा दर्जन से अधिक नाबालिग बच्चों सहित 18 आदिवासी मार दिए गए थे। 2018 के चुनाव में काँग्रेस सारकेगुड़ा और एड़समेटा नरसंहार को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ी थी। पूरे बस्तर ने काँग्रेस को जिताया था और भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बने थे। तीन साल पहले जाँच आयोग की रिपोर्ट आ चुकी है। एड़समेटा और सारकेगुड़ा नरसंहार की रिपोर्ट आ चुकी है। इन दोनों रिपोर्ट्स में दोषी पुलिस अधिकारियों को नामजद चिन्हित किया जा चुका है, लेकिन किसी भी रिपोर्ट की एक भी सिफारिश लागू नहीं हुई, एक भी हत्यारे के खिलाफ कार्यवाही नहीं हुई। जबकि अभी 24 जून को कई महीनों से धरने पर बैठे पुसनार के आदिवासियों का मंच जेसीबी से ढहा दिया गया और सरकार के इस गैर-लोकतांत्रिक कुकृत्य के खिलाफ भी आदिवासी बहादुरी से लड़ रहे हैं।

सम्मेलन में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, ओड़िशा, कश्मीर सहित 15 राज्यों के प्रतिनिधि भी शिरकत कर रहे थे। इन राज्यों से आये प्रतिनिधियों ने कहा कि पूरे देश के किसान छत्तीसगढ़ के किसानों के साथ खड़े है। किसान संघर्ष समिति के सुनीलम, लोक संघर्ष मोर्चा की प्रतिभा शिंदे, लोकशक्ति अभियान के प्रफुल्ल सामंत्रा, सर्वहारा जन आंदोलन की उल्का महाजन, अखिल भारतीय किसान खेत मजदूर संगठन, मध्यप्रदेश किसान सभा के बादल सरोज, किसान-खेत मजदूर संगठन के मनीष श्रीवास्तव आदि ने अपने-अपने राज्यों में चल रहे भूमि आंदोलनों का विस्तृत ब्यौरा रखा। उन्होंने बताया कि किस प्रकार आज देश में संवैधानिक प्रावधानों की धज्जियां उड़ाई जा रही है और जो लोग अपने हक़-अधिकारों की वकालत कर रहे है, उन्हें जेल में डाला जा रहा है। देश की तमाम सरकारें नागरिको के मूलभूत अधिकारों के मुकाबले कॉर्पोरेट हितों को प्राथमिकता दे रही है, जिसके चलते देश का जल, जंगल, जमीन, पर्यावरण को खुले आम कॉर्पोरेट मुनाफे के लिए बेच रही हैं। इसलिए सभी को मिलकर कॉर्पोरेट लूट के खिलाफ, जनतंत्र को बचाने के लिए सड़कों पर आना होगा और ताकतवर भूमि आंदोलन खड़ा करना होगा। छत्तीसगढ़ के प्रतिनिधियों की बातें सुनने के बाद उन्होंने क्षोभ व्यक्त किया कि प्रदेश में भाजपा की सरकार जाने के बाद और कांग्रेस के आने से भी कोई बदलाव आया नहीं है।

भूमि अधिकार आन्दोलन – छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के सम्मेलन की शुरुआत देश के वरिष्ठ किसान नेता, अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मौल्ला ने की । उन्होंने कहा कि मोडानी मॉडल — जल, जंगल, जमीन और जनतन्त्र को मिटाकर, प्राकृतिक सम्पदाओं को लूटने वाला मोदी-अडानी मॉडल — नही चलेगा। उन्होंने कहा कि इन प्राकृतिक संसाधनों पर समाज का अधिकार है, लेकिन आज इसे पूंजी की ताकत और सत्ता के संरक्षण में इसे हड़पने की कोशिश की जा रही है। भूमि अधिकार आंदोलन के निर्माण की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि इस मंच के ऑल ओपीजरिये सरकार की कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों के खिलाफ एक नया प्रतिरोध आंदोलन विकसित हो रहा है।

नर्मदा बचाओ आंदोलन तथा जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय की मेधा पाटकर ने कहा कि यह आर्थिक शोषण का दौर है, जो जीवन के अधिकारों का हनन कर रहा है। जिस विकास मॉडल की बात नरेंद्र मोदी कर रहे हैं, उसका स्पष्ट उदाहरण आज देश के हर राज्य में जंगलों के विनाश, खेती की जमीन को बांध बना कर डुबो देने, विस्थापन के माध्यम से लोगों को उजाड़ने के रुप में देखने को मिल रहा है। छत्तीसगढ़, झारखण्ड और ओड़िसा में आदिवासियों के प्राकृतिक संसाधनों पर हमले तेज हुए है। हम सब लोग मिल कर नहीं लड़ेंगे, तो न हम बचेंगे और न समाज बचेगा। इस संदेश को गाँव-गाँव तक पहुँचाना होगा और विकास की वैकल्पिक नीति को देश के सामने रखना होगा। उन्होंने कहा कि जिस हसदेव अरण्य को बचाने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल विपक्ष में रहकर प्रतिबद्धता जता रहे थे, आज वही इसे उजाड़ने के लिए अनुमति दे रहे हैं। हसदेव के साथी मजबूती से अपनी जंगल जमीन बचाने आंदोलनरत है और पूरा देश आज उनके साथ खड़ा हुआ है।

सर्वहारा जन आंदोलन, महाराष्ट्र की उल्का महाजन ने कहा कि हसदेव अरण्य की लड़ाई किसी एक प्रदेश या किसी एक समुदाय की लड़ाई नहीं है। यह पूरे देश की आबोहवा और पर्यावरण बचाने की लड़ाई है, जिसे हर हाल में जीतना ही होगा। हमें यह घोषणा करनी होगी कि हमारे जंगल, हमारी जमीन, हमारा पानी बिकाऊ नहीं है। इस पर हमारा अस्तित्व टिका हुआ है, इसलिए यह मुनाफे की वस्तु नहीं है। हम इसे आजीविका के साधन के तौर पर देखते है।

सम्मेलन की शुरुआत में छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते ने प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए कहा कि आज देश में सत्ताधारी पार्टियां जहां एक तरफ सांप्रदायिकता, धार्मिक विभेदीकरण जैसे मुद्दे पर चुप्पी लगाए हुए है, वहीं दूसरी तरफ कॉर्पोरेट लूट को सुगम बनाने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है। ऐसे समय में जनांदोलनों के ऐसे सम्मेलन का महत्व और भी बढ़ जाता है। उन्होंने जन आंदोलनों और संगठनों के प्रतिनिधियों को मंच पर आमंत्रित किया।

सम्मेलन ने एक प्रस्ताव स्वीकार कर भूमि, विस्थापन, पुनर्वास और आजीविका के सवाल पर हर जिले में सम्मेलन आयोजित करने और राज्यव्यापी आंदोलन विकसित करने का निर्णय लिया।

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