“राजनीतिक उठापटक और जनता की आवाज!”
कोरबा (आदिनिवासी)। कोरबा नगरीय निकाय चुनाव में राजनीतिक दलों ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है और नामांकन प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। लेकिन इस बार चुनावी मैदान में एक नई रोचक बात देखने को मिल रही है। कई पार्टी कार्यकर्ता, जो टिकट पाने की उम्मीद लगा रहे थे, उन्हें पार्टी की ओर से अनदेखा कर दिया गया। नतीजतन, ये कार्यकर्ता अब निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी रण में उतर चुके हैं।
इसके अलावा, कुछ ऐसे भी पूर्व पार्षद हैं जो पिछले कार्यकाल में अपनी पार्टी के टिकट पर जीते थे, लेकिन इस बार उन्हें टिकट नहीं मिला। इनमें से कई ने भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने का फैसला किया है। वहीं, कुछ पार्षदों को इस बार उनके अपने वार्ड से नहीं, बल्कि दूसरे वार्ड से उम्मीदवार बनाया गया है। यह कदम भी पार्टी के भीतर असंतोष का कारण बना हुआ है।
इस चुनाव में एक बड़ा मुद्दा स्थानीय बनाम बाहरी उम्मीदवार का है। लोगों का मानना है कि प्रमुख राजनीतिक दलों ने स्थानीय लोगों की उपेक्षा कर बाहरी उम्मीदवारों को टिकट दिया है। इसका नतीजा यह हुआ है कि पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ता निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में कूद पड़े हैं।
आम लोगों का कहना है कि वे इस बार स्थानीय छत्तीसगढ़िया उम्मीदवारों को वोट देने का मन बना रहे हैं, चाहे वे निर्दलीय ही क्यों न हों। लोगों का यह भी मानना है कि बड़े राजनीतिक दल चुनाव जीतने के बाद जनता की समस्याओं पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं करते। उन्हें अभी भी वह दुर्भाग्यपूर्ण घटना याद है, जब फ्लोरामैक्स घोटाले से पीड़ित महिलाओं ने मंत्रियों से मदद की गुहार लगाई थी, लेकिन उन्हें उठवाकर फेंकवा देने की बात तक कह दी गई थी।
चुनावी मैदान में उम्मीदवार जनता के बीच जाकर अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। वे लोगों से मिलकर खुद को उनका बेटा, भाई और ददा, दाई बोलकर उनका समर्थन मांग रहे हैं। कुछ उम्मीदवार ध्वनि विस्तारक यंत्रों का उपयोग कर फिल्मी गानों के पैरोडी के माध्यम से लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं और उन्हें लुभाने की कोशिश कर रहे हैं।
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चुनाव का मुख्य मुद्दा: सत्ता का अहंकार बनाम जनता की आवाज
इस चुनाव में सत्ता के अहंकार और निरंकुशता पर अंकुश लगाने की बात भी उठ रही है। लोगों का मानना है कि जो नेता जनता की समस्याओं को नजरअंदाज करते हैं और सत्ता के नशे में चूर हो जाते हैं, उन्हें सत्ता से दूर रखना ही बेहतर है।
इस चुनाव में देखने वाली बात यह होगी कि स्थानीय बनाम बाहरी उम्मीदवार का मुद्दा कितना प्रभावी होता है। क्या इस बार स्थानीय उम्मीदवारों को जनता का भरपूर समर्थन मिलेगा? या फिर बड़े राजनीतिक दलों की रणनीति कामयाब होगी? इन सवालों के जवाब चुनाव के नतीजे ही बताएंगे।
इतना तय है कि इस चुनाव में जनता की आवाज और उनकी भावनाएं केंद्र में हैं। यह चुनाव न सिर्फ सत्ता के लिए, बल्कि जनता के अधिकारों और उनकी उम्मीदों के लिए भी है। फिलहाल, कोरबा की सियासत में हलचल तेज है और हर गली-मोहल्ले में एक ही सवाल गूंज रहा है—अब इस बार किसके सिर सजेगा जीत का ताज?
-दिलेश उईके